राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आधे शटर में दुकानदारी
09-May-2021 5:56 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आधे शटर में दुकानदारी

आधे शटर में दुकानदारी

मोहल्ले के दुकानदारों से आम तौर पर ऐसा रिश्ता होता है कि आते-जाते सामान उठा लिये और लिख लेना, भी कह देते हैं। एक साथ महीने का सामान लेने वाले लोगों को पहले के लॉकडाउन में किराना सामानों की होम डिलिवरी शॉपिंग मॉल, सुपर मार्केट और ऐप से मिल जाती थी। पर इस बार आदेश निकालने के बाद उसे वापस ले लिया गया। इसके चलते मोहल्ले की दुकानें ही बची हैं जिनसे चिल्हर सामान लेने वालों को खासी परेशानी हो रही है।

खासकर वह तबका जो बहुत कम मात्रा में तेल, साबुन लेने की हैसियत रखता है। दुकानदारों को शटर उठाकर सामान देने की इजाजत नहीं है। वे फोन पर ऑर्डर लेकर सिर्फ होम डिलिवरी कर सकते हैं। पर मोहल्ले के दुकानदारों के साथ सहज संवाद ऐसा रहता है कि कभी फोन नंबर पूछा ही नहीं गया। और, फोन नंबर लेकर ऑर्डर दे भी दिया तो 25-50 रुपये का सामान छोडऩे के लिये दुकानदार कितने घरों में जायेंगे? इतने डिलिवरी बॉय उनके पास नहीं होते हैं। कई दुकानों में तो मालिक के अलावा कोई कर्मचारी भी नहीं होता है। ऐसे में पुलिस के खौफ के बीच दुकानदार नियम तोड़ रहे हैं और पुलिस की नजर से बचाकर सामान ङ्घह्म् बेच रहे हैं। पकड़े गये तो 15 दिन के लिये दुकान सील, डंडे अलग से पड़ेंगे। खरीदने वाला खर्च कर रहा है, बेचने वाला नगद पा रहा है पर दोनों को ऐसा लगता है, मानो चोरी कर रहे हैं। वैसे यह नौबत ग्राहकों और दुकानदारों ने ही लाई है। पहले के लॉकडाउन में जब उन्हें सोशल डिस्टेंस का पालन करने कहा गया तो दुकान के बाहर गोल घेरे बनाये गये, रस्सी बांधी गई। चार से ज्यादा लोगों को एक साथ दुकान में नहीं घुसने की हिदायत दी दई थी। पर कुछ ही दिनों में सभी दायरे टूटते गये। नतीजा सामने है। 

कोरोना से बचने की ऐसी नसीहत...

इन दिनों आप साबुन बेच रहे हों या सरिया, हर एक विज्ञापन में सोशल डिस्टेंस, सैनेटाइजर, मास्क का संदेश जोडक़र सामाजिक सरोकार प्रदर्शित किया जा रहा है। मेडिकल सर्विस के विज्ञापनों का तो यह जरूरी हिस्सा है। कोरोना खत्म करने के लिये अब तक कोई दवा अब तक आ नहीं पाई है इसलिये हर एक पद्धति को लोग आजमा रहे हैं। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का काम भी इसके चलते बढ़ा है। ऐसे ही एक चिकित्सालय का पोस्टर अपनी ओर ध्यान खींच रहा है। कोरोना से बचाव के लिये कौन-कौन से उपाय जरूरी हैं, यह विज्ञापन में बताया गया है। तस्वीर खिंचाने वालों ने भी, जो शायद चिकित्सालय के स्टाफ हैं, मास्क तो पहना है पर  सोशल डिस्टेंस का पालन करना भूल गये हैं। शायद न भी भूले हों, हो सकता है कि फोटोग्रॉफी के समय कोरोना का खतरा कम हो जाता हो?

अब ऑनलाइन पिंडदान

बढ़ते कोरोना संकट के चलते हर कोई दहशत में है। पूजा पाठ कराने वाले पुरोहित पंडित भी। इस महामारी में कारोबार बैठ जाने के बावजूद वे सावधान हैं। इसी का असर मृत्यु के बाद होने वाले कर्मकांडों पर भी दिखाई दे रहा है। शादी-विवाह पर तो रोक लग गई। तीज-त्यौहार भी सम्पन्न होते जा रहे हैं। पर अंतिम सत्य, मृत्यु के संस्कारों को पूरा करने के लिये क्या किया जाये?

कोरोना के बिना होने वाली सामान्य मौतों में भी श्मशान घाट चलने के लिये पंडितों की तलाश करनी पड़ रही है। मृतात्मा की शांति के लिये रिवाज बना हुआ है, पिंडदान और ब्राह्मण भोज की। इसके लिये भी महराज नहीं मिल रहे हैं। नई परिस्थितियों में कुछ प्रयोग इस समस्या के समाधान के लिये किये जा रहे हैं। वीडियो काल के जरिये पंडित अपने जजमानों से जुड़ रहे हैं और उन्हें पिंडदान विधि-विधान से करा रहे हैं। ब्राह्मण भोज और दक्षिणा पर खर्च होने वाली मुद्रा का हस्तांतरण भी ऑनलाइन कर दिया जा रहा है। अब शोक-पत्र भी डिजिटली ही भेजे जा रहे हैं। इसमें अनुरोध किया जा रहा है कि मृतात्मा की शांति के लिये अपने घरों से ही प्रार्थना करें।

शुक्र है कि इस महामारी के दौर में लोग प्रतीकात्मक और वैकल्पिक तरीके से ही सही अपने पूर्वजों के प्रति आदर भाव दिखा रहे हैं। वरना हाल ही में तो अपने प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आ गये हैं जिनमें बुजुर्ग की सामान्य मौत होने पर उन्हें कोई कांधा नहीं देने पहुंचा। यह भी हो चुका है कि बाप के मरने की खबर इंदौर में बैठे बेटे को दे दी तो उसने अपने मोबाइल फोन का स्विच ही बंद कर दिया।

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