राजपथ - जनपथ
अपराध होने के पहले कौन जिम्मेदार?
गश्त ढीली हो और लूट चोरी की वारदात हो जाये तो पुलिस पर ऊंगली उठेगी ही। पर बहुत सी जघन्य वारदात ऐसी होती है जिसकी पृष्ठभूमि तैयार करने में पुलिस की भूमिका बहुत कम रहती है। सरकार के दूसरे विभागों की ढिलाई, भ्रष्टाचार, आपसी रंजिश, टकराव की वजह इनमें होती है। कोरबा में पूर्व उप मुख्यमंत्री स्व. प्यारेलाल कंवर के बेटे हरीश, उनकी पत्नी व चार साल की मासूम बेटी की हत्या कर दी गई। कुछ आरोपियों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।
फरवरी माह में आपसी विवाद के चलते तीन लोगों की हत्या कोरबा जिले के ही लेमरू थाने के अंतर्गत एक गांव में कर दी गई थी। इसमें भी एक बच्चे की जान ले ली गई थी। जान पहचान वालों ने वारदात को अंजाम दिया था, जिसका अंदाजा गांव के लोगों को भी नहीं था। अमलेश्वर थाने के खुड़मुड़ा गांव में चार लोगों की हत्या के आरोप में काफी जांच पड़ताल के बाद पुलिस ने मृतक परिवार के सदस्य को ही गिरफ्तार किया। पाटन के बठेना गांव का मामला अब तक पूरा नहीं सुलझा है पर इसमें बात आई कि चार लोगों की हत्या कर जिस व्यक्ति ने फांसी लगाई वह सूदखोरों और अपने बेटे के जुए के लत से परेशान था। कुछ आत्महत्या की घटनायें भी हो जाती है। खराब बीज के चलते फसल खराब हो गई- परेशान किसान ने फांसी लगा ली। पटवारी के रिश्वत लेने के बावजूद किसान ऋण पुस्तिका वक्त पर नहीं पा सका, उसने खुदकुशी कर ली। धान बेचने के दस्तावेज नहीं बने तो एक ने खुद की जान ले ली। ऐसे मामलों में पुलिस यदि घटना के बाद अपराधियों तक नहीं पहुंच पाती है और सजा नहीं दिला पाती तो उसकी नाकामी है।
ऐसी घटनायें पहले भी होती रही हैं, पर बीते एक साल के भीतर कोरोना संक्रमण के कारण लोगों में तनाव बढ़ा, अवसाद से घिरे और पारिवारिक वैमनस्यता भी बढ़ी। अब दूसरी लहर फिर आ गई है। हर एक वारदात को सीधे इस महामारी से नहीं जोड़ा जा सकता, पर अपराधों का ग्रॉफ ऊपर नीचे होने में इसी तरह के कई कारण सामने आते हैं। हमारे यहां सिटीजन चार्टर हैं, जन समस्या शिविर लगती है, समाज कल्याण विभाग है, लोगों की समस्यायें सुनने के लिये सुलझाने के लिये। पर जो लोग मानसिक अवसाद और आपसी कलह से जूझ रहे हैं उनके लिए शासन और समाज के स्तर पर भी बहुत सीमित गतिविधियां हैं। लोग खुलकर अपनी तकलीफ बतायें, जिम्मेदार लोग उसे सुनें और समय पर हल निकाल दें तो कुछ हद तक अपराध कम होने उम्मीद कर सकते हैं।
वकीलों पर दुबारा आई विपदा
बीते साल कोरोना महामारी के बाद लम्बे समय तक अदालती कामकाज ठप रहा। हाईकोर्ट के अधिवक्ता और निचली अदालतों में लम्बे समय से अपनी पहचान बना चुके अधिवक्ताओं को छोडक़र बाकी सब आर्थिक संकट से घिरते गये। मुश्किल इतनी थी कि तंजावूर के एक अधिवक्ता ने तो पारम्परिक बांस की टोकरी बुनने का काम शुरू कर दिया था। टॉइम्स ऑफ इंडिया में इस खबर को पढक़र छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने उसे अपनी ओर से सहायता राशि भी भेजी थी।
इस बार कोरोना की मार ज्यादा बुरी है। फिर अदालतें बंद हो चुकी हैं। फिर रोजगार के संकट से अधिवक्ता घिर गये हैं। खासकर जिनकी आठ-दस साल या उससे कम की नई प्रैक्टिस है। जो बड़ी मुश्किल से पैर जमा रहे हैं उनको परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। इस दूसरी लहर में जिन लोगों ने जान गंवाई उनमें अब तक 10 अधिवक्ताओं के नाम भी आ गये हैं। अधिवक्ता संगठन उनके परिवार को तथा खाली बैठे निचली अदालतों के वकीलों को सहायता राशि देने की मांग कर रहे हैं। पिछली बार कुछ राशि बार काउन्सिल की ओर से दी गई थी। इनका अपना अधिवक्ता कल्याण कोष होता है। इस बार भी राशि के लिये पत्राचार हो रहा है। राज्यसभा सदस्य केटीएस तुलसी और विवेक तन्खा दोनों कांग्रेस के हैं, उन्होंने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। बार कौंसिल के पास अलग आवेदन विचार के लिये रखा है। विधि मंत्री के पास भी फरियाद पड़ी है। पर, मदद हो नहीं पाई है, सारी प्रक्रियायें बहुत धीमी चल रही हैं।
खाईवालों का वर्क फ्रॉम होम
लॉकडाउन के चलते लोग घरों में बंद हैं। अपराधी भी बाहर नहीं निकल रहे हैं। पुलिस को थोड़ा सुकून है। पर एक क्राइम घर बैठे हो रहा है। वह है आईपीएल में सट्टा लगाने का। रायपुर, कोरबा, बिलासपुर सब जगह से ख़बरें आ रही हैं कि खाईवाल इन दिनों घरों से ही ऑनलाइन सट्टा खिला रहे हैं। पैसे भी ऐप से ऑनलाइन ट्रांसफर कर रहे हैं। मैच देखने, सट्टा लगाने, बुकिंग लेने से लेकर क्लेम को निपटाने तक का कोई भी काम ऐसा नहीं है जिसके लिये घर के बाहर निकलना पड़े। पिछली बार पुलिस जंगलों में छिपे यहां तक कि गोवा जाकर दांव लगा रहे सट्टेबाजों को दबोच चुकी थी। पर इस बार सटोरियों के साथ-साथ मुखबिर भी लॉकडाउन के कारण नहीं निकल रहे हैं। एक दो मामले ही हाथ आ रहे हैं। सूचनायें कम, कार्रवाई सीमित और आईपीएल के समानान्तर सट्टे का खेल भरपूर चल रहा है।