राजपथ - जनपथ
सतयुग से चल रही सप्लाई...
विधानसभा में हास-परिहास के बीच कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने सप्लायरों के संगठित गिरोह पर बेबसी जताई। वे लगातार शिकायतों पर कार्रवाई कर रहे हैं, लेकिन गड़बड़ी है कि रूकने का नाम नहीं ले रही है। वे कह गए, कि कंपनी, सप्लाई और ट्रैक्टर पुण्यात्मा होते हैं। आपके समय में भी थे। हमारे समय में हैं, और मुझे लगता है कि सतयुग और द्वापर में भी इन्हीं के द्वारा ही सप्लाई किया गया होगा।
इससे पहले बीज सप्लाई में गड़बड़ी मामले पर सदन में चर्चा के दौरान धर्मजीत सिंह ने कहा कि दाल तडक़ा लगाने वाला बीज की सप्लाई कर रहा है। बीज निगम-हार्टीकल्चर मिशन में हर साल सैकड़ों करोड़ की बीज व अन्य सामग्री की सप्लाई होती है। पिछली सरकार में तो एक मिलर का बीज-हार्टीकल्चर के सप्लाई तंत्र में काफी दबदबा था। करोड़ों की गड़बड़ी भी हुई, लेकिन किसी का बाल बांका नहीं हुआ।
मौजूदा हाल यह है कि बीज-हार्टीकल्चर सप्लाई तंत्र में होटल कारोबारी का दबदबा है। हल्ला तो यह भी है कि प्रोफेसर को मिशन संचालक बनवाने में कारोबारी की भूमिका थी। करीब सालभर बाद अलग-अलग स्तरों पर हुई शिकायतों के बाद प्रोफेसर को हटाया गया। मगर अनियमितता जारी है। वैसे भी आदिकाल से चल रही व्यवस्था को बदल पाना आसान नहीं है।
बृजमोहन पॉजिटिव, कई संदिग्ध
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी कोरोना की चपेट में आ गए हैं। उनके संपर्क में आने वाले आधा दर्जन विधायक संदिग्ध हो गए हैं। हुआ यूं कि अग्रवाल को गुरूवार को हल्का बुखार था। उन्होंने विधानसभा में अपना कोरोना टेस्ट कराया। इसके बाद सदन और फिर पार्टी के कार्यक्रमों में व्यस्त हो गए। शुक्रवार को उन्होंने किसान सत्याग्रह में हिस्सा लिया, जिसमें नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, पूर्व सीएम रमन सिंह, अजय चंद्राकर और अन्य पार्टी विधायकों के साथ धरने पर बैठे। कौशिक और अन्य विधायक कोरोना के खतरे को लेकर बेपरवाह थे, और उन्होंने मास्क ठीक से नहीं लगाया था।
कार्यक्रम निपटने के बाद कोरोना टेस्ट रिपोर्ट आई, जिसमें बृजमोहन पॉजिटिव पाए गए। बृजमोहन होम आइसोलेशन में हैं, और उनकी तबीयत भी बेहतर है। मगर कांग्रेस ने कोरोना टेस्ट कराने के बाद भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने पर बृजमोहन के खिलाफ महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई की मांग कर दी है। वैसे तो टेस्ट रिपोर्ट आने तक होम आइसोलेशन में रहने का नियम है। हालांकि बृजमोहन अग्रवाल इससे पहले आधा दर्जन बार कोरोना जांच करा चुके हैं।
हर बार उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई। इस बार भी उनका एंटीजन टेस्ट निगेटिव था, लेकिन आरटीपीसीआर टेस्ट पॉजिटिव आ गया। अब वे सदन की कार्रवाई में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। जबकि सत्र में तीन बैठकें और होनी है। बृजमोहन के संपर्क में आने वाले बाकी विधायक भी सदन की कार्रवाई में हिस्सा ले पाएंगे, इसमें संदेह है। ऐसे में 28 तारीख को ही शीतकालीन सत्र का अवसान हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी अनुपूरक बजट तो पास हो ही गया है।
बिजली तारों से पक्षियों को भगाने का आदेश
शहर के किसी भी छोर पर नजर डालें, अक्सर शाम के वक्त हजारों पक्षियां बिजली तारों पर एक कतार में लगी दिखाई देती हैं। ये पक्षियां सब स्टेशन और हाईटेंशन तारों पर ज्यादा मिलेंगीं, क्योंकि वह शहर के कोलाहल से दूर की जगह होती है। चूंकि वे जमीन के सम्पर्क में होते नहीं इसलिये उन्हें झटका नहीं लगता। उनकी जान को कोई खतरा नहीं, ऐसा हम मानकर चलते हैं, पर ऐसा नहीं है। जब पक्षियां दो तारों के चपेट में एक साथ आ जायें तो उनको करंट लगना तय है। कई बार दो अलग-अलग तारों पर बैठी चिडिय़ा एक दूसरे के सम्पर्क में आती हैं। ऐसे मौके पर करंट लगने के कारण कतार की सारी पक्षियां चपेट में आ जाती हैं। बस्तियों में जहां तार नजदीक होते हैं और उलझे हुए भी हों वहां ऐसी घटनायें ज्यादा होती हैं। विलुप्त हो रही चमगादड़ और सोन चिरैया, गोड़ावन जैसी पक्षियों की मौत तो अक्सर हो जाती हैं क्योंकि उनके बड़े पंख होते है। राजस्थान में जैसलमेर, बाड़मेर जगहों पर तो हर माह 19-20 हजार पक्षियां करंट से मारी जाती हैं। अब राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण, एनजीटी ने इसे गंभीर समस्या मानते हुए बड़ा ऑर्डर पारित किया है। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद एनजीटी के अध्यक्ष ने सभी राज्य सरकारों और केन्द्र से कहा है कि बिजली तारों से पक्षियों को भगाने के लिये उपकरण लगायें। उन्होंने वर्तमान में चल रही और भविष्य में आने वाली परियोजनाओं में भूमिगत केबल लगाने का भी निर्देश दिया है। हालांकि अध्ययन राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और मध्यप्रदेश में पक्षियों की मौत पर किया गया है पर आदेश को पूरे देश में लागू किया जाना है। विशेषज्ञ बताते हैं कि पेड़ों के लगातार कटने की वजह से पक्षियों को बिजली तारों पर ठिकाना बनाना पड़ता है। यदि एनजीटी के आदेश का शत-प्रतिशत पालन किया गया तो फिर ये पक्षी कहां जायेंगे? पेड़ तो पहले से ही छिन चुके हैं।
विद्या बालन कैसी लगेंगीं तीजन बाई के रूप में?
पंडवानी गायकी के चलते देश और दुनिया के कई हिस्सों में छत्तीसगढ़ का नाम ऊंचा कर चुकीं पद्मविभूषण तीजन बाई की जीवन यात्रा पर एक फिल्म बॉलीवुड में बनने जा रही है। उनका किरदार प्रख्यात अभिनेत्री विद्या बालन निभायेंगी। जैसी की खबर है कुछ दिन बाद वह छत्तीसगढ़ी और पंडवानी सीखने के लिये भी रायपुर पहुंचने वाली हैं। अब लोगों ने तीजन बाई और विद्या बालन के चेहरे को एक साथ रखकर अनुमान लगाना शुरू कर दिया है कि वह मेकअप के बाद तीजन की तरह दिखेगी या नहीं? कुछ यह भी कह रहे हैं कि चेहरा तो मैच कर लेगा पर तीजन बाई के हाव-भाव, उनकी आवाज और शैली विशिष्ट है, जिसको अपनाने में उन्हें खासी मेहनत करनी पड़ेगी। तीजन बाई को आदर्श मानकर छत्तीसगढ़ में पैदा हुए, रचे-बसे यहीं की माटी के कई कलाकारों ने उनकी नकल करने की कोशिश की पर उनका कोई विकल्प नहीं है। लोगों में उत्सुकता है कि विद्या बालन कितना निभा भाती है तीजन की असल जिंदगी को। तीजन के नाना के किरदार में अमिताभ बच्चन भी हैं पर उनके लिये यह थोड़ा आसान होगा क्योंकि नाना के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते, न ही उन्हें देखा। पर तीजन सबके सामने हैं। एक सवाल यह भी है कि इस तरह की पहल छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माताओं की ओर से क्यों नहीं होती, जबकि हर साल सौ से ज्यादा फिल्में आ रही हैं।
टैक्स वसूली का फायदा किसे मिले?
ऐसा नहीं है कि नगर-निगमों के पास अपनी टीम नहीं है पर पता नहीं किस दबाव में तीन साल पहले निजी कम्पनियों के हवाले टैक्स वसूल करने का जिम्मा दे दिया गया। लोगों के घर समय-बे समय पहुंचने, धमकाने की शिकायत मिलने पर नगर निगमों के प्रशासन ने उनके साथ अपने कर्मचारियों को भी लगा दिया। ये वही काम कर रहे हैं जो नगर निगम के राजस्व कर्मी करते आये हैं। हाल यह भी है कि जो नियमित टैक्स जमा कर रहे हैं उन्हें भी बार-बार फोन और एसएमएस कर वसूली के नाम पर तंग किया जाता है। चूंकि धमकाने, दबाव डालने से मना किया गया है, इसलिये ये प्राइवेट कम्पनी वहीं से टैक्स वसूल रही हैं, जहां से नगर निगम के लोग भी आसानी से वसूल कर लेते हैं। जहां दिक्कत हैं और बड़े करदाता हैं निजी कम्पनियां उन्हें छू नहीं रही है। नगर निगम के कर्मचारियों को अब पूरी तनख्वाह के साथ या तो खाली बिठा दिया गया है या फिर वहां लगाया जा रहा है जहां बड़ी रकम फंसी है और वसूली करना टेढ़ी खीर है। तीन माह पहले भुगतान करने पर करदाता को केवल दो प्रतिशत की छूट है जबकि निजी कंपनी ने एक शहर से 100 करोड़ की टैक्स वसूल की हो तो 7.5 करोड़ रुपये उसके खाते में डाले जा रहे हैं। इतना कमीशन तो साहूकारी के अलावा किसी धंधे में नहीं है। बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई में यह सिस्टम भाजपा के समय से चल रहा है। रायपुर नगर-निगम ने अब ठीक ही किया जो इस प्रस्ताव को लागू करने से पहले गहराई से विचार कर रही है। दावा है कि यहां वसूली शत-प्रतिशत हो जाती है। पर जिन नगर निगमों में वसूली का यह तरीका अपनाया जा चुका है वहां भी विचार करना चाहिये कि यह जारी रहे या नहीं।