राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : गैस, पेट्रोल खरीदने की ताकत
15-Feb-2021 5:21 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : गैस, पेट्रोल खरीदने की ताकत

गैस, पेट्रोल खरीदने की ताकत

इंटरनेट पर ‘गिव इट अप’  का मतलब हिन्दी में जानना चाहेंगे तो जवाब मिलेगा- हार मान लेना। ऐसा नहीं होना चाहिये। रायपुर में आज पेट्रोल प्रतिलीटर केवल 87.53 रुपये है। आज ही घरेलू सिलेन्डर के दाम में 50 रुपये की बढ़ोतरी भी हो गई। सोच सकारात्मक रखिये। प्रधानसेवक भी यही कहते हैं। कई शहरों में पेट्रोल 100 रुपये के ज्यादा दाम पर है। हम वहां के लोगों से 12 रुपये कम में खरीद रहे हैं।

गैस सिलेन्डर के दाम बढऩे पर भी खुशी होनी चाहिये। मोदी सरकार ने ‘गिव इट अप’ अभियान चलाया था। यानि हार मान लें। सबसिडी लेने से आप मना कर दें। कई मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, व्यापारियों ने इसमें भाग लिया और उन्होंने अपने इस अमूल्य योगदान को प्रचारित भी किया। आज हम आप भी उनकी ही तरह श्रेष्ठ हैं। घरेलू गैस की कीमत इतनी बढ़ चुकी है कि कुछ दान करने की जरूरत ही नहीं रह गई। वह टैक्स के तौर पर अपने आप ही सरकार के खाते में जा रही है। आम आदमी की ताकत को कम नहीं आंकना चाहिये।

एलआईसी सोच-समझकर कर रही है?

एक तरफ मोदी सरकार देश के बहुत से दूसरे सार्वजनिक उपक्रमों के साथ-साथ देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी में भी हिस्सेदारी बेचने जा रही है, दूसरी तरफ खुद एलआईसी दूसरे सरकारी उपक्रमों की तरह लापरवाही से काम कर रही है। लोगों को एलआईसी से जो प्रिंट की हुई चि_ियां, सूचना, नोटिस, रसीदें मिलती हैं, उनमें अक्सर स्याही इतनी हल्की रहती है कि पढ़ते ही न बने। यह भी हो सकता है कि दुनिया भर में बदनाम बीमा कंपनियों की तरह एलआईसी भी अब इस रास्ते पर चल रही हो कि ग्राहकों को समय पर सूचना न दी जाए, ताकि बाद में उनसे जुर्माना लिया जा सके, या पॉलिसी पूरी हो जाने पर भी अपठनीय सूचना भेजी जाए ताकि लोग रकम समय पर न निकाल सकें, और एलआईसी मुफ्त में उसका इस्तेमाल कर सके।

फिलहाल यह एक नमूना है कि एलआईसी किस तरह न पढऩे लायक सूचना भेजती है। और यह प्रिंट ही तो कम्प्यूटर-प्रिंटर निकालता है, उसे मोडक़र लिफाफे में डालकर भेजने का काम तो अभी भी इंसान करते हैं जिन्हें आसानी से यह दिखता है कि ये प्रिंट कोई पढ़ नहीं सकेंगे। महज एक कानूनी औपचारिकता पूरी करने के लिए एलआईसी ऐसे कागज भेजना दिखा रही है जिसे न भेजें तो सिर्फ कानूनी औपचारिकता की कमी रहेगी।

कॉलेज में भी पढ़ाएं, ऑनलाईन भी!

छत्तीसगढ़ में कॉलेज खुलने का हुक्म जारी हुआ, तो एक बात पर कॉलेज के शिक्षक हैरान हैं। अब कॉलेज जाकर क्लास लेनी है, और जो छात्र-छात्राएं वहां नहीं पहुंचेंगे, उन्हें ऑनलाईन भी पढ़ाना है। हर शिक्षक-शिक्षिका को इतना काम करना है, तो आगे चलकर जब सब सामान्य होगा, तो इनसे आधे लोगों से भी काम चल जाएगा क्योंकि अभी 10-12 घंटे रोज काम करने की आदत हो गई है।

वैसे हालात ठीक होने पर सरकार को एक मुहिम चलाकर अपने हर कर्मचारी-अधिकारी को ऑनलाईन काम करने की ट्रेनिंग देनी चाहिए, और कम्प्यूटर-इंटरनेट का हर जगह इंतजाम भी करना चाहिए क्योंकि कुंभ के मेले में खोया हुआ कोरोना का भाई साल-छह महीने में पता नहीं कब लौटकर आ जाए, और एक बार फिर लॉकडाऊन-वर्कफ्रॉमहोम की नौबत आ जाए। इस बार तो लोग और दफ्तर तकनीकी रूप से तैयार नहीं थे, लेकिन अगली बार की सोचकर यह इंतजाम कर लेना चाहिए।

शेयर से विरक्त आम आदमी

बढ़ती महंगाई और सोने के गिरते भाव के बीच शेयर सेंसेक्स का ऊंचा होते जाना वाजिब है। शुक्रवार को जब बाजार बंद हुआ तो 50 हजार का आंकड़ा था। आज बाजार खुलते ही 52 हजार पर पहुंच गया। कोरोना काल में जब लोग दूसरे काम धंधे नहीं कर पाते थे तो ऑनलाइन ट्रेडिंग ही करते थे। कुछ जोखिम उठाने वालों ने घर बैठे-बैठे 15-20 लाख रुपये कमा लिये।

शेयर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचना बताता है कि आम आदमी की माली हालत से इसका कोई रिश्ता नहीं है। एक आंकड़ा है कि केवल 0.6 प्रतिशत लोग शेयर मार्केट में पैसा लगाते हैं और इनमें से भी करीब 0.1 प्रतिशत लोग नियमित ट्रेडिंग करते हैं। आम लोगों को तो इसी बात से मतलब है कि रोजमर्रा की चीजें महंगी हुईं या सस्ती। इन दिनों सोनी लिव पर एक वेब सीरिज बहुत पॉपुलर हुई है- ‘स्कैम 1992’। स्टॉक मार्केट का खेल कैसा है, इस वेब सीरिज को देखकर बड़ी गहराई से समझा जा सकता है। मीडिया से जुड़े लोगों के लिये इसमें महत्वपूर्ण जानकारी है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्टर सुचेता दलाल ने हर्षद मेहता के फ्रॉड को सामने लाया था। बाद में उन्हें इस रिपोर्टिंग के लिये ‘पद्मश्री’ से भी सुशोभित किया गया।

खनन माफियाओं पर नरमी

मुंगेली जिले में सरपंच के पति और उनके साथियों ने पूर्व सरपंच और उनके समर्थकों पर तब रॉड, लाठी-डंडों से हमला कर दिया जब वे अवैध मुरूम खनन को रोकने के लिये गये। बलवा हो गया, अस्पताल में घायलों का इलाज हो रहा है। पूरे राज्य में नदियों से रेत और सरकारी जमीन से मुरूम के अवैध उत्खनन का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। प्रतिपक्ष भाजपा इसके विरोध में ज्ञापन प्रदर्शन करती रही है। जगदलपुर में कल ही भाजपा नेताओं ने अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। पर बाकी जगहों पर वे खामोश हैं। शायद उनके भी लोग इस धंधे में हैं।

शांत छत्तीसगढ़ में उत्खनन को लेकर हिंसक वारदातें हो नहीं रही है। होनी भी नहीं चाहिये। पर इसकी एक वजह यह भी है कि खनिज विभाग के अधिकारी आंख मूंद लेते हैं। शायद सोचते हों कि रेड क्यों करें, झंझट लेने से क्या फायदा। ज्यादातर लोग तो सरकार से जुड़े लोग ही हैं। मध्यप्रदेश की स्थिति तो बड़ी खराब है जहां डीएसपी, एसडीएम, पत्रकार या तो मारे गये या बुरी तरह घायल हुए। क्या हम छत्तीसगढ़ में भी ऐसी नौबत आने का इंतजार करें?

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