राजपथ - जनपथ
सहूलियत की तकनीकी दिक्कत
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय पिछले ढाई साल से एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि विधानसभा में 50 से 15 सीटों पर कैसे आए? पर पार्टी के रणनीतिकार इससे कन्नी काटते रहे हैं। पिछले दिनों सरगुजा संभाग के नेताओं के साथ प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने वर्चुअल बैठक की थी। बैठक में प्रदेश प्रभारी ने कोरोना से प्रभावित लोगों के लिए पार्टी नेताओं द्वारा की जा रही मदद पर चर्चा की। स्थानीय नेता बता रहे थे कि दीनदयाल रसोई से जरूरतमंदों को खाना पहुंचाया जा रहा है।
कुछ बता रहे थे कि उन्होंने सूखा राशन बंटवाया है। पीडि़तों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था भी की थी। इससे लोगों में अच्छा संदेश जा रहा है। इन चर्चाओं के बीच साय ने फिर एक बार पुराना सवाल उछाल दिया कि विधानसभा में बुरी हार की समीक्षा कब होगी? इस पर पुरंदेश्वरी को जवाब देते नहीं बना, लेकिन इस तरह की बैठकों की खासियत यह रहती है कि तुरंत तकनीकी समस्या आ जाती है, और विषय आगे बढ़ जाता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ, और साय का सवाल अनुत्तरित रह गया।
एक अफसर ने हिला कर रख दिया
महासमुंद के महिला बाल विकास अफसर सुधाकर बोदले अपने विभाग के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की मांग को लेकर अनशन पर बैठे, तो शासन-प्रशासन हिल गया। पहले तो हिरासत में लेने की कोशिश की गई, लेकिन स्थानीय लोगों का दबाव इतना पड़ा कि पुलिस को सफाई देनी पड़ी। यह बात किसी से छिपी नहीं है, कि मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना और रेडी टू ईट योजना में बरसों से भ्रष्टाचार होता रहा है।
महासमुंद में दिक्कत यह थी कि बोदले उपहार खरीदी, और रेडी टू ईट योजना में गड़बड़ी की जांच चाह रहे थे। जिसके लिए बाकी साथी अफसर तैयार नहीं थे। कन्या विवाह योजना में सरकार की तरफ से नवदंपत्ति को उपहार दिया जाता है। इसकी खरीदी में अनियमितता के मामले कई बार सामने आ चुके हैं। महासमुंद में भी यही हुआ। सात हजार की सामग्री का 14 हजार बिल बना दिया गया। इसके बाद जांच के लिए बोदले को अनशन पर बैठना पड़ा, और हड़बड़ायी सरकार ने उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाकर मामले को शांत करने की कोशिश की है।
विभाग के लोग बताते हैं कि इस योजना में गड़बड़ी से शिकायत पर चर्चा के दौरान एक बार तो निचले स्तर के अफसर ने सुझाव दे दिया था कि क्यों न उपहार की रकम हितग्राहियों के खाते में जमा करा दी जाए, उस समय बड़े अफसर ने ऐसी आंख तरेरी कि सुझाव धरी की धरी रह गई। कई बार तो शादीशुदा जोड़े ही दोबारा शादी करने पहुंच जाते हैं। सरकारी मंडप में बैठने का उपहार भी मिल जाता है। इसमें विभाग के लोगों की हिस्सेदारी रहती है। अब जब बोदले ने हिम्मत दिखाई है, तो योजना में खरीदी की भी समीक्षा हो रही है।
एसडीएम से त्रस्त पटवारी, तहसीलदार
कोरोना काल में सबकी कमाई पर असर पड़ा है। ऐसे में जशपुर जिले के 30 से ज्यादा तहसीलदार और पटवारियों ने एसडीएम के खिलाफ मोर्चा खोलकर एक नई मिसाल पेश कर दी है। इसमें यह संदेश दिया गया है कि राजस्व विभाग में सब भ्रष्ट नहीं हैं। उस सीमा तक तो बिल्कुल नहीं हैं, जितना एसडीएम ने समझ रखा है। कुछ आम लोगों के कलेजे में इस बात से ठंडक पहुंच सकती है कि जो अधिकारी कर्मचारी उन्हें सताते हैं, उनका भी अपना दुखड़ा सामने आया है।
शिकायत करने वाले राजस्व अधिकारी, कर्मचारियों ने कबूल किया है कि वे एसडीएम द्वारा दिये गये वसूली के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाये। वसूली की बात तो खुद से ही मान ली है। जाहिर है, एसडीएम को वे घर से या वेतन से पैसा निकालकर नहीं दे रहे थे। किसी मजबूर आदमी से ही वसूल किया गया होगा। तखतपुर की घटना भी याद आ गई होगी इन अधिकारियों को, जहां एक किसान ने पटवारी द्वारा परेशान किये जाने के कारण आत्महत्या की थी। इस तरह से, पूरी दाल काली दिखाई दे रही है।
बीते साल अप्रैल मई के ही दिनों में एसडीएम पर वाड्रफनगर में रहते हुए एक रेस्ट हाउस में रुके एसडीओपी व उसके परिवार के साथ दुर्व्यवहार की घटना सामने आई थी। इसके कुछ दिन बाद मनरेगा में 14 लाख रुपये के गबन की शिकायत पर कार्रवाई कर उन्हें सस्पेंड भी किया गया था। साल भर बाद फिर वह एसडीएम जैसे जिम्मेदार पद पर वापस हैं, यानि ऊपर तक कड़ी मजबूत हैं। शिकायत पर यकीन किया जाये तो एसडीएम, कलेक्टर के नाम से पैसा मांग रही थी। सच्चाई जांच होगी तो सामने आयेगी। फिलहाल तो किनारे खड़े होकर इस मामले को लोग देख रहे हैं। पता चलेगा दो दर्जन से ज्यादा तहसीलदार और पटवारी भारी पड़ेंगे या एसडीएम की ऊपर तक पहुंच अच्छी है।
कागज में खोल दिया कोविड सेंटर
तीन दिन पहले जांजगीर जिले के नवागढ़ में मुख्यमंत्री ने एक कोविड केयर सेंटर का वर्चुअल उद्घाटन किया। यहां के नगर पंचायत अध्यक्ष भुनेश्वर केशरवानी इस अब इस सेंटर को दीया लेकर ढूंढ रहे हैं। खास बात यह है कि केशरवानी खुद कांग्रेस से हैं।
16 मई को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा प्रदेश के विभिन्न स्थानों में बनाये गये 500 से अधिक कोविड सेंटर्स बेड का वर्चुअल उद्घाटन किया गया, जिनमें 10 बिस्तर का एक कोविड सेंटर नवागढ़ में होना भी बताया गया। इस कोविड सेंटर का पता करने जब केशरवानी और कुछ दूसरे कांग्रेस नेता निकले तो पता चला कि यहां न तो स्टाफ है न ही कोविड के इलाज का कोई भी सेटअप, बस कुछ पलंग पड़े हुए हैं। यानि उद्घाटन मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखकर करा लिया गया। अब सीएम से उद्घाटन कराने से पहले कलेक्टर ने इस कथित कोविड केयर सेंटर का निरीक्षण किया था या नहीं यह पता नहीं, पर प्रशासन की किरकिरी तो हो ही रही है। विपक्षी दल भाजपा ने भी इस मुद्दे को लेकर सरकार की खिंचाई शुरू कर दी है।
धान के बदले पेड़ उगाने के पीछे का फंडा
पौधारोपण के एवज में किसानों को तीन साल तक दस-दस हजार रुपये प्रोत्साहन राशि देने की नई योजना की दूसरे प्रदेशों में शायद उसी तरह से चर्चा हो जैसा गोबर खरीदने के निर्णय की हुई थी। पेड़ लगाने की योजना को लाने के कई कारण हो सकते हैं। धान कैश क्राफ्ट है। लघु, सीमांत किसान इसे तुरंत बाजार में निकाल कर नगद राशि हासिल कर सकते हैं। बड़े किसान इसे कोठियों में जमा कर रख सकते हैं और जब जरूरत हो निकाल सकते हैं। सरकारी प्रोत्साहन के कारण धान की पैदावार प्रदेश में बढ़ती ही जा रही है और खपत हो नहीं रही। हर साल करोड़ों के धान सड़ रहे हैं। खरीदी और परिवहन की कीमत भी सरकार नहीं निकाल पा रही है। आने वाले वर्षों में यही ट्रेंड बना रहा तो सरकार का राजस्व घाटा बढ़ता जायेगा। नई योजना उन किसानों के लिये अच्छा विकल्प है जिन्हें धान की पूरी उपज तत्काल बेचने की जरूरत नहीं है। पेड़ लगाने से वे तीन से पांच साल में एक अच्छी रकम हासिल कर पायेंगे। सरकार पर धान पर दिये जाने वाले प्रोत्साहन की राशि और न्याय योजना में दी जाने वाली रकम पर भी कुछ खर्च में कमी आयेगी। फिर पर्यावरण को संभालना भी जरूरी है। जंगलों में जो कटाई हो रही है वह एक तरफ, सडक़, पुल, बांध, खदान, फैक्ट्रियों के लिये मैदानी क्षेत्रों में पेड़ काट तो दिये जाते हैं पर उसकी भरपाई नहीं हो पाती। किसान अपने खेतों में लगे पौधों की सहेजेंगे। फलदार पेड़ हर साल आमदनी देंगे और इमारती लकड़ी बेचने से एकमुश्त लाभ देगा। अभी योजना का पूरा खाका सामने आने पर पता चलेगा कि किसान इस नई स्कीम की ओर इतनी रुचि दिखाते हैं।