राजपथ - जनपथ
क्या आगे भी इनकी मदद ली जाएगी?
बीजापुर हमले के दौरान बंधक बनाए गए जवान राकेश्वर सिंह मन्हास को रिहा करने के लिए नक्सलियों ने जो तरीका अपनाया वह पहले से कुछ हटकर था। कोई शर्त मनवाए बगैर जल्दी ही उन्होंने जवान को छोड़ दिया। मध्यस्थों में धर्मपाल सैनी को छोडक़र बाकी का नाम बस्तर से बाहर पहले नहीं सुना गया होगा। सरकार के लिए एक उम्मीद बनती है कि वह शांति वार्ता के लिए इन्हें या इनके जैसे ही लोगों की आगे मदद ले और बस्तर में शांति की नई पहल हो।
कमाई की भी दूसरी लहर शुरू
कोरोना संक्रमण के फैलाव को यह लॉकडाउन रोक पाएगा या नहीं यह तो भविष्य में ही पता चलेगा लेकिन सरकार और प्रशासन ने किसे बेहतर विकल्प माना है इसलिए विरोध जताने का कोई प्रश्न खड़ा नहीं होता। जिस तरह सोशल डिस्टेंस के नियम का उल्लंघन बीते दो-तीन दिनों की बाजार में पहुंची भीड़ से हो गया है, उसने शायद 10 दिनों की आपस में दूरी बनाए रखने के लिए की गई कोशिश पर पानी फेर दिया। बीते साल भी जब कोरोना के पहले दौर में कई शहरों में लॉकडाउन लगाया गया था तो उसके बाद नए संक्रमित की संख्या में बहुत कमी नहीं आई थी। शायद इसकी वजह बंद से पहले पैदा हुई इसी तरह की परिस्थितियां थी। इस बार भी किराना सामान और सब्जी अनाप-शनाप दामों पर बेचा गया और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। उसका सारा जोर किस समय संक्रमण से लोगों को बचाने अस्पतालों की व्यवस्था देखने, लाक डाउन को सही तरीके से लागू कराने में है और इसका फायदा कुछ कारोबारी उठा रहे हैं। प्रशासन ने शायद पिछली बार की तरह संवेदना भी नहीं दिखाई है कि जिन लोगों ने क्षमता थी 10 दिन की खरीददारी कर ली लेकिन जो लोग रोज कमाने खाने वाले हैं उनका क्या होगा?