राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भूखे भजन न होय गोपाला
30-May-2021 7:20 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ :  भूखे भजन न होय गोपाला

भूखे भजन न होय गोपाला

विधानसभा चुनाव में ढाई साल बाकी रह गए हैं, और कांग्रेस ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम हो रहा है। संचार विभाग की रोज वर्चुअल बैठक हो रही है। जिसमें पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा, रूचिर गर्ग, और अनुभवी अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी रोज संचार विभाग के सदस्यों से मीडिया में उठाए जाने वाले मुद्दों पर बात कर रहे हैं। नामी पत्रकारों का मार्गदर्शन मिल रहा है, तो स्वाभाविक है कि संचार विभाग का काम बेहतर हो चला है।

वर्चुअल बैठक को तीन-चार दिन ही हुए हैं, और अब कुछ सदस्य इसमें अरूचि दिखाने लग गए हैं। वजह यह है कि संचार विभाग के कई सदस्य निगम मंडल में जाने वाले थे। दाऊजी ने उनके नामों पर मुहर भी लगा दी थी। मगर पार्टी में अंदरूनी खींचतान की वजह से सूची जारी नहीं हो पाई। कोरोना की वजह से पहले चुप रहे, लेकिन अब काम का दबाव बढ़ रहा है, तो पद के आकांक्षी सदस्यों में बेचैनी साफ दिख रही है। संचार विभाग के प्रमुख सदस्य सुशील आनंद शुक्ला ने फेसबुक पर लिख भी दिया-भूखे भजन न होय गोपाला। लीजे आपन कंठी माला।। देखना है कि सदस्यों को संतुष्ट करने के लिए पार्टी क्या कुछ करती है।

कागज पर ही रहीं, और चली गईं

तेज तर्रार महिला नेत्री करूणा शुक्ला कोरोना संक्रमण से उबर नहीं पाई, और कुछ दिन पहले चल बसीं। करूणा दो बार विधायक, और एक बार सांसद रहीं। अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहीं। वे सौदान सिंह, और रमन सिंह से विरोध की वजह से कांग्रेस में शामिल हुई थीं। कांग्रेस ने भी उन्हें पूरा सम्मान दिया। करूणा शुक्ला को समाज कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। सालभर पहले उनकी नियुक्ति हुई थी। लेकिन इस पद पर वे काम नहीं कर पाईं।

समाज कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए केन्द्र सरकार की रजामंदी जरूरी है, और राज्य सरकार ने प्रस्ताव भी भेज दिया था। मगर केन्द्र से उनकी नियुक्ति को हरी झंडी नहीं मिल पाई। आम तौर पर केन्द्र से तुरंत सहमति पत्र मिल जाता है, लेकिन करूणा के मामले में ऐसा नहीं हो पाया। कांग्रेस के भीतर यह चर्चा है कि भाजपा के प्रभावशाली नेताओं ने केन्द्र सरकार से उनकी नियुक्ति पर सहमति नहीं होने दी। करूणा शुक्ला को लालबत्ती वाहन, और मानदेय अंत तक नहीं मिल पाया। वे सिर्फ कागज पर ही अध्यक्ष रहीं, और दुनिया छोड़ चली गईं।

कोरोना ने पगड़ी बचाने का रास्ता दिखाया...

संक्रमण के मामलों में गिरावट के बाद लोगों को विवाह घरों में भी समारोह आयोजित करने की अनुमति कमोबेश सभी जिलों में मिल गई है। जून और जुलाई महीने में विवाह के कई मुहूर्त है। अभी तक विवाह का आयोजन 10 लोगों की अधिकतम उपस्थिति में करने की अनुमति दी गई थी पर अब 50 लोग शामिल हो सकते हैं। जाहिर है अब भी यह संख्या कम है और बहुत करीबी लोगों के बीच ही यह मांगलिक कार्य हो पाएंगे। ऐसे समारोह से जुड़े व्यवसायियों को भी थोड़ी राहत तो मिली है लेकिन तब भी समारोह में हुआ भव्यता नहीं आ पाएगी जो कोरोना काल से पहले दिखाई देता था। इस दौर में आडंबर का प्रदर्शन शायद ही कोई करे। यदि किसी ने किया तो उसे अच्छा नहीं माना जाएगा। कहा जा रहा है कि कोरोना काल के बाद की दुनिया बदल जाएगी। संभव है विवाह में फिजूलखर्ची तामझाम और दिखावे का चलन भी इन बदलावों में एक रहेगा। यह उन बेटियों के पिता के लिए तो सुकून देने वाली बात है जो रिश्तेदारों और समाज को दिखाने के लिये हैसियत से ज्यादा खर्च करते हैं और कर्ज में डूब जाते हैं।

कोविशील्ड व कोवैक्सीन की उलझन

कोविड टीकाकरण के दौरान ज्यादातर लोगों ने यह जानने की कोशिश नहीं की उनको कोविशील्ड की डोज दी गई गई या को वैक्सीन की। लेकिन कुछ लोग परेशानी में हैं। इन्होंने साफ देखा कि उन्हें कोविशील्ड लगाई गई पर मेसैज को वैक्सीन की आ गई। ऐसे ही को वैक्सीन लगवाने वालों को कोविशील्ड का मेसैज आ गया। यानि डेटा अलग फीड हो गया। रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर में ऐसी कई शिकायतें टीकाकरण अधिकारी और सीएमएचओ के पास आ चुकी है। पर अकेले छत्तीसगढ़ से ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी यह गड़बड़ी हुई है।  जब टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था तो कहा गया था कि पहला व दूसरा डोज एक ही वैक्सीन हो। अब जब ऐसी शिकायतें थोक में आने लगी है तब केन्द्र सरकार के एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि कायदे से तो दोनों डोज एक ही वैक्सीन की होनी चाहिये पर यदि अलग-अलग वैक्सीन किसी कारण से लग जाये तो चिंता करने की जरूरत नहीं। लोग नये निष्कर्ष के बाद कुछ राहत की सांस ले सकते हैं।

वर्क फ्रॉम टूरिस्ट प्लेस

लॉकडाउन तो अपनी जगह है पर मल्टीनेशनल सहित बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने पिछले दो साल से वर्क फ्रॉम होम को प्राथमिकता दे दी है। इन कम्पनियों का कारोबार देश-विदेश में ज्यादातर ऑनलाइन होता है। अपने छत्तीसगढ़ में भी बैंगलूरु, पुणे, हैदराबाद में काम करने वाले बहुत से प्रोफेशनल्स घर पर काम करते दिखेंगे। आपके आसपास भी ऐसे लोग मिल जायेंगे। शुरू में जब इन युवाओं को घरों से काम करने की छूट मिली तो बड़ी खुशी हुई। माता-पिता भी अपने बच्चों को पास पाकर बड़े खुश हुए। पर अब बहुत से लोग बोरियत भी महसूस कर रहे हैं। इसके लिये भी अब रास्ता सुझाया गया है। आईआरसीटीसी जिसका ज्यादातर बिजनेस ट्रेनों के संचालन से जुड़ा है इन दिनों अपनी आमदनी के नये रास्तों को ढूंढ रही है। उसने प्रस्ताव दिया है कि देशभर के अपने पसंद के हिल स्टेशन, पर्यटन स्थल पर उनकी होटलों पर ऐसे प्रोफेशनल्स आयें और वहीं अपना से अपना काम करें। होटल, उनके कमरे कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित हों इसके लिये जरूरी व्यवस्था भी की जायेगी। वाई फाई, ट्रैवल इंश्योरेंस, फूड सबका ख्याल स्वास्थ्य की सुरक्षा के साथ रखा जायेगा। घर से बाहर भी और दफ्तर में भी नहीं, काम चलता रहेगा।

वैसे यही हाल हमारे जनप्रतिनिधियों, नेताओं का है। कुछ लोग पता कर रहे हैं कि क्या उनके लिये भी इस तरह का कोई पैकेज है?

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