राजपथ - जनपथ
संतोष तक पहुंचा असंतोष...
भाजपा संगठन मरवाही में हार की समीक्षा नहीं कर पा रहा है। मगर पार्टी के कुछ प्रभावशाली नेताओं ने हाईकमान से इस पर गौर करने का आग्रह किया है। चर्चा है कि एक तेजतर्रार सांसद ने पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष से मिलकर संगठन की कमजोरियों और खामियों की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया है। सांसद ने कह दिया है कि वक्त रहते इन खामियों को दूर नहीं किया गया, तो अगले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का कोई बेहतर प्रदर्शन नहीं रहेगा।
उन्होंने कहा कि संगठन के बड़े नेताओं की वजह से पार्टी में गुटबाजी हावी है, और गुट विशेष के लोगों को ही संगठन में पद बांटे जा रहे हैं। पार्टी में नए लोगों को जगह नहीं मिल पा रही है, और लगातार सत्ता सुख पाने वाले नेताओं को ही महत्व मिलने से कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं रह गया है। कुछ और सांसदों ने भी यही बातें घुमा फिराकर बीएल संतोष से कही है। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन जल्द ही प्रदेश दौरे पर आ रहे हैं, इसके बाद अगले पखवाड़े में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का आगमन होगा। देखना है कि सांसदों की शिकायतों का असर होता है या नहीं।
थानों में सीसीटीवी लगने के बाद क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए देश के सभी पुलिस स्टेशनों और केन्द्रीय जांच एजेंसियों कार्यालयों, हवालातों, प्रवेश और निकास के रास्तों में, लगभग चारों तरफ सीसीटीवी कैमरा लगाने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता से कोर्ट सहमत थी कि इससे हिरासत में प्रताडऩा पर रोक लगेगी।
इंडियन एनुअल रिपोर्ट ऑन टार्चर के मुताबिक साल 2019 में हिरासत में कुल 1731 मौतें हुई हैं, जिनमें से 125 मौतें पुलिस की हिरासत में हुई। आंकड़ों में यह भी है कि ज्यादातर मौतें दलितों और अल्पसंख्यकों की हुई। दरअसल, प्रताडऩा केवल थानों के कैम्पस में ही नहीं होती। जांच और पूछताछ थानों, हवालातों और दफ्तर के बाहर भी की जाती है। अम्बिकापुर में पंकज बेक की मौत, जिस पर परिवार के लोग प्रताडऩा से हुई मौत का आरोप लगा रहे हैं कथित तौर पर एक हॉस्पिटल के बाहर रस्सी से लटकी मिली। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर में चोरी के एक आरोपी छोटू यादव की मां की याचिका पर विशेषज्ञों की रिपोर्ट मांगी है। उसकी मौत कथित तौर पर तब हो गई जब उसे पुलिस जीप से थाना लाया जा रहा था। मां का कहना है कि उसके बेटे की पुलिस ने पिटाई की। पुलिस का किस्सा है कि मौत कुएं में गिरने से हुई।
बीते जून का तमिलनाडु का एक मामला देशभर में चर्चा का विषय रहा जिसमें बाप-बेटे की पुलिस ने लॉकडाउन के दौरान इतनी बेरहमी से मारा कि दोनों की मौत हो गई। मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का जुर्म दर्ज करने का निर्देश दिया। छत्तीसगढ़ विशेषकर बस्तर में एनकाउन्टर में मारे गये लोगों के परिजनों ने भी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में केस लगा रखे हैं।
नये आदेश से प्रताडऩा रुके न रुके, पुलिस और जांच एजेंसियां ‘सच’ उगलवाने की जगह जरूर बदल लेंगी। कई बार रसूखदारों को भी पकडक़र लाना पड़ता है। उनका खूब ख्याल रखा जाता है। कुर्सियां दी जाती हैं, जल-पान कराया जाता है। हिरासत के बावजूद रात में हवालात की जगह घर भी भेज दिया जाता है। ये सब भी अब सीसीटीवी कैमरे में कैद होंगे। कस्टडी में एक नागरिक के क्या अधिकार हैं यह नोटिस बोर्ड में बड़े-बड़े अक्षरों मे लिखा होता है। थानों के बरामदों में ही ये बोर्ड लगे हुए दिखते हैं, पर क्या लोग इस अधिकार का इस्तेमाल कर पाते हैं?
अनजान से थाने का नाम गूंजना
सूरजपुर जिले का झिलमिली थाना अचानक चर्चा में आ गया है। देशभर के 16 हजार से अधिक थानों के कामकाज का सर्वे कराने के बाद गृह मंत्रालय ने 10 सर्वश्रेष्ठ थानों का चयन किया है जिसमें इसे चौथे नंबर पर रखा गया है। दिलचस्प यह है कि मंत्रालय की टीम ने रैंकिंग तय करने के लिये अपने मापदंडों पर तो परखा ही, जनता की राय भी ली। पुलिस स्टेशनों में गरीबों और कमजोर वर्गों की सुनवाई कैसी होती है, महिलाओं के प्रति अपराध में कितनी गंभीरता दिखाई जाती है। शिकायतों का निवारण, लापता व्यक्तियों को ढूंढना, भटकते पाये गये लोगों को सही जगह पहुंचाना जैसे कई मापदंड तय किये गये थे। पहले चरण में हर राज्य से तीन थाने चुने गये, फिर शार्ट लिस्टिंग की गई। मणिपुर का थाउबल थाना सबसे ऊपर है।
ऐसी किसी भी उपलब्धि पर पुलिस की पीठ थपथपाई जा सकती है पर ऐसा नहीं लगता थानों के बीच प्रदेश में इस तरह की कोई प्रतिस्पर्धा रखी जाती है। पुलिस महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी थानों का वार्षिक, अर्ध-वार्षिक निरीक्षण करते हैं। स्वच्छता, सजावट, पेंडिंग के निपटारे जैसे मापदंडों पर थाना और उनके प्रभारियों को पुरस्कृत किया जाता है पर थानों के बीच प्रतिस्पर्धा के लिये कोई योजना नहीं। अलग-अलग जिलों में पुलिस अफसर अपनी रूचि के अनुसार पेंडिंग मामलों को खत्म करने, वारंटियों को पकडऩे, साइबर क्राइम के मामले पकडऩे, लापता बच्चियों को ढूंढने, यातायात दुरुस्त करने का अभियान हाथ में लेते हैं। पुलिस अधिकारी कर्मचारियों को व्यक्तिगत रूप से पुरस्कृत किया जाता है। राष्ट्रीय पर्वों पर सम्मानित भी किया जाता है, फिर थानों के बीच स्पर्धा क्यों नहीं? कभी राजनीतिक कारणों से, कभी अफसरों की नाखुशी से तो कई बार जनता के दबाव में भी थानेदार एक झटके में लाइन हाजिर कर दिये जाते हैं। थानों को दुरुस्त करने का मोह तो तब जागेगा, जब एक निश्चित समय तक उन्हें टिके रहने की उम्मीद हो।
नाचें मगर, नचाना भी सीखें
भरतपुर-सोनहत के विधायक गुलाब कमरो की छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम में नाचते गाते हुए तस्वीर वायरल हुई है। कमरो कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में नाचते रहे हैं। वे ऐसे पहले विधायक नहीं है। एक से अधिक बार गुंडरदेही के विधायक कुंवर सिंह निषाद को सार्वजनिक मंचों पर नृत्य करते पाया गया है। मरवाही में चुनाव प्रचार के दौरान उनका ही नहीं मंत्री कवासी लखमा का मांदर की थाप पर नृत्य लोगों ने देखा। कांग्रेस की सरकार बनी तो विधायक लालजीत राठिया ने विधायक निवास पर लुंगी में डांस किया था। मरवाही में हाल ही में जब जीत मिली को क्या मंत्री, क्या विधायक जितने खुश थे सब एक साथ नाचे।
यहां की लोक संस्कृति में नृत्य शामिल है। लोक कलाकारों के साथ शांत भाव से नाचते हैं। यूपी बिहार की तरह तमंचा लेकर तो स्टेज पर नहीं चढ़ते, न ही फायरिंग करते हैं। बस दिक्कत यह है कि भारी बहुमत के बाद भी विधायकों, जनप्रतिनिधियों को अपनी बात मनवाने के लिये अधिकारियों के सामने पसीना बहाना पड़ता है, वे सुनते ही नहीं। 15 साल बाद आई सरकार की खुशी को इस तरह जताना कोई बुरी बात नहीं पर जनता की उम्मीदें हैं कि आप न केवल नाचें बल्कि जहां जरूरी हो वहां लोगों को नाचना भी सिखायें।