राजपथ - जनपथ
पुत्रमोह जारी है...
भाजपा के राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश ने पिछले दिनों यहां प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पार्टी नेताओं को पुत्रमोह त्यागने की नसीहत दी। उनकी जानकारी में यह बात लाई गई थी कि पार्टी के दिग्गज नेता अपने बेटे-बेटियों को पदाधिकारी बनाने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।
सौदान सिंह की जगह छत्तीसगढ़ संगठन का काम देखने वाले शिवप्रकाश की सलाह को पार्टी के नेता कितनी गंभीरता से ले रहे हैं, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि सूरजपुर जिला भाजयुमो अध्यक्ष के लिए पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा के बेटे लवकेश पैकरा को बनाने की अनुशंसा की गई है।
और जब प्रदेश संगठन ने सूरजपुर जिला इकाई को दूसरा नाम प्रस्तावित करने के लिए कहा, तो जिला संगठन के मुखिया ने यह कह दिया कि लवकेश से बेहतर कोई और नाम नहीं है। सूरजपुर जिला भाजपा संगठन में रामसेवक पैकरा समर्थकों का दबदबा है। ऐसे में देखना है कि प्रदेश संगठन, शिवप्रकाश की सलाह पर कितना अमल कर पाता है।
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी..
बेटे के नाम पर पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की जमीन खरीदकर खाद्य मंत्री अमरजीत भगत फंस गए हैं। हालांकि उन्होंने विवादों को शांत करने की नीयत से कहा कि जमीन खरीद प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई है, और उन्हें चेक से भुगतान की गई राशि वापस कर दी जाती है, तो वे जमीन लौटा देंगे। मगर अमरजीत के सफाई देने के बाद भी मामला शांत होता नहीं दिख रहा है, और खबर यह भी है कि राज्यपाल ने मुख्य सचिव को प्रकरण की जांच के लिए चि_ी भी लिखी है।
अमरजीत भगत ने अपने खिलाफ आरोपों पर पलटवार करते हुए यह भी कह गए कि कई भाजपा नेताओं ने भी इसी तरह जमीन खरीदी है। पहली नजर में अमरजीत के आरोपों में दम भी नजर आ रहा है। इसकी वजह यह है कि विशेषकर सरगुजा संभाग के भाजपा के बड़े आदिवासी नेताओं ने इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध रखी है।
सुनते हैं कि अमरजीत के खिलाफ पहले पूर्व सीएम रमन सिंह के साथ विष्णुदेव साय प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने वाले थे। मगर पूर्व सीएम ने आने से मना कर दिया। पार्टी के दबाव की वजह से सायजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस तो ले ली, लेकिन बाद में वे पहाड़ी कोरवाओं के साथ राजभवन नहीं गए। उनकी जगह देवजी पटेल, पहाड़ी कोरवाओं को लेकर राज्यपाल से मिले।
इस पूरे मामले में पेंच यह है कि अदालत ही जमीन की रजिस्ट्री निरस्त कर सकता है, लेकिन अमरजीत पर और ज्यादा हमला हुआ, तो उनके समर्थक चुप नहीं बैठेंगे। कई और रजिस्ट्रियां सार्वजनिक होंगी, और इससे भाजपा के आदिवासी नेता घिर सकते हैं। देखना है आगे-आगे होता है क्या।
नंबरप्लेट से रोड सेफ्टी तक
लोगों का मिजाज ऐसा है कि जब तक कानून तोड़ न लें, उन्हें मजा ही नहीं आता। अब उत्तरप्रदेश की यह मोटरसाइकिल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शान से चल रही है, और नंबरप्लेट पर नंबर से अधिक बड़े आकार में वकील होने की नुमाइश कर रही है। नंबरप्लेट पर किसी भी तरह का कुछ और लिखना नियमों के खिलाफ है, और उस पर जुर्माना भी है, लेकिन ताकतवर लोगों को नियमों को तोडऩे में मजा आती है। राजनीतिक दलों के छोटे से ओहदे पर बैठे हुए लोग भी बड़े-बड़े अक्षरों में अपनी ताकत नंबरप्लेट और गाड़ी पर लिखवा लेते हैं, और उस ताकत की वजह से ट्रैफिक पुलिस उन्हें छूती नहीं है कि कौन अपना नक्सल इलाके में तबादला करवाए। दिलचस्प बात यह है कि सडक़ों पर सुरक्षा तोडऩे वाली बड़ी कारोबारी गाडिय़ों पर काबू करना जिस ट्रांसपोर्ट विभाग का जिम्मा है, उसे देश के अधिकतर प्रदेशों में संगठित वसूली और उगाही की एजेंसी बनाकर रख दिया गया है। छत्तीसगढ़ में भी इस विभाग के भयानक भ्रष्टाचार के सुबूत सडक़ों पर चारों तरफ दिखते हैं, और मजे की बात यह है कि इसी विभाग को रोड सेफ्टी क्रिकेट का इंतजामअली बनाया गया था। यह विभाग खत्म हो जाए, तो रोड खासी सेफ अपने आप हो जाएंगी।
जनरल प्रमोशन से किसकी भलाई?
कोरोना के दूसरे दौर का आगमन उसी वक्त हुआ है, जब स्कूल कॉलेजों में परीक्षायें लेने की तैयारी चल रही है। संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद अप्रैल-मई में शारीरिक उपस्थिति के साथ बोर्ड परीक्षाओं को लेने की तैयारी हो रही है, पर बाकी कक्षाओं को जनरल-प्रमोशन देने का फैसला लिया गया है। यानि सब धान एक पसेरी। जो पढऩे लिखने और एक-एक अंक के लिये सिर धुन रहे हैं उन छात्रों को कोई फायदा नहीं। और जो मौज कर रहे हैं उनकी तो मौजा ही मौजा है। ये सरकार के फैसले को सलाम कर रहे हैं।
श्रीलाल शुक्ल की बात छोडिय़े, जिन्होंने राग दरबारी में लिखा था- अपने देश में शिक्षा व्यवस्था वह कुतिया है, जिसको हर ऐरा-गैरा रास्ते में आते-जाते लतियाता रहता है। जनरल प्रमोशन की धारणा का ईजाद शायद पहली बार मध्यप्रदेश के तब के मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के दौर में, भोपाल गैस कांड और इंदिरा गांधी हत्याकांड बाद हुआ था। उसके बाद से तो जब भी कोई आपदा आती है जनरल प्रमोशन एक आसान रास्ता दिखाई देता है।
पर, तब से अलग हो चुकी हैं परिस्थितियां। भले ही किसी भी छात्र को अनुत्तीर्ण न करें लेकिन जब ऑनलाइन क्लासेस और दूरस्थ इलाकों में पढ़ई तुहंर द्वार जैसी योजना चल रही हो तो औपचारिक ही सही और ऑनलाइन ही क्यों न हो, परीक्षा क्यों नहीं ली जाती? कोरोना के दौर में जब रैलियों पर रोक नहीं, बाजार, सिनेमा हॉल खुले हों तो सिर्फ परीक्षा से छात्रों को वंचित कर दिया गया। जनरल प्रमोशन पर पालक और इग्ज़ाम से बच जाने वाले छात्र खुशी मनाने की जगह दूसरे कोण से भी मामले को समझ पायेंगे? नौकरशाह जानते हैं कि ऑनलाइन इगज़ाम लेने में उन्हें कितनी तकलीफ होने वाली है। दर्जन भर जिलों के हजारों छात्र-छात्राओं के पास न तो नेटवर्क है, न ही संसाधन। ये कमी छिपाये नहीं छिपती न समाधान निकाला गया। इसीलिये शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जनरल प्रमोशन का रास्ता चुना और तय किया- मुंह ढंक के सोईये, आराम बड़ी चीज है।
हिम्मत दुधमुंहे के मां की
कोई महिला अगर बहुत छोटे बच्चे, शिशु की मां हो तो उसे अपने कार्यस्थल पर ड्यूटी निभाना कितना मुश्किल है यह नये बने जिले गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही की घटना से पता चलता है। स्कूलों के बीच समन्वय के लिये संकुल बना हुआ है। इन संकुलों के समन्वयक किसी स्कूल के प्राचार्य होते हैं और वे समय-समय पर बैठकें लेकर पढ़ाई, दाखिले, परीक्षा की तैयारी जैसे मसलों पर चर्चा करते हैं। जिले के दोबहर स्कूल के प्राचार्य, संकुल समन्वयक भी हैं। उन्होंने बैठक रखी। उस बैठक में शिक्षिका अपने दुधमुंहे बच्चे को लेकर पहुंच गई । बच्चा उसकी गोद में। थोड़ी बहुत स्वाभाविक हलचल थी, पर बैठक में कोई बाधा नहीं हुई। पर बैठक के बाद प्राचार्य नाराज हो गये। उन्होंने कहा कि ये सब नहीं चलेगा। आगे जब भी बैठकों में आओ बच्चे को साथ मत लाना। शिक्षिका ने कहा, कहां छोड़ूं। यहां तो न झूलाघर है न फीडिंग की जगह। प्राचार्य ने कहा कि नहीं यह सब नहीं चलेगा, अपना इंतजाम कर लो, वरना निपटा दूंगा।
दुर्व्यवहार से व्यथित शिक्षिका ने जिला शिक्षा अधिकारी, पुलिस अधीक्षक के साथ-साथ महिला आयोग से भी इसकी शिकायत कर दी है। मालूम हुआ है कि शिक्षा विभाग तत्काल सम्बन्धित प्राचार्य से पद छीनकर उसे किसी दूसरी जगह पर भेजने वाला है, ताकि ऊपर से होने वाली किसी भी पूछताछ का संतोषजनक जवाब दिया जा सके।
अकेले रायपुर में चाकूबाज?
रायपुर में ऑनलाइन शॉपिंग के जरिये चाकू मंगाने वालों की सूची पुलिस ने हासिल की और जब्त करने का सिलसिला शुरू किया। 30 फीट लम्बी मेज पर बीते एक सप्ताह में जब्त 350 चाकुओं की प्रदर्शनी लगाई गई। अब भी करीब दो सौ चाकू बरामद करना बाकी है। हैरानी यह है कि चाकू जब्ती की यह कवायद सिर्फ राजधानी में हो रही है। ऑनलाइन शॉपिंग साइट से चाकू मंगाने की छूट तो हर जिले में हर किसी को है। वहां होने वाले अपराधों को काबू में लाने के लिये बाकी जिलों में पुलिस की कोशिश क्यों नहीं हो रही है? बाकी जिले इतने पिछड़े भी नहीं हैं कि अब भी यूपी, बिहार से तस्करों के जरिये माल मंगायें, ऑनलाइन शॉपिंग की समझ बाकी जिलों के बदमाशों को भी है।