राजपथ - जनपथ
अफसरों के फेरबदल का वक्त
विधानसभा सत्र निपटने के बाद प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है। दो-तीन कलेक्टरों के साथ-साथ कुछ विभागों के सचिवों को इधर से उधर किया जा सकता है। आदिम जाति कल्याण सचिव डीडी सिंह जून में रिटायर हो रहे हैं। राजनांदगांव कलेक्टर टोपेश्वर वर्मा और पीएचई के विशेष सचिव एस प्रकाश सचिव हो गए हैं। प्रकाश से ऊपर पहले से ही सिद्धार्थ कोमल परदेशी हैं। ऐसे में प्रकाश का वहां से हटना तय है। इन सब वजहों से फेरबदल तय है।
दूसरी तरफ, रीना बाबा साहेब कंगाले वर्तमान में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पद पर हैं। चर्चा है कि सरकार ने उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी देने के लिए आयोग से अनुमति मांगी है। हालांकि इस तरह का पत्र पहले भी लिखा जा चुका है। उस समय तत्कालीन सीएस के पत्र की भाषा से मुख्य निर्वाचन आयुक्त इतने खफा हो गए थे कि अनुमति नहीं मिल पाई। देखना है कि आयोग अब अनुमति देता है, अथवा नहीं।
वैसे तो संसदीय सचिव सोनमणि बोरा के पास भी कोई काम नहीं है। मगर उनके दिल्ली जाने को लेकर इतना हल्ला मच चुका है कि उन्हें अतिरिक्त कोई जिम्मेदारी दी जाएगी, इसकी संभावना कम दिख रही है। टोपेश्वर वर्मा को कमिश्नर बनाया जा सकता है, तो बिलासपुर कमिश्नर डॉ. संजय अलंग की सचिव के रूप में महानदी भवन में वापिसी हो सकती है। कलेक्टरी के लिए वर्ष-2008 बैच के अफसर अनुराग पाण्डेय भी हैं जिनकी तरफ अब तक सरकार की नजर नहीं पड़ी है। जबकि उनसे जूनियर कई कलेक्टर बन चुके हैं।
रायपुर कलेक्टर एस भारतीदासन और कोरबा कलेक्टर किरण कौशल को भी बदले जाने की चर्चा है। कुछ लोग किरण को रायपुर कलेक्टर बनने का अंदाजा लगा रहे हैं। मगर एक बात तय है कि दोनों की कार्यक्षमता को देखते हुए महत्व किसी भी दशा में कम नहीं होने वाला है।
अभी भी रमन सिंह...
विधानसभा में बुरी हार के बाद भाजपा हाईकमान ने ढाई साल बाद पूर्व सीएम रमन सिंह की सुध ली है, और उन्हें उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार के खिलाफ असंतोष को दूर करने की जिम्मेदारी दी गई है। कुछ दिन पहले ही सीएम भूपेश बघेल ने रमन सिंह पर कटाक्ष किया था कि रमन सिंह की स्थिति पॉलिटिकल आइसोलेशन में जाने की है। पार्टी के लोग उन्हें पूछ नहीं रहे हैं। उन्हें आइसोलेशन में रख दिया है।
मगर अब जब उन्हें उत्तराखंड का पर्यवेक्षक बनाया गया, तो यह साफ हो गया कि रमन सिंह को महत्व मिल रहा है। उनकी स्थिति समकक्ष, पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे से तो बेहतर है, जिन्हें पार्टी ने पूरी तरह किनारे कर रखा है। छत्तीसगढ़ भाजपा में तो अभी भी रमन सिंह की राय के बिना कोई बड़े फैसले नहीं हो रहे हैं। यह भी संभव है कि चुनाव के आते-आते तक परिस्थिति थोड़ी बदल जाए, लेकिन अभी उनकी स्थिति पॉलिटिकल आइसोलेशन में जाने जैसी तो बिल्कुल नहीं दिख रही है।
मेडागास्कर और छत्तीसगढ़
मेडागास्कर दक्षिण अफ्रीका का 120 द्वीप समूहों वाला गणराज्य है। इन दिनों वह इसलिये चर्चा में है कि वहां भयंकर सूखा पड़ा है और दुनिया के अनेक देश उसकी मदद करने के लिये आगे आ रहे हैं जिनमें भारत भी है। मेडागास्कर की दो तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। रोचक, मिनटों में फुर्ती लाने वाला रग्बी यहां राष्ट्रीय खेल है। जिस देश की दो तिहाई आबादी पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय मानक में गरीब हो, वहां सूखे का क्या असर हुआ होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। आर्थिक स्थिति के अलावा शिक्षा व पोषण की स्थिति भी वहां चिंताजनक है।
छत्तीसगढ़ से इसकी क्या तुलना हो सकती है? बस एक-‘अमीर धरती के गरीब लोग।’ इस देश का भी इसी नाम से जिक्र किया जाता है। मेडागास्कर में विपुल वन, वन्य जीव व खनिज सम्पदा है।
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ को भी ‘अमीर धरती के गरीब लोग’ परिभाषित किया था। फिर इस पर, एक पर्यावरण पर काम करने वाले संगठन, सीएसई ने इसी शीर्षक के साथ एक मोटी किताब छापी।
छत्तीसगढ़ अलग राज्य कुछ महीनों के बाद 21 साल हो जायेगा। प्रति व्यक्ति आमदनी बढऩे, कई-कई गुना बढ़े बजट के आकार के बावजूद यहां कुपोषण-सुपोषण, शिक्षा, आर्थिक उन्नति के आंकड़े बताते हैं कि लम्बी लड़ाई जारी रखनी होगी। देश के अनेक छोटे राज्यों से भी मुकाबला करने की जरूरत है, जहां स्थिति हमारे प्रदेश से अच्छी है।
कुछ समय पहले उपभोग की क्षमता के आधार पर रिजर्व बैंक ने एक हैंडबुक तैयार किया था। इसमें बताया गया कि छत्तीसगढ़ में 39.93 प्रतिशत, यानि करीब 40 प्रतिशत लोग गरीब हैं। गोवा, सिक्किम, मणिपुर, दिल्ली जैसे अनेक छोटे राज्यों के मुकाबले यह बहुत खराब स्थिति है। राज्य में 56 लाख परिवार हैं, जिनमें से 33 लाख परिवारों को बीपीएल कार्ड मिले हैं। यह अलग बात है कि इनमें जांच हो तो कई सरकारी सेवक, आयकर दाता भी निकल आयें। पूर्ववर्ती सरकार ने तो करीब 8 लाख ऐसे बीपीएल कार्ड बना दिये, जिन्हें चुनाव के बाद रद्द करना पड़ा।
बहरहाल, कुछ साल पहले केन्द्र व राज्य सरकार की टीम ने एक सर्वे किया था, जिसमें पाया गया कि 73 प्रतिशत से ज्यादा सरकारी प्रायमरी स्कूलों के बच्चे अपनी किताब में लिखी जानकारी तो देना दूर, उसे पढ़ भी नहीं पाते। बड़ी संख्या में- करीब 52 फीसदी पद शिक्षकों के खाली हैं। पहली से पांचवी तक पढ़ाने का बोझ भी एक साथ है। कई स्कूलों में एक ही शिक्षक है। इन्हें ही प्रभारी प्रधान-पाठक भी बनाया गया है।
मेडागास्कर की गरीबी की वजह रिपोर्ट्स में बताई गई है- वनों में रहवास का व्यापक विनाश, पेड़ों की गैर कानूनी कटाई, झूम खेती के चलते जंगल की कटाई, खनन, जानवरों का शिकार।
बतायें, 43 प्रतिशत से ज्यादा वनों से घिरे छत्तीसगढ़ में कौन-कौन से कारण समान हैं?
अदालती फैसले किस भाषा में हों?
खासकर सेशन कोर्ट से बड़ी अदालत, जिनमें ट्रिब्यून्लस, लेबर कोर्ट्स भी शामिल हैं आदेश प्राय: अंग्रेजी में होते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे अनेक राज्य हैं जहां अदालती अंग्रेजी आम लोगों के सिर के ऊपर से गुजर जाती है। चलन में ही नहीं। न केवल अशिक्षित बल्कि पढ़े लिखे लोगों में भी। वे सब वकीलों के ही भरोसे होते हैं। ऐसे में शासन व्यवस्था की तीनों पालिकाओं के प्रमुख, राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द का कल आया यह सुझाव महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि ज्यादा से ज्यादा फैसले स्थानीय भाषा में हों। फैसले अंग्रेजी में भी हों तो उसे साथ-साथ हिंदी और जरूरत के मुताबिक दूसरे स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध हों। सुप्रीम कोर्ट में मांग पर स्थानीय, जिनमें हिंदी सहित 8 और भाषायें शामिल हैं, उपलब्ध कराई जाती है। पर मूल आदेश अग्रेजी के होते हैं। निर्णय हिन्दी या भारत की अधिसूचित भाषाओं में कम ही दिये जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में हमें मई 2001 से सितम्बर 2006 तक पदस्थ जस्टिस स्वर्गीय फखरुद्दीन याद आते हैं, जिन्होंने एक महिला की अर्जी पर छत्तीसगढ़ी में फैसला दिया। यह किसी दूसरे जज ने शायद अब तक नहीं दोहराया। छत्तीसगढ़ी पृष्ठभूमि के अनेक जज हाईकोर्ट में हैं पर ऐसा नहीं करना उनका अपना विवेक है।
जस्टिस यतीन्द्र सिंह हुए। छत्तीसगढ़ में वे सन् 2012 में चीफ जस्टिस बने। करीब दो साल वे इस पद पर रहे। उन्होंने अधिकांश फैसले हिंदी में दिये और उसके बाद अनुवादक उसे अंग्रेजी में तैयार करते थे। उनका मूल फैसला हिंदी में होता था।
सन् 2016 में तब के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने एक सख्त फैसला दिया था। पीएससी 2003 के घोटाले को उन्होंने पकड़ा और सारी सूची निरस्त कर फिर से बनाने का आदेश दिया। अनेक एसडीएम, एडीएम की नौकरी जा रही थी। अभी सुप्रीम कोर्ट से स्थगन मिला हुआ है। हाल ही में इन अधिकारियों का प्रमोशन भी हो गया। इस मामले में याचिकाकर्ता थीं डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे, जिनको दलीलों के मुताबिक डिप्टी कलेक्टर पद मिलना था। जस्टिस गुप्ता ने वर्षा डोंगरे को अनुमति दी। वह खुद ही अपना वकील बनीं, हिंदी में पूरी दलील दीं। न केवल डोंगरे बल्कि जज और प्रतिवादी वकीलों ने हिंदी में ही बहस की। हर सुनवाई के दौरान कोर्ट की दर्शक दीर्घा भरी होती थी, क्योंकि सुनवाई सब समझ पा रहे थे।
अदालती फैसले अंग्रेजी में देने के पीछे तर्क यह रहा है कि इनमें उल्लेख किये गये वाक्य, शब्द डिक्शनरी में मान्य हैं। स्थानीय भाषा में उन्हीं वाक्यों, शब्दों के कई अर्थ निकल सकते हैं, जिससे अलग बहस खड़ी हो सकती है। हिंदी के साथ तो समस्या है कि वह केवल राजभाषा है, राष्ट्रभाषा नहीं।
भारतेन्दु कह गये थे- निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल।
देखें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में राष्ट्रपति की अपील का क्या असर होगा। क्या जस्टिस फखरुद्दीन और यतीन्द्र सिंह जी दोहराये जायेंगे?
खून-खून होते रिश्ते
दुर्ग जिले के पाटन में पांच लोगों की मौत। घटना ह्दय विदारक है। सुसाइडल नोट मिला है, जांच जारी है। शुरुआती जानकारी है कि मृतक घर का मालिक लगातार अपनी जायजाद बेच रहा था। बेचते-बेचते कुछ रह नहीं गया। उसे जुए, सट्टे की लत थी। उस पर 20 लाख रुपये का कर्ज था।
इधर रायपुर के उरला में एक ने अपनी बहू और उसकी मां की हत्या कर दी। बिलासपुर के नजदीक कोनी की ख़बर है। पत्नी मायके से ससुराल जाने के लिये राजी नहीं हुई तो बाप ने 13 दिन की नवजात बिटिया को जहर पिला दिया। नवजात का इलाज चल रहा है।
ये सब दहलाने वाली एक ही दिन की ख़बरें हैं। सारी घटनायें रिश्तेदारों के बीच की है। अपनों के बीच इतना तनाव, ऐसा प्रतिशोध संघर्ष क्यों हो रहा है? क्या पंचायत, पारिवारिक बैठक, समाज में संवाद और सुलह कर विवाद, तनाव घटाने की प्रक्रिया खत्म हो रही है? क्या इन घटनाओं को उनका व्यक्तिगत मामला या अपवाद मान लें? या फिर इसमें शासन-प्रशासन के विभागों जैसे समाज कल्याण विभाग, महिला बाल विकास विभाग की भी कोई भूमिका हो?