राजपथ - जनपथ
चंदा या सहयोग राशि
कोई भी रसीद लेकर निकलता है तो उसमें चंदे की रकम है, नहीं लिखा जाता, सहयोग राशि ही लिखा होता है। इसलिये पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ठीक कहते हैं कि राम मंदिर के लिये चंदा नहीं लिया जा रहा है, सहयोग राशि ली जा रही है। उन्होंने इसे सीधे सीधे राम पर आस्था से भी जोड़ दिया है। जिनको राम में आस्था है वह चंदा देगा। जिन्होंने चंदा नहीं दिया क्या उनके बारे में क्या समझा जायेगा कि वह राम में आस्था नहीं है?
डॉ. सिंह की यह प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के उस बयान पर आई है जिसमें उन्होंने कहा कि भाजपा चंदा लेने वाली पार्टी है। इसी मुद्दे पर स्वास्थ्य मंत्री डॉ. टीएस सिंहदेव का बयान भी गौर करने के लायक है। उन्होंने कहा कि अगर चंदा लेते हैं तो उसका हिसाब भी दिया जाये।
अब कौन सी समिति चंदा देने वालों को हिसाब देती है? राम मंदिर आंदोलन की शुरू हुआ तब भी लोगों से चंदा (सहयोग राशि) लिया गया था। कई बार लोगों ने आवाज उठाई कि उसका हिसाब तो दें। पर अब वह पुरानी बात हो गई। बहुत से लोग भूल चुके होंगे। डॉ. सिंह का कहना है कि सिंहदेव अपनी जेब संभालकर रखें, यह नहीं कहा कि पाई-पाई का हिसाब देंगे। आस्था का सवाल है, इसमें हिसाब मांगना क्या जायज है?
समर्थन मूल्य से कम पर बेचने की मजबूरी
धान की फसल के अलावा भी कई अन्य उपज हैं जिनका समर्थन मूल्य निर्धारित है, जैसे मक्का। इसकी सरकारी खरीद दर 1850 रुपये है। पर लोग इसे लोग सरकारी खरीदी केन्द्र में बेचने की जगह व्यापारियों के हाथों बेच रहे हैं। वजह बताई जा रही है पंजीयन में आने वाली दिक्कतें।
मक्के या दूसरी किसी फसल के लिये पंजीयन कराने के लिये भी धान की ही तरह कई दस्तावेज लगते हैं। जैसे ऋण पुस्तिका, आधार कार्ड, रकबे के सत्यापन के लिये भूमि के कागजों की प्रतिलिपि। बस्तर के कोंडागांव जिले में कृषि विभाग के आंकड़े के अनुसार करीब 31 हजार हेक्टेयर में मक्का बोया गया है पर इसके लिये सोसाइटियों में करीब 4 हजार हेक्टेयर का ही पंजीयन कराया गया।
व्यापारी समर्थन मूल्य से 5-6 सौ रुपये कम दाम दे रहे हैं पर तुरंत नगद भुगतान कर रहे हैं और वे कोई दस्तावेज भी किसानों से नहीं मांग रहे। इस परिस्थिति को किसान आंदोलन के संदर्भ में समझना जरूरी है। एमएसपी और सरकारी खरीद रहे, साथ ही सरकारी खरीदी आसान भी हो, भुगतान भी जल्दी हो। अभी तो किसानों के खाते में धान का पैसा आ रहा है पर एकमुश्त बड़ी रकम निकालने की छूट नहीं है।
कोरोना लैब में जब केक कटा
कोरोना महामारी से नियंत्रण में जुटे डॉक्टर, नर्सों और टेक्नीशियन की टीम पर काम का बड़ा दबाव है। सरकार की तरफ से उन्हें टेस्ट की संख्या बढ़ाने का निर्देश है जिसके लिये दिन-रात काम करना पड़ता है। बहुत से ऐसे डॉक्टर्स और स्टाफ की खबरें आई हैं कि उन्होंने कई महीनों से कोई छुट्टी नहीं ली। उनके परिवार के दूसरे सदस्यों को कोरोना हुआ तब भी ड्यूटी करते रहे। यहां तक कि करीबियों की मौत के बाद भी।
ऐसे में ऊर्जा बनाकर, माहौल खुशनुमा बनाये रखने के लिये कुछ-कुछ करना पड़ता है। यही वजह है कि सिम्स बिलासपुर में जब आरटीपीसीआर टेस्ट ने 50 हजार की संख्या को छुआ तो उसे स्टाफ ने जश्न की तरह मनाया। केक काटा और डांस कर एक दूसरे को बधाई दी। अब उन्होंने एक लाख टेस्ट का आंकड़ा छूने का इरादा बनाया है। कोरोना का सबसे बुरा दौर शायद बीत चुका है पर इसे पूरी तरह खत्म करने के लिये चिकित्सा कर्मियों में जोश बनाये रखना जरूरी है।