राजपथ - जनपथ
सरगुजा के कलाकारों की नाराजगी
मैनपाट महोत्सव में खेसारीलाल यादव को लगभग 20 लाख रुपये देकर बुलाया गया। कैलाश खेर को, मालूम हुआ है, 25 लाख रुपये दिये जायेंगे। टीवी, यूट्यूब पर अक्सर दिख जाने वाले इन कलाकारों के पीछे महोत्सव के बजट का इतना बड़ा हिस्सा खर्च किये जाने पर स्थानीय कलाकारों ने अपना विरोध जताया है। लोककला और थियेटर से जुड़े कलाकार कहते हैं कि जब उन्हें बुलाया जाता है तो हाथ खींचकर बहुत कम पैसा दिया जाता है। भुगतान के लिये भी महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। पर ये कलाकार पूरी रकम हाथ में आये बिना मंच पर चढ़ते नहीं। विरोध में कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि कैलाश खेर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के घोर समर्थक हैं। उन्होंने किसान आंदोलन के विरोध में हाल ही में कई पोस्ट डाले हैं। कांग्रेस नेता अगर किसान आंदोलन के समर्थन में हैं तो उन्हें ऐसे मौके पर क्यों बुलाया गया?
इस बारे में जब खाद्य मंत्री अमरजीत भगत कहते हैं कि किस कलाकार को बुलाना है यह अफसर तय करते हैं। कैलाश खेर के किसान आंदोलन के खिलाफ पोस्ट्स पर कहा कि किसी की राजनीतिक विचारधारा क्या है, इससे क्या फर्क पड़ता है। कलाकार तो कलाकार है।
बेशक, पर कांग्रेस इसे फिजूलखर्ची मानती रही है, जब राज्योत्सव में भाजपा की सरकार इसी तरह से बड़ी रकम देकर बॉलीवुड कलाकारों को बुलाया करती थी। उसके विरोध में बयानबाजी की जाती थी। अब वही रास्ता इन्हें क्यों रास आ रहा है?
महोत्सव में अफरा-तफरी
भोजपुरी कलाकार खेसारी लाल यादव के कार्यक्रम में मैनपाट महोत्सव के दौरान लाठियां चल गई। जो बातें सामने आई हैं उसके अनुसार बैठक व्यवस्था ही ठीक नहीं थी। सामने जमा लोगों के कारण पीछे के लोगों को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, कुर्सियां पर्याप्त नहीं थी। साउन्ड सिस्टम भी खराब था। नाराज लोग कलाकार को करीब से देखने सुनने के लिये इधर-उधर चढऩे लगे और कई लोग जख्मी भी हो गये। पुलिस को सीधा उपाय समझ में आया लाठियां घुमाओ। इस घटना से महिलायें और बच्चे ज्यादा डर गये। अब पुलिस सफाई दे रही है कि लाठियां चलाई नहीं, सिर्फ लहराई। बारीक सा अंतर है। लाठी चार्ज करना एक दांडिक कार्रवाई है, इसलिये इस शब्द का तकनीकी तौर इस्तेमाल करने से प्रशासन परहेज करता है।
मैनपाट की छत्तीसगढ़ में अलग छाप है। यहां तिब्बतियों का रहवास और बौद्ध मंदिर हैं। 3400 फीट की ऊंचाई पर मौजूद अद्भुत प्राकृतिक छटा की वजह से इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहते हैं। महोत्सव का आयोजन इस पहचान को ही व्यापकता देने के लिये है, पर प्रशासनिक तैयारियों में कमी के चलते विवादित हो गया है। आज वहां कैलाश खेर और अनुज शर्मा के कार्यक्रम हैं। देखना होगा, व्यवस्था को लेकर दर्शक, खासकर महिलायें और बच्चे निश्चिंत हैं या नहीं।
केवल किराये के लिये कोरोना
कोरोना महामारी के बहाने से बंद की गई लोकल, पैसेंजर ट्रेनों को आखिरकार रेलवे ने शुरू कर दिया है। आखिरी वक्त तक रेलवे इस बात को छिपाती रही कि इन ट्रेनों में पहले की तरह किराया रहेगा या नहीं। काउन्टर खुले तब लोगों को मालूम हुआ कि कई छोटे स्टेशनों पर ये रुकेंगी भी नहीं और किराया एक्सप्रेस का है। । मसलन, रायपुर से बिलासपुर तक सफर के लिये 30 रुपये की जगह 55 रुपये लिये जा रहे हैं। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि कोरोना का प्रसार न हो, यात्री ज्यादा सफर करने से बचें इसलिये किराया ज्यादा लिया जा रहा है। मासिक टिकटें और रियायती टिकट भी इसी नाम से बंद हैं। हकीकत यह है कि कोरोना के डर से गेट पर केवल टिकट चेक किया जा रहा है। मास्क और सैनेटाइजर भी जरूरी नहीं है। एक बर्थ पर चार-चार यात्रियों को टिकट दी जा रही है, यानि सोशल डिस्टेंस की भी परवाह नहीं । ऐसे में केवल किराया बढ़ा देने से कोरोना कैसे रुकेगा, यह रेलवे ही बता सकती है।