राजपथ - जनपथ
नेतागिरी के लिए बेलने पड़ रहे पापड़
कोरोना लॉकडाउन के कारण तमाम गतिविधियां बंद हैं। लिहाजा राजनीतिक गतिविधियां भी बयानबाजी तक सीमित हो गई है। विशेष मौकों पर राजनीतिक दल के लोग घर से विरोध- प्रदर्शन कर रहे हैं। घर से धरना-प्रदर्शन करना कई मामलों में आसान है तो कई मामलों में चुनौतीपूर्ण भी है। क्योंकि तख्ती, बैनर-पोस्टर और झंडों का जुगाड़ करना पड़ता है। इसके अलावा तखत, गद्दा-तकिया और कुर्सी टेबल का इंतजाम करना होता है। पिछले तकरीबन एक साल से ऐसी स्थिति तो है तो बड़े नेताओं ने तो ये व्यवस्था कर ली है, लेकिन समस्या उस वक्त आती है, जब धरना-प्रदर्शन के लिए पोस्टर लिखना होता है। चूंकि दुकानें बंद है, तो फ्लैक्स या पोस्टर तैयार नहीं हो पाते। संसाधन और धन-बल से परिपूर्ण बड़े नेताओं ने तमाम साजो-सामान की परमानेंट व्यवस्था कर ली है, दिक्कत उनके लिए ज्यादा है, जिन्होंने नेतागिरी में नया-नया कैरियर शुरु किया है। ऐसे लोगों के पास बजट की भी कमी रहती है, लिहाजा वे बड़े नेताओं की परमानेंट व्यवस्था भी नहीं कर सकते। नेतागिरी में चमकना है तो धरना-प्रदर्शन भी जरूरी है। ऐसे लोग सीमित संसाधनों में काम चलाते हैं। कोई बैनर-पोस्टर की जगह खुद की लिखी तख्तियों से काम चलाते हैं, तो कोई घर के स्कूली बच्चों के ब्लैक बोर्ड या स्लेट पर नारे लिखकर धरना-प्रदर्शन करते हैं। ऐसे कार्यक्रमों की तस्वीर आती है तो पता चलता है कि नए-नवेले और कम संसाधन वाले कार्यकर्ता नेता बनने के लिए कितने पापड़ बेल रहे हैं। इतना ही नहीं, तस्वीरें और भी कई बातों को उजागर कर देती हैं। मसलन कोई बरमुड़ा पहन के धरना दे रहे हैं, तो कोई घर के छत पर प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं। कुल मिलाकर कोविड के इस दौर ने चुनौतियों के साथ उससे निपटने के तरीके भी सिखा दिए हैं। इसलिए तो कहा जाता है कि संघर्ष के दिन पाठशाला होती है।
पत्रकारों की नाउम्मीदी
छत्तीसगढ़ में कोरोना टीके को लेकर विवाद बना हुआ है। राज्य सरकार के 18 प्लस के टीकाकरण के लिए अति गरीबों को प्राथमिकता देने के नियम को कोर्ट से झटका लगा है। हालांकि विपक्ष ने इस नियम के कारण सरकार को घेरने की कोशिश की थी। कहा जा सकता है कि कोर्ट के आदेश के बाद सरकार विरोधियों को एक तरह से सफलता मिली है। कुल मिलाकर ऐसे में राज्य में टीकाकरण अभियान का प्रभावित होना तय है। इसका असर यह होगा कि राज्य में कोरोना को रोकने की कोशिशों को भी झटका लग सकता है। खैर, सियासी और कोर्ट से परे टीकाकरण को लेकर छत्तीसगढ़ के मीडियाकर्मी भी नाराज है। सोशल मीडिया पर मीडियाकर्मियों की नाराजगी साफ देखी जा सकती है। दरअसल, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और पंजाब जैसे कई राज्यों ने मीडियाकर्मियों को फ्रंटलाइन वर्कर मानते हुए टीका में प्राथमिकता देने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में यहां के पत्रकारों को भी उम्मीद थी कि छत्तीसगढ़ सरकार भी ऐसा कुछ फैसला ले सकती है, क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार में पत्रकार बिरादरी को अच्छा-खासा प्रतिनिधित्व मिला है। इसके बावजूद पत्रकार हित में ऐसा कोई फैसला अब नहीं लिया जा सका है। लिहाजा पत्रकारों की उम्मीद को भी झटका लगा है। जबकि इसके लिए पत्रकार संघ की तरफ से पहल की गई और मुख्यमंत्री से पत्राचार किया गया। पत्रकारों को टीका में प्राथमिकता मिलने की संभावना उस वक्त और क्षीण होती दिखाई दे गई, जब कुछ उत्साही पत्रकारों ने इसके लिए विपक्ष से समर्थन की मांग कर डाली और पूर्व सीएम से सरकार को पत्र लिखवा दिया कि पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर का दर्जा दिया जाए। अब तो वे पत्रकार भी निराश हो गए हैं, जो सरकार से बातचीत कर रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि विपक्ष की बात को सरकार मानेगी, इसकी संभावना कम ही दिखाई पड़ती है।
गलतफहमी झोलाछाप डॉक्टर करें दूर?
प्रदेश एक तरफ तो टीकाकरण अभियान में वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ जमीनी स्तर पर काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, मितानिनों को जोखिम उठाना पड़ रहा है। कुछ दिन पहले गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में एक मितानिन पर लाठियों से हमला कर दिया गया था। कुछ गांवों में वैक्सीनेशन करने गई टीम को गांव वालों ने भीड़ इक_ी कर भगा दिया। अंबिकापुर से भी सोमवार को खबर आई कि टीके के लिए प्रेरित करने गए हेल्थ वर्कर्स के साथ मारपीट की गई और उनसे किट छीन लिया गया। बिलासपुर जिले के गनियारी से भी कल खबर आई है कि वहां वैक्सीनेशन टीम को महिलाओं ने गाली गलौज करके भगा दिया।
ऐसी ही घटनाएं कुछ अन्य जिलों में भी हो रही हैं। ज्यादातर स्थानों से ग्रामीणों के विरोध की वजह भी सामने आ रही है। उन्हें गलतफहमी या डर है कि टीका लगवाने से वे बीमार पड़ सकते हैं और जान भी जा सकती है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम यह बात नहीं छुपा रही है कि टीका लगवाने के बाद बुखार आता है पर वे साथ ही यह भी बता रहे हैं कि इसका 24 घंटे तक ही असर रहता है। दरअसल वे स्वास्थ्य के लिए काम करने वाले सरकारी महकमे पर भरोसा ही नहीं कर रहे हैं। गांवों में झोलाछाप डॉक्टरों और झाड़-फूंक करने वालों की पैठ बनी हुई है। क्या अब ग्रामीणों को समझाने के लिये इन्हीं लोगों को लगा दिया जाये?
रिपोर्ट में देरी, इलाज में देरी, और फिर मौत
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कोविड महामारी से संबंधित स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई शुरू की तो बहुत सी हस्तक्षेप याचिकाएं भी दायर हो गईं। इस वक्त चर्चा सिर्फ तीसरे चरण के वैक्सीनेशन को लेकर है जिसमें 18 साल से 44 साल के लोगों को टीका लगाया जाना है। इस पर क्या दिशा निर्देश मिलता है यह अगली सुनवाई के बाद ही पता चलेगा। इधर कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कुछ और जरूरी निर्देश सरकार को दिए थे। एक महत्वपूर्ण आदेश यह भी था की आरटी पीसीआर जांच की रिपोर्ट तत्काल टेस्ट कराने वाले को दी जाए ताकि समय पर उपचार मिल सके। अभी स्थिति यह है कि एंटीजन जांच रिपोर्ट तो तुरंत मिल जाती है लेकिन आरटीपीसीआर के लिए कहा जाता है कि मोबाइल फोन पर मैसेज आएगा। अमूमन 4 से 5 दिन तो इस रिपोर्ट में लग ही रहे हैं। कई संदिग्धों को दस-दस दिन तक रिपोर्ट नहीं मिलती। ऐसे केस भी आए हैं जिनमें मरीज संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो चुका पर उसके बाद रिपोर्ट मिली। पीडि़त बताते हैं कि कई मौतें जांच रिपोर्ट की देरी के चलते भी हो रही हैं क्योंकि इलाज भी देर से शुरू किया गया। उनका कहना है कि जिस तरह से अस्पतालों में बेड और कोविड केयर सेंटर बनाने के लिए कवायद की जा रही है, उसी तरह से ज्यादा से ज्यादा आरटीपीसीआर जांच के लिए लैब और स्टाफ बढ़ाना चाहिए। अभी एक बड़े जिले पर कई छोटे जिलों का बोझ है।
शराब दुकान खुलने से ही मानेंगे?
बीते साल भी लॉकडाउन में रायपुर में शराब की जगह जहर पी लेने के कारण 3 लोगों की मौत हो गई थी। पिछले दिनों फिर स्प्रिट पी लेने की वजह से दो की मौत हो गई और एक गंभीर हालत में पहुंच गया। अब बिलासपुर जिले से इनसे भी बड़ी घटना सामने आई है। यहां महुआ शराब में अल्कोहलयुक्त होम्योपैथी सिरप मिलाकर पीने से चार लोग अपनी जान गवां बैठे। दो लोग गंभीर बीमार है, जिनका इलाज चल रहा है। पिछले लॉकडाउन में कुछ रियायत थी। सरकार ने इस बार कम से कम यह मान तो लिया है कि शराब दुकानों में भीड़ की वजह से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ता है। लेकिन इन मौतों की आड़ में मदिरा प्रेमी सरकार पर दबाव भी बढ़ा सकते हैं। अवैध शराब का जुगाड़ करने में काफी खर्च भी हो रहा है और जान का खतरा भी बना हुआ है। लॉकडाउन उनकी उम्मीद से ज्यादा लंबा खिंचता जा रहा है, इसलिए थोड़ा रहम करें।