राजपथ - जनपथ
सत्ता की बर्बादी के तरीके
सत्तारूढ़ कुछ विधायकों के तेवर से अफसर हलाकान हैं, और इनके कारनामों की शिकायत शीर्ष स्तर पर पहुंची है। ऐसे ही एक विधायक ने तो जब्त बेशकीमती लकड़ी को छुड़वाने के लिए अफसरों पर इतना दबाव बनाया कि मंत्रीजी को हस्तक्षेप करना पड़ा। मंत्रीजी ने विधायक को समझाया कि जब्त लकड़ी को वापस करने से गलत मैसेज जाएगा। तब कहीं जाकर विधायक महोदय शांत हुए।
विधायकों का अपने करीबियों को टेंडर दिलाने के लिए अफसरों पर दबाव बनाने की कई शिकायतें सामने आ रही हैं। जबकि सरकार ने शिक्षित बेरोजगारों को काम देने के लिए नीति बनाई है, जिसमें उन्हें सीमित प्रतिस्पर्धा से निर्माण कार्यों के ठेके दिए जा सकते हैं। ऐसे ही एक प्रकरण में रायपुर के एक बेरोजगार इंजीनियर को पड़ोस के जिले में काम मिल गया। इसके बाद पड़ोसी विधायक ने दबाव बनाया कि स्थानीय व्यक्ति को ही ठेका दिया जाए।
अफसरों ने उन्हें समझाया कि टेंडर प्रक्रिया ऑनलाइन होती है, और बिना कोई ठोस कारण के टेंडर निरस्त नहीं किया जा सकता। काफी समझाइश के बाद विधायक महोदय थोड़े नरम पड़े। अफसरों की समस्या यह है कि कोरोना काल में विभागीय बजट में 30 फीसदी तक की कटौती कर दी गई है। इससे निर्माण कार्य बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। और जो थोड़े बहुत टेंडर निकल रहे हैं, उसमें भी राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से कार्य में देरी हो रही है।
अब स्वास्थ्य मंत्री की बारी
को-वैक्सीन को लेकर केन्द्र के साथ हुई तनातनी अब खत्म हो सकती है। केन्द्र की ओर से इसे जब भेजा गया तो तीसरे चरण का ट्रायल नहीं हुआ था, साथ ही टीका लगवाने वालों को एक सहमति पत्र भी देना था कि यदि इसका कोई साइड इफेक्ट हुआ तो इसके लिये स्वास्थ्य विभाग जिम्मेदार नहीं होगा और मरीज किसी तरह के क्लेम का दावा नहीं कर सकेगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसका इस्तेमाल करने से मना कर दिया। भाजपा ने इसे स्वदेशी का विरोध बताया, क्योंकि यह वैक्सीन पूरी तरह देश में ही तैयार हुई है। स्वास्थ्य मंत्री ने स्वास्थ्य मंत्री ने बाद में कहा कि वे अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप तीसरे चरण का ट्रायल होने के बाद पहले व्यक्ति होंगे जो को वैक्सीन लगवायेगा। अब जब भारत के औषधि नियंत्रक ने इसके तीसरे चरण के ट्रायल हो जाने तथा सहमति पत्र भरवाने की जरूरत नहीं होने की घोषणा की है, को-वैक्सीन की बंद बक्से खुलने के आसार हैं। और, जैसा स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था, सबसे पहला टीका भी शायद उनको ही लगे।
ताकि वैक्सीन को लेकर भ्रम न फैले..
कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी जांजगीर के कलेक्टर यशवंत कुमार की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। उऩ्होंने दोनों डोज लेने के बाद तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करते हुए लोगों से भी वैक्सीन लगवाने की अपील की थी और वैक्सीन को सुरक्षित बताया । किसी आम मरीज की यदि इसी परिस्थिति में पॉजिटिव रिपोर्ट आती तो शायद खबर चारों तरफ नहीं फैलती। आईएएस को ही टीका लगने के बाद कोरोना पीडि़त लोगों को हैरान कर दिया और दवा के असर पर सवाल उठने लगे। पर शाम आते-आते विश्व स्वास्थ्य संगठन की छत्तीसगढ़ यूनिट के डॉक्टरों ने बता दिया कि वैक्सीन लगवाने के 15 दिन बाद शरीर में एंडिबॉडी विकसित होती है। वैक्सीन पर लोगों का भरोसा कायम रहे इसलिये जरूरी था कि कलेक्टर भी अपनी प्रतिक्रिया देते। उन्होंने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर यही बात दोहराई। यह इसलिये भी जरूरी था कि वैक्सीन लगवाने के लिये बुजुर्गों में काफी उत्सुकता दिखाई दे रही है। अपनी बारी के लिये उन्हें चार-चार, पांच दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है। कोरोना वैक्सीन के प्रति लोगों का विश्वास दिख रहा है तब ऐसी खबर प्रशासन को बेचैन तो करने वाली ही थी।
बाघ की खाल के सफेदपोश सौदागर
जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर के पास जब बाघ की खाल बेचने वालों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया तो उस समय अनुमान नहीं लगा होगा कि कितना बड़ा रैकेट काम कर रहा है। अब भी ऐसा लग रहा है कि यह ऐसे लोगों का बड़ा गिरोह है जिसमें वे लोग शामिल हैं जो पद और प्रभाव रखते हैं।
बाघ का शिकार और उसके खालों, अंगों की तस्करी का धंधा वे बेखौफ करते आ रहे हैं। गिरफ्तार लोगों में बीजापुर में तैनात पांच पुलिस वालों सहित आठ लोग शामिल हैं। शनिवार को 6 और लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस तरह से कुल गिरफ्तारी 14 हो गई है। सबको जेल भेज दिया गया है। दो एएसआई फरार भी बताये जा रहे हैं।
यह कम हैरान करने वाली बात नहीं है कि पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग में काम करने वाले, अधिकारी, कर्मचारी व संविदा नियुक्ति वालों का ऐसा संगठित गिरोह काम कर रहा था। ये गिरफ्तारियां राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अभिकरण (एनटीसीए) की एक महिला अधिकारी द्वारा खरीदार बनकर बिछाये गये जाल से मुमकिन हुआ । पुलिस के तो अपने लोग लिप्त थे मतलब बीजापुर, जगदलपुर में तैनात पुलिस वालों में से बहुतों को यह पता रहा होगा। ऊंगली तो थानेदार पर भी उठ रही है। एनटीसीए तक खबर पहुंची इसका मतलब यह है कि बाघ का यह पहला शिकार नहीं होगा। पहले से न केवल बाघ बल्कि दूसरे जंगली प्राणियों के शिकार होते आ रहे होंगे। इस गंभीर मामले पर अब तक वन विभाग के किसी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पर क्या वन विभाग के अधिकारियों का, जिन्हें भारी भरकम वेतन और सेटअप जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिये ही दिया जाता था, वे भी इस धंधे से बेखबर थे और उनका दामन पाक-साफ होगा?
अधिकारी-कर्मचारियों की अधूरी मांगें
इन दिनों सरकारी कर्मचारियों, अनियमित, अस्थायी कर्मचारियों. विद्या मितानिन, रोजगार सहायक, स्वास्थ्य संयोजक का आंदोलन चल रहा है। बजट में उनकी उम्मीदों के अनुरूप कुछ नहीं हुआ। तृतीय वर्ग कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग कर रहे हैं। हाल ही में उनका बड़ा प्रदर्शन रायपुर में हुआ। अनेक विभागों में कर्मचारी संविलियन पर रखे गये हैं, जिनको नियमित करना सरकार के वादे में शामिल था। अब सरकार ने बता दिया है कि संविलियन को लेकर कोई भी प्रस्ताव उसके समक्ष फिलहाल विचाराधीन नहीं है। मंत्री रविन्द्र चौबे ने कर्मचारी अधिकारियों को धीरज से काम लेने की सलाह दी है। कहा है कि कोरोना के चलते सरकार की राजस्व प्राप्ति घटी है।
वैसे तो अधिकारियों, कर्मचारियों की कुछ न कुछ मांगें हर सरकार में चलती रहती है, पर इस बार जिन मांगों को वे उठा रहे हैं उनमें से अधिकांश तो चुनावी घोषणा में शामिल थे। सरकार थोड़ा-थोड़ा देकर संतुष्ट करने की नीति पर काम कर रही है, जैसे हाल ही में शिक्षा विभाग व पुलिस में नई भर्तियों को मंजूरी देना। शासकीय सेवकों की मांग को नजरअंदाज करना वैसे किसी भी सरकार के लिये कठिन होता है, देर जितना होगा, असंतोष उतना बढ़ेगा। देखें उनकी कितनी मांगें, कब तक पूरी हो पायेंगीं।