राजपथ - जनपथ
ईमानदारी महंगा शौक
कहावत है कि ईमानदारी एक महंगा शौक है, जो हर किसी के बस की बात नहीं है। अब जेल अफसर वर्षा डोंगरे को ही देखिए, इस जुझारू महिला ने पीएससी-2003 के घोटाले को उजागर किया था। राज्य सरकार की जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू-एसीबी से लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट तक ने भी वर्षा के कथन को सही माना। हाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट से घोटाले की जद में आए अफसरों को राहत मिल गई है, और उन्हें आईएएस अवॉर्ड होने जा रहा है।
वर्षा का हाल देखिए, पीएससी घोटाले के बाद जेल में गड़बड़ी का सार्वजनिक खुलासा करने पर पहले निलंबित कर दिया गया, और ट्रांसफर के बाद उनकी करीब 15 महीने की सैलरी रूकी हुई है। जिसके लिए उन्हें विभाग के आला अफसरों से लेकर गृहमंत्री तक की चक्कर काटनी पड़ी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक वर्ष-2003 के राप्रसे के अफसरों को आईएएस अवॉर्ड न करने के लिए यूपीएससी और डीओपीटी तक गुहार लगाई। मगर इस पर कुछ नहीं हुआ।
आईएएस के छह रिक्त पदों के लिए डीपीसी हो चुकी है। तीन सीनियर अफसर हिना नेताम, संतोष देवांगन और एक अन्य के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, और नियमानुसार तीन पद रोके जाने थे। सिर्फ तीन को ही आईएएस अवॉर्ड होना था। इससे पहले भी ऐसा होता आया है। ओंकार सिंह और आनंद मसीह के लिए तो बरसों तक पद रोके गए थे, क्योंकि दोनों के खिलाफ विभागीय जांच चल रही थी। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार सभी छह रिक्त पदों पर आईएएस अवॉर्ड हो गया। यानी वर्ष-2003 बैच के सीनियर सभी अफसरों को आईएएस अवॉर्ड हो चुका है। सिर्फ नोटिफिकेशन होना बाकी है। ये सब तब हुआ है, जब यूपीएससी के मौजूदा चेयरमैन प्रदीप कुमार जोशी, जो कि छत्तीसगढ़ पीएससी के चेयरमैन रहे हैं, और वे पीएससी-2003 के घोटाले के पूरी तरह वाकिफ रहे हैं। आईएएस अवॉर्ड के दावेदारों ने अपना सबकुछ झोंक दिया था, और उन्हें सफलता भी मिल गई। ऐसे में यह कहना गलत नहीं है कि ईमानदारी महंगा शौक है।
धर्मजीत सिंह की भाजपा से बढ़ती नजदीकी
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) को क्या एक बार फिर झटका लगने वाला है? यह सवाल इसलिये उठ रहा है क्योंकि जोगी परिवार के विश्वस्त विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर ने एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से उनके बिलासपुर प्रवास के दौरान मुलाकात की। मरवाही उप-चुनाव में भाजपा को समर्थन देने का निर्णय जकांछ ने लिया तो इसके पीछे धर्मजीत सिंह ही थे। जकांछ से दो विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा पहले से ही दूरी बनाकर चल रहे हैं और कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं। मरवाही सीट पर कांग्रेस की जीत के बाद एक सीट का नुकसान जकांछ को पहले ही हो चुका है। अब धर्मजीत सिंह भी पार्टी से दूरी बनाते हुए दिख रहे हैं।
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर डॉ. रेणु जोगी को जिम्मेदारी दी गई तब भी कुछ लोग सवाल पूछ रहे थे कि उनसे अधिक पुराने नेता धर्मजीत सिंह को यह मौका क्यों नहीं दिया गया। इससे एक ही परिवार की पार्टी होने के आरोप से जकांछ को बचाया जा सकता था। इन दिनों उन्होंने वर्तमान विधानसभा क्षेत्र लोरमी की जगह पंडरिया में सक्रियता बढ़ा दी है। यह जकांछ को मजबूत करने के लिये है या खुद के लिये नये ठिकाने की तलाश, भविष्य बतायेगा। धर्मजीत सिंह का कहना है कि एक वरिष्ठ नेता होने के कारण वे सौजन्यतावश डॉ. रमन सिंह से मिलने गये थे। वैसे, धर्मजीत के लिये अभी रणनीति का खुलासा करना जरूरी भी नहीं है क्योंकि चुनाव तो तीन साल बाद है। मेल-जोल बनाये रखना काफी है।
वैक्सीन की तैयारी और लोगों की जिज्ञासा
कोरोना से बचाव के लिये कौन सी वैक्सीन आयेगी, कब तक आयेगी, कितनी मात्रा में आयेगी अभी कुछ पता नहीं है लेकिन केन्द्र और राज्य सरकार की तरफ से रोजाना नये-नये निर्देश जिला मुख्यालयों में पहुंच रहे हैं। लगभग हर जिले में अधिकारी-कर्मचारियों की बैठकों का सिलसिला चल पड़ा है। वैक्सीन कैसे रखना है, कितनी जगह लगेगी, वितरण कैसे होगा, किनको टीके लगाये जायेंगे तय कर लिया गया है। सरकारी, निजी अस्पताल के डॉक्टरों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, मितानिनों तक को व्यस्त कर दिया गया है।वैक्सीन लगाने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। दूसरी तरफ आम लोगों में दो तरह की प्रतिक्रियायें दिख रही है। एक वर्ग बेसब्री से वैक्सीन की प्रतीक्षा कर रहा है और आते ही टीका लगवाना चाहता है ताकि कोरोना से चिंतामुक्त हों। दूसरा तबके को लगता है कि एक दिन में तो 100 वैक्सीन ही लगाने की बात हुई है। पहले स्वास्थ्य विभाग के वारियर्स को लगना है तो उनकी बारी आने में तो साल दो साल लग जायेंगे। कुछ लोग यह भी पूछ रहे हैं कि कोरोना वैक्सीन मुफ्त लगेगी या पैसे देने होंगे। देने होंगे तो कितने? और क्या यह ब्लैक में भी मिल जायेगी?
कब चलेगी लोकल ट्रेन?
बिलासपुर रेलवे जोन के अधिकारियों को कोरोना को लेकर काफी चिंता दिखाई दे रही है। शायद इसी वजह से लोकल और मेमू ट्रेन अब तक शुरू नहीं की गयी हैं। रायपुर, दुर्ग, कोरबा, रायगढ़, राजनांदगांव, गोंदिया, पेन्ड्रारोड आदि के यात्रियों को परेशानी इससे बढऩे लगी है। कुछ कम दूरी की ट्रेनों को चलाया भी जा रहा है तो उसे फास्ट ट्रेन बनाकर। यानि छोटे स्टेशनों के यात्रियों को लाभ ही नहीं मिल पा रहा है। दूसरे कई राज्यों में लोकल ट्रेन शुरू हो चुकी है। कोरोना की मार बुरी तरह से झेलने वाली दिल्ली भी मेट्रो ट्रेनों को शुरू कर चुकी है। लोकल ट्रेन में गांवों से शहर जाकर फैक्ट्रियों, प्राइवेट संस्थानों में काम करने वाले लोग, मजदूर और छोटे व्यापारी सफर करते हैं। इनका काम धंधा या तो बंद हो चुका है या फिर अपने कार्यस्थल पर पहुंचने के लिये ज्यादा खर्च इन्हें करना पड़ रहा है। रेलवे का कहना है कि लोकल ट्रेनों में सीट रिजर्वेशन कठिन काम है जबकि अभी सिर्फ रिजर्वेशन के बगैर सफर की मंजूरी मिली हुई है। पर व्यवहार में ऐसा नहीं है। जिन ट्रेनों में रिजर्वेशन हो रहा है उनमें भी सोशल डिस्टेंस की धज्जियां उड़ रही है। कोरोना गाइडलाइन का पालन रायपुर, बिलासपुर जैसे बड़े स्टेशनों पर तो रेलवे कर रही है पर बाकी स्टापेज में सावधानी नहीं है। दरअसल, लोकल ट्रेनों का किराया काफी कम होता है और रेलवे के लिये इन्हें चलाना घाटे का सौदा होता है। इसलिये इन ट्रेनों को नहीं चलाने की एक वजह यह भी हो सकती है।