राजपथ - जनपथ
मास्क पर जुर्माना तो पास बैठने पर क्यों नहीं?
रेलवे ने एक बार फिर आपदा को अवसर बना लिया। ट्रेन में सफर के दौरान मास्क नहीं पहनने पर 500 रुपये जुर्माना लगाया जायेगा। यदि प्लेटफॉर्म पर थूका गया तो गंदगी फैलाने के चलते रेलवे अधिनियम के तहत कार्रवाई की जायेगी। ठीक है, मास्क पहनने पर सख्त नियम तो लागू किया जाना चाहिये। पर रेलवे की ओर से यह नहीं बताया जा रहा है कि वह सोशल डिस्टेंस रखना भी जरूरी है। ट्रेनों के स्पेशल होने बावजूद हर एक सीट पर सवारी बैठ रहे है। एक बर्थ की लम्बाई करीब 1.9 मीटर होती है। स्लीपर ट्रेन में तीन लोगों को और पैसेंजर ट्रेनों में चार लोगों को टिकट दी जाती है। और उनके बीच आधा मीटर दूरी भी नहीं रह जाती। कोरोना वायरस फैलने के लिये तो वैसे कुछ मिनटों का ही ऐसे साथ-साथ काफी है, पर यात्री पूरी सफर में साथ बैठे होते हैं। रेलवे के पास इसका क्या जवाब न है? न कोई उससे पूछ रहा है और न ही इसका कोई जवाब मिल रहा है। एक जवाब तो तैयार ही होगा कि जब चुनावी रैलियों और धार्मिक समागमों पर आखें बंद कर ली गई हो, तो फिर हमसे ही ये बात क्यों पूछी जा रही है?
हाथ खड़े करते नोडल अधिकारी
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कोरोना पर अपने केबिनेट की बैठक बुलाई। उन्होंने वहीं से कुछ अस्पतालों को आम लोगों की तरह फोन लगाया। रिकार्ड दिखा रहे थे कि बेड हैं पर अस्पताल वाले भर्ती करने से मना कर रहे थे। केजरीवाल ने ऐसे अस्पताल प्रबंधकों को फटकार लगाई और सबकी निगरानी के लिये एक-एक अफसर लगा दिया। अब ऐसा तो हमारे यहां भी किया गया है। पर यहां, सचमुच बेड की भारी कमी है। न केवल बिस्तरों की बल्कि दवाईयों और ऑक्सीजन सिलेंडर की भी। जिन अधिकारियों का फोन नंबर जिला प्रशासन ने जारी किया है वह किसी तरह की राहत नहीं पहुंचा पा रहे हैं। असल जरूरत तो युद्ध स्तर पर दवा, बेड और ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाने की है। अस्पताल तैयार करने में समय तो लगता है पर उतना नहीं जितना अभी देखने में आ रहा है। आखिर लॉकडाउन का एक उद्देश्य यह भी तो है कि तेजी से संसाधन इतने बढ़ा लिये जायें कि खुलने के बाद नये मरीजों को इलाज की जगह मिल सके।
कोविड मरीजों के मौत की जिम्मेदारी
राजधानी के राजधानी अस्पताल में पांच कोरोना पीडि़त मरीजों की मौत पर संवेदना और मुआवजा की औपचारिकता को पूरी की जा रही है। हादसे के बाद संवेदनाओं को झकझोरने वाले दृश्य दिखे पर इस की वजह क्या थी, कौन इसकी जिम्मेदारी लेगा, इसकी बात नहीं हो रही है। शॉपिंग मॉल, अस्पताल, होटल, सिनेमाघर के संचालक प्राय: इतने ताकतवार तो होते हैं कि अपने मनमाफिक रिपोर्ट बना लें। लेने वाला भी तैयार और देने वाला भी। नगर निगम के कर्मचारियों के हाथ में फायर सेफ्टी प्रमाण पत्र बनाने का अधिकार होता है जो बिना किसी जांच पड़ताल के ही तैयार कर दिया जाता है। इस मामले में ऐसा हुआ होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। अब बात हो रही है सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के फायर सेफ्टी मेजर्स की जांच की जाये। हो सकता है राजधानी के कुछ अस्पताल, होटलों में जांच हो जाये, पर बाकी जिलों के प्रशासन में तो अभी तक इस गंभीर घटना को लेकर कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही है।