राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : क्या चार हजार एटीएम बूथ बंद होंगे?
03-Dec-2020 3:58 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : क्या चार हजार एटीएम बूथ बंद होंगे?

क्या चार हजार एटीएम बूथ बंद होंगे?

डिजिटल ट्रांजेक्शन धीरे-धीरे लोगों के व्यवहार में शामिल हो चुका है। छत्तीसगढ़ में हर माह 40 से 50 ठगी के बड़े मामले होते हैं जिनमें ठग अपरिचित होता है और आपके खाते से रुपये साफ हो जाते हैं। इधर जिस तरह जगदलपुर में लगभग सवा करोड़ रुपये का चूना स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को लगाया गया है वह हैरान करने वाला है।

जिन एटीएम मशीनों का बैंक इस्तेमाल करती है उनमें ज्यादातर एनसीआर कंपनी की है। पढ़े लिखे, फ्लाइट से यात्रा करने वाले शातिर जालसाजों को जौनपुर यूपी से पकडक़र लाना सचमुच पुलिस की बड़ी कामयाबी है और इसका श्रेय भी उसे लेना चाहिये। दूसरी तरफ मीडिया में ठगी के तरीके का राज अति उत्साह में जिस तरह से पुलिस ने विस्तार से उगल दिया है उससे खतरा है कि आगे कोई दूसरा जालसाज इसे आजमाना शुरू न कर दे।

बताया गया कि एसबीआई की चार हजार से ज्यादा मशीनें एनसीआर कम्पनी की हैं। मशीनों में ही कुछ खामियां हैं। इन खामियों को जब तक दूर नहीं किया जायेगा, ठगी की गुंजाइश बनी रहेगी। इन एटीएम मशीनों से आहरण तो हो जायेगा पर ट्रांजेक्शन असफल बतायेगा। यानि जालसाज खाताधारक के खाते में राशि बनी रहेगी और मशीन पैसा भी उगल देगी। एसबीआई ने इन मशीनों को बदलने या फिर गड़बड़ी दूर करने का फैसला लिया है।

अब एसबीआई इन चार हजार मशीनों को रातों-रात बदलने वाली तो है नहीं। जब तक ये मशीनें हैं कोई दूसरा भी मौके का लाभ ले सकता है। एक रास्ता यही बचता है कि जहां एनसीआर के एटीएम इस्तेमाल किये जा रहे हैं, वे बूथ बंद कर दिये जायें। चार हजार मशीनों को बंद करने का मतलब, भारी अव्यवस्था फैलना। एसबीआई नंबर वन।

क्लास रूम बंद, मैदान में पढ़ाई

कोरोना महामारी ने बच्चों की पढ़ाई पर खासा बुरा असर पड़ा है। आदिवासी इलाकों के बच्चे जिनके पास मोबाइल फोन, इंटरनेट वगैरह कुछ नहीं है उनके लिये तो पढ़ई तुहर दुआर, बुलटू जैसी वैकल्पिक व्यवस्था भी काम नहीं आ रही है। बच्चों का मध्यान्ह भोजन चलता रहे इसके लिये उन्हें घर पहुंचाकर सूखा राशन दिया जा रहा है। मगर, पढ़ाई की भूख कैसे मिटे?

यह तस्वीर नवगठित गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले के धूमानार गांव की है। शासन ने निर्देश दे रखा है कि स्कूलों को नहीं खोला जाना है। ऐसे में स्कूल के बाहर मैदान में दरी बिछाकर पढ़ाई कराई जा रही है। आम तौर पर प्रायमरी स्कूल के ग्रामीण शिक्षकों के बारे में शिकायत रहती है कि वे स्कूल नहीं पहुंचते, लेकिन यहां उल्टा हो रहा है। जिले के कई स्कूलों के बाहर साफ-सुथरी जगह बनाकर दरियां, टाट-पट्टी बिछाई जा रही है और सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए पढ़ाई शुरू कर दी गई है। कई बच्चों ने तो मास्क भी पहने हुए हैं। हालांकि इसे सभी को पहनना चाहिये।

गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही प्रदेश के उन जिलों में शामिल है जहां कोरोना का संक्रमण अधिक नहीं फैला। यहां के शिक्षा अधिकारी का कहते हैं कि हाल ही में किताबें और स्कूल ड्रेस बांटी गई है। वे इनका इस्तेमाल करने के लिये उतावले हैं। बच्चों में पढऩे को लेकर भारी ललक है और शिक्षक भी उनको गांवों में इधर-उधर घूमते देख रहे हैं तो अच्छा नहीं लग रहा है। इसलिये कहीं-कहीं कोरोना गाइडलाइन को अपनाते हुए सीमित संख्या में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। इनमें बच्चों को आने की बाध्यता नहीं है, जिनके अभिभावक चाहते हैं और क्लास की व्यवस्था को देखकर संतुष्ट हैं वे ही पहुंच रहे हैं।

कोरोना खत्म हो न हो, कल्याण तो हो गया

केन्द्र सरकार ने इस साल 26 मार्च को गरीब कल्याण अन्न योजना की घोषणा की थी जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो हर माह के हिसाब से चावल देने का निर्णय लिया गया था। यह स्कीम तीन माह के लिये थी। इसके लिये राशन कार्ड की भी जरूरत नहीं थी केवल आधार कार्ड जैसा पहचान पत्र पर्याप्त था। सितम्बर में ही ये योजना बंद होने वाली थी, पर कई राज्यों की मांग थी कि स्थिति अभी नहीं संभली, मुफ्त अनाज देना जारी रखा जाये।

छत्तीसगढ़ से भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह मांग केन्द्र के सामने रखी थी। यह स्कीम खिंच गई। नवंबर तक कोटा आया। अब दिसम्बर से यह योजना बंद हो गई है। केन्द्र की ओर से आबंटन की कोई सूचना नहीं है। तीन माह के लिये ही 5-5 सौ रुपये दिये गये थे यह स्कीम कम से कम आठ महीने चली।

छत्तीसगढ़ में 51.50 लाख यूनिवर्सल पीडीएस के तहत लाभान्वित होते हैं इसके अलावा 14.1 लाख लोगों को राज्य सरकार की ओर से भी सहायता पहुंचाई जाती है। इन्हें कोरोना के चलते मिलने वाली अतिरिक्त सहायता अब बंद कर दी गई है। हालांकि पीडीएस की राज्य की स्कीम के तहत एपीएल, बीपीएल परिवारों को अनाज मिलता रहेगा।

केन्द्र का शायद यह मानना है कि काम धंधे ने रफ्तार पकड़ लिया है और अब मजदूरों, गरीबों को ज्यादा मदद की जरूरत नहीं रह गई है। क्या सचमुच गरीब संभल गये हैं। सबका रोजगार धंधा कोरोना आने के पहले की तरह चल निकला है?

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