राजपथ - जनपथ
छुट्टी पर जाने की अनुमति
अपर मुख्य सचिव रेणु पिल्लै मेहनती अफसर मानी जाती हैं. ऐसे समय में जब उनके पति, डीजी संजय पिल्ले कोरोना संक्रमण से जूझ रहे थे, अंबेडकर अस्पताल में ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। रेणु पिल्लै छुट्टी लिए बिना स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख होने के नाते पूरे प्रदेश में कोरोना को नियंत्रित करने में जुटी रहीं।
रेणु पिल्लै ने कठिन समय में अपना धैर्य नहीं खोया। ऐसेे विपरीत समय में भी वे रोजाना 12 घंटे से अधिक काम करती रहीं। अब जब संजय पिल्ले ने पखवाड़े भर अस्पताल में भर्ती रहने के बाद कोरोना की जंग जीत ली है, और विशेषकर रायपुर-दुर्ग में कोरोना कुछ हद तक नियंत्रित होता दिख रहा है। तब जाकर रेणु ने 15 दिन अवकाश पर जाने की अर्जी दी। सरकार ने भी उदारता दिखाते हुए उन्हें छुट्टी पर जाने की अनुमति दे दी है। स्वास्थ्य विभाग का प्रभार प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला को दिया गया है, जो कि विभाग की हर गतिविधियों से परिचित हैं, खुद मेडिकल डॉक्टर भी हैं, और रायपुर के मेडिकल कालेज में ही पढ़े हुए भी हैं।
ऐसे दुस्साहसी लोगों की वजह से
देश में कोरोना संक्रमण का कहर बरपा है। छत्तीसगढ़ में रोजाना दो सौ के करीब मौतें हो रही हैं। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए दर्जनभर शहरों में लॉकडाउन है। मगर ऐसे भी लोग है, जो कि कोरोना खतरे से बेपरवाह हैं। ऐसे ही रायपुर के एक मोहल्लेे के करीब सौ से अधिक लोग पंचायत चुनाव में वोट डालने उत्तरप्रदेश चले गए। उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव के पहले चरण की वोटिंग 26 तारीख को थी और दूसरा चरण 29 को। यह जानते हुए भी कि उत्तरप्रदेश में कोरोना संक्रमण छत्तीसगढ़ से ज्यादा है। बावजूद इसके इन लोगों ने वोटिंग में हिस्सा लिया, और वोट डालने के बाद ही लौटे हैं। अब ऐसे दुस्साहसी लोगों की वजह से मोहल्ले में कोरोना संक्रमण बढऩे के आसार दिख रहे हैं।
टावर नहीं तो पेड़ पर मोबाइल फोन
मई 2018 में जब तत्कालीन भाजपा सरकार ने स्काई योजना शुरू की थी तो कई तथ्य सामने आये थे। जैसे, सामाजिक आर्थिक जनगणना 2011 के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत वनों से आच्छादित इस प्रदेश के सिर्फ 29 प्रतिशत परिवारों के पास फोन है, जबकि देश का औसत 72 प्रतिशत है। 10 जिलों में 50 प्रतिशत से कम नेटवर्क कवरेज है और चार जिलों में यह 15 प्रतिशत है। इसी आधार पर 55 लाख हितग्राहियों की पहचान की गई और उन्हें 1230 करोड़ की स्मार्ट फोन बांटने की स्कीम लांच हुई। भरसक प्रयास के बाद भी चुनाव आचार संहिता लागू होने के तक फोन बांटे नहीं जा सके और जब प्रदेश में सरकार बदली तो स्कीम को बंद कर दिया गया। इसी स्काई स्कीम में एक हजार से अधिक आबादी वाले गांवों को नेटवर्क कनेक्टिविटी देने के लिये मोबाइल टावर देने की योजना बनाई गई। स्मार्ट फोन तो जितने बंटने थे बंटे, पर मोबाइल टावर नहीं लग पाये। इनमें बस्तर के इलाके सर्वाधिक प्रभावित हैं। निजी कम्पनियां वहां के दूरदराज इलाकों में टावर लगाना नहीं चाहती। हालांकि केन्द्र की अन्य योजनाओं के तहत यहां बीएसएनएल ने बहुत से टावर लगाये हैं और ज्यादातर सौर ऊर्जा से चलने वाले हैं। पर जिस तरह से बस्तर की भौगौलिक स्थिति है कई-कई किलोमीटर तक नेटवर्क अभी भी नहीं सुधरा है। ऐसे में जो जवान अकेले दुर्गम जंगलों में ड्यूटी करते हैं उन्हें परिवार से सम्पर्क करना बड़ा मुश्किल होता है।
लेकिन कई जवान इस मुश्किल को अपने तरीके से हल भी कर रहे हैं। वे अपने परिवार वालों से बातचीत के लिये मोबाइल फोन को रस्सी से बांधकर पेड़ की ऊंचाई पर ले जाते हैं फिर नीचे ब्लू ट्रूथ से बातें करते हैं। और इस तरह बिना नेटवर्क वाले इलाकों में भी वे अपने दोस्तों और परिवार से सम्पर्क कर लेते हैं। (फोटो ट्विटर-रितेश मिश्रा)
युवाओं के टीकाकरण का श्रीगणेश
केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप तीसरे चरण में आज एक मई से युवाओं को टीका लगाने की शुरूआत करने वाले ज्यादातर राज्य भाजपा शासित हैं। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने आखिरी वक्त में कल इस बारे में फैसला लिया। राजधानी रायपुर में कुल 13 सेंटर तो बिलासपुर में 10 सेंटर ही बनाये गये हैं जिनमें 18 से 45 आयु वर्ग के अति गरीब परिवारों के लोगों को टीका लगाया जायेगा। बस्तर जैसे कुछ दूरस्थ जिलों में यह अभियान 2 मई से शुरू किया जा रहा है। यानि यह शुभ मुहूर्त का टीका होगा, जिसके दो चार दिन में बंद हो जाने की संभावना है। राज्य सरकारों को वैक्सीन निर्माता कम्पनियों ने कह दिया है कि मई आखिरी या जून के पहले सप्ताह में ही टीके की आपूर्ति हो पायेगी। यह देखने की बात है कि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में भी इसी तरह से टोकन के तौर पर ही सही, अभियान शुरू हो सकता था। पर, वहां 5 मई तिथि तय की गई है। कुछ दूसरे राज्यों ने भी देर से टीका शुरू करने का निर्णय लिया है। क्या देर से टीकाकरण करने वाले राज्यों को आवश्यकता के अनुसार नियमित आपूर्ति हो पायेगी? क्या छत्तीसगढ़ की तरह उनको एक माह इंतजार नहीं करना पड़ेगा? उन सरकारों से दवा निर्माता कम्पनियों के साथ उन राज्यों की बातचीत सामने नहीं आई है। पर यह तो तय है कि आपूर्ति के संकट का समाधान दो चार दिन अभियान को आगे खिसका देने से नहीं होने वाला है। हां, छत्तीसगढ़ को लेकर यह जरूर कहा जा सकता है कि मई तक जो खाली समय बच रहा है, उसमें 45 प्लस का टीकाकरण दूसरे डोज के साथ पूरा कर लिया जाये इसके व्यवस्था बनाये रखने में भी मदद मिलेगी।