राजपथ - जनपथ
2003 का भूत मंडरा रहा है
राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस अवॉर्ड के लिए डीपीसी को दो माह हो चुके हैं, लेकिन अभी तक अधिसूचना जारी नहीं हो पाई है। सात रिक्त पदों के लिए नवम्बर में डीपीसी हुई थी। आमतौर पर डीपीसी होने के एक-दो हफ्ते के भीतर अधिसूचना जारी हो जाती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया।
सुनते हैं कि डीपीसी से पूर्व जरूरी विवादों का निराकरण नहीं हो पाने के कारण ऐसी स्थिति बनी है। मसलन, एडिशनल कलेक्टर संतोष देवांगन के नाम पर विचार तक नहीं किया गया। जबकि कैट ने 23 अक्टूबर को आदेश पारित कर देवांगन के नाम पर भी विचार करने के लिए कहा था, और चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा था। संतोष देवांगन के खिलाफ फिलहाल कोई जांच लंबित नहीं है। खास बात यह है कि कैट के आदेश के बाद डीपीसी हुई थी, लेकिन वरिष्ठता क्रम में ऊपर होने के बाद भी संतोष देवांगन के नाम पर विचार क्यों नहीं किया गया, यह अभी साफ नहीं है। सभी संबंधित पक्षों की तरफ से अभी तक कैट में जवाब दाखिल भी नहीं किया गया है।
एक विवाद यह भी है कि राप्रसे के 98 बैच के अफसर अरविंद एक्का और हिना नेताम के खिलाफ जांच चल रही है। विभागीय जांच की वजह से पदोन्नति तो नहीं हो सकती थी, लेकिन पद रोके जाने चाहिए थे, मगर ऐसा नहीं हुआ, और नीचे के सभी अफसरों को पदोन्नति की अनुशंसा कर दी गई। जिन 2003 बैच के अफसरों को पदोन्नति देने की अनुशंसा की गई है, उनकी नियुक्ति ही सवालों के घेरे में हैं।
हाईकोर्ट ने पीएससी-2003 की भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी को माना था, और नए सिरे से चयन सूची तैयार करने के निर्देश दिए थे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा रखी है, लेकिन भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाली वर्षा डोंगरे ने यूपीएससी और डीओपीटी व राज्य सरकार से आग्रह किया था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक 2003 बैच के अफसरों को पदोन्नति नहीं दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट में उनकी याचिका लंबित है। मगर मलाईदार पदों पर जमे अफसरों के दबाव के चलते विवादों का निपटारा किए बिना पदोन्नति बैठक तो हो गई, लेकिन अधिसूचना जारी नहीं हो पाई है। हालांकि कुछ लोग जल्द अधिसूचना जारी होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन विवाद का निपटारा जल्द होने के आसार नहीं दिख रहे हैं।
इतने बड़ों पर कौन हाथ डाले?
सरकारी जमीन कब्जा करने में अफसर भी पीछे नहीं रहे हैं। एक अफसर ने तो बोर्ड में पदस्थापना के दौरान मकान खरीदा, फिर मकान से सटी जमीन पर कब्जा कर लिया। बाद में सरकारी योजना का फायदा उठाकर अवैध कब्जे को वैध करा लिया। एक बड़े अफसर ने तो अपने बंगले के पास की सरकारी जमीन में घेरा लगाकर बकायदा साग-भाजी भी उगाना शुरू कर दिया है। अब किसी छोटे अफसर औकात, जो इतने बड़े लोगों के अवैध कब्जे पर निगाह डाले।
सीएम के मिजाज से नई चिंता
संभागवार जिला मुख्यालयों का प्रवास कर रहे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का अधिकारी-कर्मचारियों के साथ संवाद खूब चर्चा में है। विभिन्न संगठनों, कार्यकर्ताओं से मुलाकात के अलावा वे अफसरों से चर्चा के लिये अलग से समय निर्धारित कर रहे हैं। इसमें वे सरकारी कामकाज की चर्चा तो बिल्कुल नहीं कर रहे न फटकार लगा रहे, बस हाल-चाल पूछ रहे हैं। मुख्यमंत्री से मिलकर अधिकारी खुश भी हो रहे हैं और अपने मित्रों को बता रहे हैं कि उन्होंने क्या पूछा, किस तरह पूछा और उन्होंने क्या जवाब दिया। इन सबके बीच जिलों की कमान संभाल रहे कुछ आईएएस, आईपीएस की चिंता बढ़ गई। जिले में काम करके दिखाना है, तो अपने मातहतों से वे इस तरह तो पेश आ नहीं सकते। कुछ सख्ती भी करनी होगी, कुछ फटकार भी लगानी होगी, शो कॉज वगैरह भी देते रहना पड़ेगा।
दूसरे आईएएस ने समझाया कि हम पर कोई बंदिश नहीं है। इस संवाद से यह बात समझ में आई है कि परफार्मेंस कलेक्टर, एसपी का देखा जायेगा। मुगालते में रहने का नई, जवाबदारी हम पर बढ़ गई है कामकाज दुरुस्त रखने की। पूछताछ हमीं से की जायेगी। अब ज्यादा अलर्ट मोड में रहना है।
ट्रेन तो सब चलायेंगे पर स्पेशल
रेस्तरां में स्पेशल थाली, स्पेशल सब्जी, चाय का रेट ज्यादा तो होता है पर उसमें जमीन-आसमान का फर्क नहीं होता। कोरोना लॉकडाउन के दौरान घर पहुंचने के लिये बदहवास मजदूरों से किराया वसूली के चलते रेलवे के रवैये पर सवाल उठा था, पर अब तो साफ है कि रेलवे ने कोरोना काल में कमाई की कोई कसर बाकी नहीं रखी है। दूसरी तरफ जिम्मेदारी, सेवाओं से भी हाथ खींच रही है। लॉकडाउन के दौरान बंद की गई ट्रेनों को धीरे-धीरे शुरू किया गया। पहले त्यौहारों के नाम पर पूजा स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं, जिसका धीरे-धीरे विस्तार किया गया। अब तक वे ट्रेनें चल रही है। लोगों में कोरोना का खौफ कम हुआ तो और ट्रेनें शुरू की गई। अब छत्तीसगढ़ से रोजाना करीब 23 यात्री ट्रेनें गुजरने या छूटने लगी हैं। मगर सब स्पेशल के नाम पर। नियमित चलाई जाने के बावजूद स्पेशल दर्जे पर रखने की खास वजह है। इन ट्रेनों में किसी भी जगह के लिये आप बैठें न्यूनतम किराया 500 किलोमीटर का होगा। यानि रायगढ़ गये तो भी वही किराया जो नागपुर जाने पर है। उस पर हालत यह है कि पेन्ट्री कार शुरू नहीं की गईं, सफाई के कर्मचारी गिने चुने स्टेशनों में हैं। आम यात्रियों को मिलने वाला सस्ता भोजन जन आहार बंद है। छोटे स्टेशनों में स्टापेज बंद हैं। मजदूरों, छोटे व्यापारी, कामकाजी लोगों के लिये करीब 10 माह से ट्रेनों पर सफर करना मुहाल बना हुआ है।
और, लगे हाथ बता दें कि पेट्रोल का दाम आज ही 83.95 पैसे हो गया जो अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है।
तबादले के बाद भी जमे रहना
आम तौर पर राज्य और अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को तबादला आदेश मिलने के दो-चार दिन के भीतर रिलीव कर दिया जाता है। पर मुंगेली जिले में एक राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी स्थानांतरण के डेढ़ माह बाद भी रिलीव नहीं किये गये हैं। बताया जाता है कि दुर्ग जिले में जहां उन्हें भेजा जा रहा है वह उन्हें बिल्कुल रास नहीं आ रहा है। वहां खाली बैठने के अलावा कोई काम नहीं है। बताते हैं कि वे करीबियों से कह रहे हैं कि कहीं भी भेज दो पर कुछ काम करने के लिये तो छोड़ो। फिलहाल उनको डेढ़ माह से रिलीव नहीं किये जाने की शिकायत पुलिस मुखिया से भी हो गई है।