राजपथ - जनपथ
सबसे बात, सबको मौका...
भाजपा की नई प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने थोड़े समय में ही अपनी अलग कार्यशैली से कार्यकर्ताओं का दिल जीतने में सफल रही हैं। वे छोटे-बड़े नेताओं को अपनी बात रखने का पूरा अवसर दे रही हैं। पिछले कुछ समय से पार्टी में नियुक्तियों को लेकर भारी नाराजगी देखी जा रही थी। चाहे नेता प्रतिपक्ष का चयन हो, या फिर प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति, पार्टी के कई बड़े नेताओं ने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर कर दी थी। असंतुष्ट नेता पार्टी की गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय नहीं थे, लेकिन पुरंदेश्वरी के प्रभारी बनने के बाद वे भी सक्रिय हो गए हैं।
मोर्चा-प्रकोष्ठ के प्रभारियों की बैठक में तो उन्होंने कह भी दिया कि कार्यकर्ता नाराज क्यों हैं, यह पता लगाना होगा। कोई नेता उनसे अलग से चर्चा के लिए समय मांगता है, तो वे तुरंत तैयार हो जा रही हैं, और उनकी पूरी बातों को ध्यान दे रही हैं। वे ज्यादातर सांसदों के साथ अलग से चर्चा कर चुकी हैं। पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय की भी पुरंदेश्वरी से अकेले में चर्चा हो चुकी है। जिलों का दौरा पूरा करने के बाद वे दिल्ली रवाना हुई, तो उन्हें छोडऩे के लिए दुर्ग सांसद विजय बघेल सहित कई नेता एयरपोर्ट गए थे। कुल मिलाकर पुरंदेश्वरी के कामकाज के तौर तरीकों से असंतुष्ट नेताओं का भी उन पर भरोसा दिख रहा है।
एम्बुलेंस से भी लोग जलते हैं?
ट्रकों और दूसरी गाडिय़ों के पीछे कई किस्म के फलसफे लिखे दिखते हैं। एक एम्बुलेंस के पीछे कल लिखा दिखा- जलो मत, कर्ज में हैं।
अब सवाल यह है कि एम्बुलेंस देखकर इन दिनों तो लोग नजरें फेर लेते हैं कि उसके भीतर कोरोना का कोई मरीज न हो। सडक़ किनारे एम्बुलेंस खड़ी हो, तो भी लोग कतराकर दूर से निकल जाते हैं। कल उत्तर भारत में एक जगह एक एम्बुलेंस में ले जाया जा रहा मरीज रास्ते में मर गया। कोरोना के डर और दहशत में एम्बुलेंस के कर्मचारी लाश सहित गाड़ी रास्ते में ही छोडक़र भाग गए।
लेकिन कर्ज लेकर जो लोग कारोबार के लिए ऐसी गाडिय़ां लेते हैं, वे यह भी चाहते हैं कि किसी की नजर न लगें। शायद इसलिए भी कई किस्म की बातें गाडिय़ों के पीछे लिखी जाती हैं, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, या जलो मत, बराबरी करो वगैरह-वगैरह।
वैसे एक बात है कि अब कोरोना-वैक्सीन आने पर सबसे पहले अस्पताल के कर्मचारियों को और एम्बुलेंस कर्मचारियों को यह टीका लगेगा। हो सकता है ऐसे में टीका लगे एम्बुलेंस कर्मचारी को देखकर वे लोग जलें जो टीका लगवाना चाहते हैं लेकिन जिनकी बारी महीनों या बरसों बाद आएगी।
कोविन एप में पिनकोड की समस्या
कोरोना वैक्सीनेशन की तारीख जैसे-जैसे करीब आती जा रही है, इससे जुड़ी कई ऐसी कई शंकायें खड़ी हो रही हैं, जिनका समाधान केन्द्र के पास अब तक नहीं है। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने डॉ. हर्षवर्धन से दूरस्थ क्षेत्रों में वैक्सीन पहुंचाने के लिये हवाई सुविधा की मांग कर डाली। देर-सबेर इस पर हो सकता है फैसला ले लिया जाये। पर दो ऐसे सवाल थे, जिन पर कोई जवाब फिलहाल नहीं है। जैसे पूछा गया कि कोई कोरोना संक्रमित, निगेटिव होने के कितने दिन बाद टीका लगवा सकता है? जवाब आया कि 14 दिन से 3 माह के भीतर। सिंहदेव का कहना ठीक ही था कि 14 दिन पर्याप्त है या 3 माह। साफ-साफ बतायें। केन्द्रीय मंत्री ने स्पष्ट अवधि बताने के लिये समय मांगा है। दूसरी समस्या भी देश के कई नये जिलों में आ रही होगी। कोविन एप में रजिस्ट्रेशन के दौरान जिले का पिनकोड नंबर भी दर्ज करना है। अपने प्रदेश में गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही बिल्कुल नया जिला है, जिसके लिये अभी अलग पिनकोड नंबर नहीं है। यदि पुराने जिले बिलासपुर का पिन कोड नंबर डाला जाये तो सॉफ्टवेयर उसे एप्रूव ही नहीं करेगा। अभी इसका जवाब आना बाकी है।
पुरुष आयोग के लिये भी पहल हो ही जाये
महिलाओं के अत्याचार से पीडि़त पतियों को प्राय: गंभीरता से लिया ही नहीं जाता। देश में ‘पत्नी प्रताडि़त संघ’ जैसे कई संगठन हैं। बीच-बीच में इनके धरना, प्रदर्शन जैसे आंदोलन की बातें देखने- सुनने में आती रहती हैं। पर ये संगठन ताकतवर नहीं बन पाये हैं। बहुत से लोग तो इस झिझक से इन से नहीं जुड़ते क्योंकि उनको मर्द के दर्द का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं भाता। पर ऐसे लोगों की हौसला आफजाई करते रहना चाहिये। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष ने कहा है कि महिलाओं और पुरुषों दोनों को न्याय दिलाने में आयोग की भूमिका निष्पक्ष रहती है। इसके पहले भी उन्होंने कहा था कि कई बार महिलायें ही गलती करती हैं, बाद में पुरुषों पर दोष मढ़ती हैं।
यह ठीक है कि फैसला दोनों पक्षों के गुण-दोष को देखकर ही किया जाना चाहिये। पर समाजशास्त्री ज्यादा ठीक तरह से बता पायेंगे कि महिलाओं से गलती होती भी है तो उसके लिये पुरुषों की ओर से दिया जाने वाले झांसे, प्रलोभन तथा आर्थिक, मानसिक, सामाजिक सुरक्षा के आश्वासन की क्या भूमिका होती है।
अब पत्नी प्रताडि़त संगठनों से जुड़े लोगों को पुरुष आयोग गठित करने के पक्ष में आवाज चाहिये। क्योंकि महिला आयोग चाहे उनसे जितनी भी सहानुभूति रखे, सिर्फ महिलाओं की शिकायत सुन सकता है। ऐसा आयोग बनने पर कुछ और रिटायर्ड लोगों के पुनर्वास का इंतजायेगा. जाम हो
बिग-बी की आवाज का अजीर्ण होना
देश दुनिया के करोड़ों प्रशंसक अमिताभ बच्चन को बिग-बी, सुपर-स्टार, सदी का महानायक कहते हैं। अभिनय के अलावा उनकी जानदार आवाज ही है, जिन्होंने उन्हें इस ऊंचाई पर पहुंचाया । लोग उनके डॉयलाग की नकल बरसों से करते आ रहे हैं। आवाज की बहुत से रेडियो शो, विज्ञापनों, कॉमेडी के कार्यक्रमों में नकल होने लगी। करीब 10 साल पहले एक गुटखा कम्पनी ने भी ऐसा किया। इसके बाद बच्चन ने शायद अपनी आवाज का कॉपीराइट करा लिया। अब उनकी आवाज की नकल करना अपराध है।
इस बेशकीमती आवाज का सरकार भी जागरूकता अभियान में इस्तेमाल करती रही है। कोरोना संक्रमण जब फैलना शुरू हुआ तो मोबाइल फोन के कॉलर ट्यून पर एक महिला की आवाज में सतर्कता का संदेश दिया जाता रहा, पर उसके बाद भी कोरोना के केस बढ़े। शायद सरकार को लगा कि असर नहीं हो रहा है। शायद तब उन्होंने अमिताभ के साथ अनुबंध किया। संयोग देखिये, कोरोना के केस घटने लगे हैं। पर अब लोग ऊबने भी लगे हैं। किसी को इमरजेंसी कॉल करनी हो, मुसीबत में फंसा हो, जान पर बन आई हो, तब भी कोरोना संदेश। एक दिन में दस बार कॉल करें तो दस बार नसीहत। लोग मोबाइल कम्पनियों और सरकार से गुहार लगाने लगे कि ये बंद करो। पर शायद सरकार को लगता है कि कोरोना को जड़ से मिटाने में यही एक तरीका कारगर रहेगा। हलाकान लोगों को अब उम्मीद दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका से है। हालांकि याचिकाकर्ता ने कॉलर ट्यून में अमिताभ की जगह किसी असली वारियर्स को मौका देने की मांग की है। उनको अमिताभ से यह काम लेने पर शिकायत है।
अब इधर एक सलाह आई है कि कोरोना अलर्ट को सुनने से कैसे बचें। उनका कहना है कि दो-चार सेकेन्ड सलाह सुनने के बाद कॉल काट दें और उसी नंबर को डायल कर लें। दूसरी बार आप सीधे रिंग टोन में पहुंच जायेंगे। आजमाकर देखें। कई लोगों का कहना है, तरीका कारगर है।