राजपथ - जनपथ
छूट के बावजूद उद्योगों में ताले
प्रदेश के अधिकांश हिस्से इन दिनों लॉकडाउन के घेरे में हैं। बीते साल लॉकडाउन के समय पाया गया की अधिकांश उद्योग धंधे ठप पड़ जाने से मजदूरों, श्रमिकों के सामने भूखों मरने की स्थिति आ गई थी। इस बार सरकार चाहती नहीं थी लॉकडाउन लगे पर परिस्थिति भयावह हो चुकी है। उद्योगों को इस बार छूट दी गई है कि वे परिसर के भीतर श्रमिकों के रुकने की व्यवस्था कर सकते हैं तो फैक्ट्री चालू रख सकते हैं। इसके बावजूद रायपुर, कोरबा, बिलासपुर सब तरफ से खबर है कि 50 फीसदी से ज्यादा उद्योगों में काम बंद हो गया है। इसकी वजह सामने यह आ रही है कि अनेक उद्योगों के पास रुकने की जगह नहीं है, है भी तो वहां मजदूर रुकना नहीं चाहते। वे छुट्टी लेकर घर चले गये हैं। जिस तरह से अनेक जरूरी कार्य करने वालों को घरों से निकलने की छूट दी गई है, ऐसा श्रमिकों के लिये भी किया जा सकता था लेकिन शायद प्रशासन को लगा कि इस छूट का दुरुपयोग हो सकता है और बड़ी संख्या में लोग सडक़ों पर दिखेंगे। इससे लॉकडाउन का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। निर्माण कार्यों पर रोक लगा देने से श्रमिक खाली हाथ रह गये हैं। यात्री परिवहन सेवा में लगे कर्मचारी, सडक़ किनारे दुकान लगाने वाले, होटल, रेस्तरां में काम करने वाले लोग लॉकडाउन खत्म हुए बगैर रोजी-रोटी नहीं कमा पायेंगे। लॉकडाउन के चलते आर्थिक गतिविधियों पर मार तो पड़ी है। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती, यह साफ हो गया।
इलाज की दर से किसका फायदा?
निजी अस्पतालों के खिलाफ आ रही लगातार शिकायतों के बाद आखिरकार राज्य सरकार ने कोविड मरीजों के लिये शुल्क निर्धारित कर दिया। सरसरी तौर पर दिखता है कि यह मरीजों के हक में है पर कई शंकायें लोग खड़ी कर रहे हैं। एक दिन के बेड का न्यूनतम किराया 6800 रुपये रखा गया है जो आईसीयू, एसी तक जाने पर 17 हजार रुपये प्रतिदिन लिया जा सकता है। ऑक्सीजन सिलेंडर, एनेस्थेटिक, कंसल्टेन्ट, पीपीई किट जैसे कुछ खर्च इस दर में शामिल है। यह दर काफी ज्यादा है जो किसी स्टार लेवल के अस्पतालों का होता है। इसके अलावा भी कई सुराख छोड़ दिये गये हैं। वेंटिलेटर और सीटी स्कैन का खर्च इसमें नहीं जोड़ा गया है। अक्सर गंभीर होने पर ही मरीज को निजी अस्पतालों की जरूरत पड़ती है वरना तो वह सरकारी बेड नहीं मिलने पर होम आइसोलेशन पर रहना पसंद करता है। ऐसे मरीज को प्राय: वेंटिलेटर की जरूरत होती है। इस समय जो कोरोना मरीज आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर लोगों को निमोनिया और फेफड़े में संक्रमण की शिकायत है। ऐसे मरीजों का बार-बार सीटी स्कैन किया जा रहा है। कोरोना के स्तर की जांच का यह तरीका डॉक्टरों ने अपनी ओर से निकाला है। सीटी स्कैन का बिल भारी-भरकम होता है। एक मरीज को 10 से 12 दिन भर्ती करना पड़ता है। ऐसे में कुल खर्च कितना आयेगा, इसका हिसाब लगाया जा सकता है। मतलब यह है कि जो दरें घोषित की गई हैं, उससे ऐसा लगता है कि कोरोना पीडि़तों से ज्यादा अस्पताल संचालकों ने राहत महसूस की है।
राशन दुकान बंद रखने का औचित्य
लॉकडाउन में इस बार राशन दुकानों को बंद रखा गया था। पिछली बार मार्च माह में जब केन्द्र सरकार की ओर से अचानक लॉकडाउन की घोषणा की गई थी तब सभी दुकानें बंद कर दी गई थीं और इसके बाद विशेषकर रोज कमाने खाने वाले बीपीएल परिवारों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ा था। उसके बाद जब राज्य सरकार के हिस्से में लॉकडाउन लगाने का अधिकार आया तो राशन दुकानें खोली ही नहीं गई बल्कि दो-दो माह का राशन एक साथ दिया गया। इस बार लॉकडाउन को देखते हुए पहले से कोई आबंटन नहीं है न ही ऐलान किया गया कि अपने हिस्से का पीडीएस चावल उठा लें। राज्य सरकार का तर्क है कि जिन्हें जरूरत होगी, वे उनके लिये हेल्पलाइन नंबर दिये गये हैं। उन्हें राशन घर पहुंचाकर दिया जायेगा। । गरीबों का राशन उठाने वाले बहुत से लोग नि:शक्त जन और अत्यंत वृद्ध भी हैं, जिन्हें पता ही नहीं कैसे राशन मंगाना है। किस नंबर पर कॉल करना है, कैसे उन तक राशन पहुंचेगा। पिछली बार जिस तरह से तीन चार माह तक बीपीएल परिवारों को मुफ्त राशन दिया गया, इस बार भी लोगों के हाथ में कम से आठ दिन के लिये कोई काम नहीं है। थोड़े दिनों का कोटा ही सही, मुफ्त राशन फिर देने की व्यवस्था की जा सकती थी। वैसे भी धान, चावल की सरकार के पास कोई कमी है नहीं।