राजपथ - जनपथ
पुलिस महकमे में ट्रांसजेंडर
इस समुदाय के लिये यह भर्ती इतिहास में दर्ज हो गई। रायपुर जिले से आठ, राजनांदगांव से दो तथा बिलासपुर, कोरबा और सरगुजा से एक-एक ट्रांसजेंडर को पुलिस में नौकरी मिली है। समाज में ज्यादातर लोग इन्हें गंभीरता से नहीं लेते। वे कटे से अलग रहते हैं। पर इस भर्ती ने उन्हें सहज, सम्मानजनक जीवन बिताने का रास्ता दिखाया है।
रायपुर में विद्या राजपूत जैसी अनेक ट्रांसजेंडर अपने वर्ग को आगे बढ़ाने के लिये काम कर रही हैं और बिना किसी संकोच अधिकारियों, संस्थाओं से मिलकर न केवल अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहीं, बल्कि आम लोगों की सोच बदलने की कोशिश कर रही हैं।
समय-समय पर किन्नरों ने अपनी काबिलियत मौका मिलने पर साबित भी किया। रायगढ़ में मधु किन्नर महापौर बनीं तो अनेक लोगों ने राजनीति में किस्मत आजमाई। इन्हें शहडोल की विधायक रहीं शबनम मौसी से भी प्रेरणा मिली ही होगी। आज से छह सात साल पहले खबर आ ही चुकी है कि कोयम्बटूर में लोटस टीवी ने पहली बार एक ट्रांसजेंडर पद्मिनी प्रकाश को न्यूज एंकर बनाया था। पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की महिला कॉलेज में मानबी बेनर्जी प्राचार्य नियुक्त हुईं। टीवी कार्यक्रमों में अपने सुलझे हुए विचारों के चलते लोकप्रिय हुईं लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने तो बाद में किन्नर अखाड़ा बनाया। इन्हें संत समाज ने महामंडलेश्वर का दर्जा भी दे दिया है। उन्होंने परम्परा से हटकर किन्नर अखाड़ा महिला, पुरुष सबके लिये खोल रखा है।
छत्तीसगढ़ पुलिस में शामिल ट्रांसजेंडर्स ने बताया कि किस तरह तरह अपमान सहते हुए वे आगे बढऩे का साहस बनाकर रखा, खुद को मजबूत रखा, हौसला टूटने नहीं दिया। स्कूल के शौचालय में बाहर से दरवाजा बंद कर दिया जाता था। ट्रकों में क्लीनर, हेल्पर और बर्तन मांजने, झाड़ू-पोछा लगाने तक का काम किया।
केन्द्र की सामाजिक अधिकारिता न्याय मंत्रालय ने इन्हें समान अधिकार दिलाने के लिये सन् 2019 में एक अधिनियम बनाया था, जिसे बीते 10 जनवरी से लागू किया जा चुका है। उम्मीद करनी चाहिये कि समाज के साथ-साथ प्रशासन की सोच भी उनके लिये बदलेगी।
टीसी नहीं मिलने पर खुदकुशी ?
पुलिस ने सिमगा जिले के एक प्राइवेट स्कूल संचालक को बीते 3 मार्च को गिरफ्तार किया है। बेमेतरा के किरीतपुर गांव के एक 52 साल के व्यक्ति ने दिसम्बर महीने में जहर खा लिया। अस्पताल में उसकी मौत हो गई। पुलिस की जांच चलती रही। पुलिस ने परिवार वालों, स्कूल स्टाफ और बच्चों से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि स्कूल संचालक बच्चों की टीसी देने से मना कर रहा था। वह पैसे मांग रहा था। हो सकता है यह बकाया फीस के नाम पर मांगा जा रहा हो।
कोरोना लॉकडाउन के दौरान लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हुई तो इसका असर सबसे ज्यादा बच्चों पर पड़ा। वे स्कूल तो नहीं जा पाये, पर ज्यादातर निजी स्कूलों में स्कूल फीस के लिये कोई नरमी नहीं दिखाई। फीस वसूली के लिये ऑनलाइन पढ़ाई में उन्हें आईडी पासवर्ड नहीं दिये जाते थे। इसका विवाद अब तक चल रहा है। स्कूलों को समितियां बनाने का निर्देश दिया गया है, जिनमें पालक भी शामिल होंगे। फीस बढ़ाने की वजह बतानी होगी और अनुमोदन के बाद ही वृद्धि की जा सकेगी। लेकिन अधिकांश स्कूलों में समितियां नहीं बनी है और पहले की तरह फीस वसूली जा रही है। फीस को लेकर हाईकोर्ट में भी याचिकायें लगाई गई हैं।
प्राय: देखा गया है कि नियमों को लागू कराने प्रशासन और स्कूल शिक्षा विभाग कड़ाई नहीं बरतता। निजी स्कूलों के साथ उनकी साठगांठ होने की बात भी आती है। जिस अभिभावक ने खुदकुशी कर ली वह शिक्षा अधिकारियों से शिकायत भी कर सकता था, पर शायद उसे अधिकारियों पर भरोसा नहीं था। या फिर इस रास्ते के बारे में पता नहीं रहा होगा। पर, टीसी पाने के में विफल होने के बाद उठाये गये उसके आत्मघाती कदम ने बच्चों के भविष्य को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है, जिनकी उसे फिक्र थी।
वैक्सीन लगवाने के बाद मौत
कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिये बुजुर्गों में बड़ा उत्साह दिखाई है। इतना तो स्वास्थ्य विभाग के कार्यकर्ताओं की बारी चल रही थी तब नहीं देखा गया। पर इसी बीच एक अप्रिय सूचना यह आई कि जांजगीर की एक वृद्धा की कोरोना टीका लगवाने के 18 घंटे बाद मौत हो गई। यह महिला एक दिन पहले ही अस्पताल से लौटी थी और बताया गया कि उसे शुगर व सांस की तकलीफ थी। परिजनों ने पोस्टमार्टम कराने से मना कर दिया। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि परिजनों ने इसे स्वाभाविक मौत माना और इसकी जरूरत नहीं समझी।
वैक्सीनेशन की मुहिम शुरू की गई तो यह बात कही गई थी कि जिन्हें बीमारी के लक्षण हों, सर्दी, खांसी, बुखार हो उन्हें इंजेक्शन नहीं लगाया जायेगा।
स्वास्थ्य विभाग की ओर से फील्ड में काम करने वालों को साफ बताना चाहिये कि किन बीमारियों में टीका नहीं लगेगा और किनमें लगेगा। यदि कोई मरीज सिर्फ यह बता देता है कि वह स्वस्थ है तो क्या उसका कहना काफी है, या फिर उसके दावे को क्रॉस चेक करने के लिये स्वास्थ्य विभाग ने कोई सिस्टम बनाया है?
पूर्व विधायक का फेसबुक पेज हैक?
जैसे-जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल बढ़ रहा है, और लोग घर-दफ्तर के कम्प्यूटर से परे भी दूसरों के कम्प्यूटरों से अपने सोशल मीडिया पेज खोलने लगे हैं, उनके पेज में घुसपैठ बढऩे लगी है। आज दोपहर राजिम के पूर्व विधायक संतोष उपाध्याय ने पुलिस में शिकायत की है कि उनके फेसबुक के वेरीफाईड पेज पर वे खुद भी आज नहीं पहुंच पा रहे हैं, उनका लॉगइन बंद हो गया है। उन्होंने शक जाहिर किया है कि उनके पेज को हैक कर लिया गया है।
फेसबुक पर हर दिन ही कुछ लोगों का लिखा हुआ पढऩे मिलता है कि उनके नाम से कोई नकली पेज तैयार कर लिया गया है जिसमें उनकी असली फोटो लगाई गई है, और उस अकाऊंट से उनके दोस्तों को संदेश भेजकर कोई जालसाज कर्ज मांग रहा है। लोग ऐसी सावधानी के साथ यह अपील भी जारी करते हैं कि कोई ऐसे धोखेबाजों को पैसा न दे।
ऐसी दर्जनों किस्म की जालसाजी और धोखाधड़ी के खतरे से बचने का एक तरीका यह भी है कि लोग हर महीने-दो महीने में अपना पासवर्ड बदल दें। यही काम एटीएम के पिन नंबर के साथ भी होना चाहिए, ईमेल का पासवर्ड भी हर कुछ महीनों में बदल लेना चाहिए। इंटरनेट पर सर्च करें तो यह दिख जाता है कि सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले पासवर्ड कौन से रहते हैं, वैसे पासवर्ड बनाने से बचना चाहिए।