राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : ऑनलाइन चुनौती
01-Feb-2021 5:27 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : ऑनलाइन चुनौती

ऑनलाइन चुनौती

ऑनलाइन क्लास लेने में कोताही बरतने पर दर्जनभर कॉलेज शिक्षकों को नोटिस थमा दिया गया है। कुछ जानकारों का कहना है कि कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास लेना भी चुनौतीपूर्ण है। कई जगहों पर तो विद्यार्थियों का आचरण ऐसा रहता है कि शिक्षक तंग आ जाते हैं। पिछले दिनों एक इंजीनियरिंग कॉलेज में ऑनलाइन क्लास के दौरान एक छात्र का सवाल था कि मैडम, आपके टूथपेस्ट में नमक है? ज्यादातर जगहों पर ऑनलाइन क्लास में इसी तरह हंसी-मजाक की खबरें आती हैं। ऑनलाइन क्लास में शरारती विद्यार्थियों को दण्ड भी नहीं दिया जा सकता है। इसका वे भरपूर फायदा उठाते हैं। कुल मिलाकर ऑनलाइन क्लासेस शिक्षकों के लिए परेशानी का सबब बन गया है।

ऑनलाईन कक्षाओं का एक अभूतपूर्व बोझ उन कॉलेज प्राध्यापकों पर भी पड़ रहा है जिन्होंने कम्प्यूटर पर अधिक काम नहीं किया है, या जिन्हें ऑनलाईन काम का अधिक तजुर्बा नहीं है। उन्हें पहले तो कम्प्यूटर और ऑनलाईन का काम खुद सीखना पड़ रहा है, और फिर कॉलेज के छात्र-छात्राओं को सिखाना पड़ रहा है। जो गरीब बच्चे हैं उनके सामने स्मार्टफोन न होने की भी समस्या है। कई गरीब परिवारों में दो-चार लोगों के बीच एक स्मार्टफोन है, और अलग-अलग समय पर लोग जरूरत के मुताबिक उसका इस्तेमाल करते हैं, और जरूरी नहीं है कि छात्र-छात्राओं की ऑनलाईन क्लास के वक्त परिवार में फोन उनके पास हो।

कम्प्यूटर और ऑनलाईन के हिसाब से लेक्चर तैयार करने का जो नया बोझ कॉलेज प्राध्यापकों पर आया है उससे उनकी उत्पादकता बुरी तरह प्रभावित हुई है। उनका खासा समय सीखने और पॉवर पाईंट प्रजेंटेशन जैसे कामों में जा रहा है। सरकार ने आमतौर पर यह काम 20 हजार रूपए महीने के कोई संविदा कम्प्यूटर कर्मचारी कर सकते थे, इस काम में दो लाख रूपए महीने तनख्वाह वाले प्राध्यापकों को झोंका गया है जिन्हें वक्त भी दस गुना लग रहा है। दरअसल राज्य सरकार ने काम को डिजिटल और ऑनलाईन, वर्क फ्रॉम होम, और कम्प्यूटरीकरण की तैयारी भी नहीं की, और प्राध्यापक तबका तो आरामतलब और बेजुबान रहता है।

राज्य सरकार को कम से कम एक कमेटी ऐसी बनानी चाहिए जो कि अगले किसी लॉकडाऊन के वक्त, या बिना लॉकडाऊन के भी काम को कम्प्यूटर और ऑनलाईन करने का ढांचा विकसित कर सके। ऐसा न होने पर सरकार की उत्पादकता बुरी तरह गिर गई है और किसी को इसकी खास परवाह भी नहीं है। और तो और कॉलेजों में तेज रफ्तार इंटरनेट तक नहीं लग पाए हैं, और प्राध्यापक अपने-अपने इंतजाम से काम चला रहे हैं।

बंद कमरे की बात का राज !

सीएम भूपेश बघेल ने अपने कांकेर प्रवास के दौरान जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे नरेश ठाकुर से बंद कमरे में करीब 1 घंटे चर्चा की। नरेश उन चुनींदा नेताओं में हैं, जिन्हें राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं। वे एआईसीसी के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं।  ऐसे में नरेश के साथ गुफ्तगू की पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है।

सुनते हैं कि नरेश से सीएम ने कांकेर की राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चा हुई है। कांकेर जिला कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां की चारों  विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास है। इससे पहले भी कांकेर में अंतागढ़ को छोडक़र बाकी सीटें कांग्रेस के पास थीं। नगरीय निकाय और पंचायतों में भी कांग्रेस का कब्जा है। इन सबके बावजूद सरकार आने के बाद स्थानीय नेता आपस में टकरा रहे हैं।

एक खदान के ट्रांसपोटेशन के काम को लेकर भी स्थानीय प्रभावशाली नेताओं में काफी खींचतान हुई थी। बाद में शीर्ष स्तर पर हस्तक्षेप के बाद मामला निपट पाया। खैर, सीएम ने तमाम विषयों पर नरेश से चर्चा की है। इस मुलाकात के बाद नरेश ठाकुर को निगम-मंडल में जगह मिलने की चर्चा है।

कॉलेजों पर नैक की नकेल

ये अलग बात है कि दुनिया के 100 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में अपने देश का कहीं जिक्र नहीं है फिर भी यूजीसी कुछ कोशिशें करती रहती हैं। कॉलेजों की परफार्मेंस तय करने के लिये उसने नैक केलकुलेशन टीम बना रखी है। अनुदान इसी ग्रेडेशन से होना है। 

कॉलेजों के लिये नई गाइडलाइन यह तय की गई है कि जिनका भी नंबर 2.5 से नीचे आयेगा उसकी मान्यता खत्म कर दी जायेगी। इस घेरे में केवल निजी महाविद्यालय नहीं बल्कि सरकारी भी आयेंगे। मापदंडों में कॉलेज और शिक्षकों के बीच का अनुपात, परीक्षा परिणाम, शोध और उनकी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली शाबाशी, सब शामिल हैं। एक और बात कि कॉलेजों में भूतपूर्व छात्रों का संगठन यानि एल्यूमिनाई का गठन भी करना है। आपने जिस कॉलेज में पढ़ा हो और एल्यूमनाई का सदस्य बनने के लिये फोन नहीं आया हो तो समझ लीजिये कि पढऩे लिखने के बाद आपने क्या तरक्की वह आपके कॉलेज में पता नहीं है।

पुलिस में तृतीय लिंग की भर्ती

कोई घृणा की वजह से तो कोई भयभीत होने के कारण इनके आसपास कोई फटकना नहीं चाहता। यह जानते हुए भी ये सब हमारी ही तरह प्रकृति की कृतियां हैं। मांगलिक कार्यक्रमों में तो इनकी मौजूदगी बहुत जरूरी लगती है। नवजातों के आशीर्वाद के लिये, दिवाली के उजाले के लिये इनकी तलाश होती है, पर समाज पीछे ही इन्हें रखता आया है। पर धीरे-धीरे मानसिकता कितनी बदल सकती है यह किन्नरों ने अपनी काबिलियत साबित करके बताया। खाकी वर्दी पहनने के लिये इन्होंने रायपुर की पुलिस भर्ती में कूद की, दौड़ लगाई। सुप्रीम कोर्ट तक इन्होंने लड़ाई लड़ी तब जाकर उन्हें सरकारी सेवाओं में, खासकर पुलिस भर्ती में प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिला। आने वाले दिनों में इनमें से कुछ पुलिस वर्दी में दिखेंगे। अपराधियों की हालत इन्हें ड्यूटी करते हुए देखकर पतली हो जायेगी, यह कहना जरूरी नहीं।

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