राजपथ - जनपथ
कलेक्टर के तबादले पर जश्न मनाया जाना
हाल में कुछ ऐसे कलेक्टर हटाये गये, जिनका कार्यकाल एक साल भी पूरा नहीं हुआ था। पिछले महीने जब सूरजपुर कलेक्टर को हटाया गया तब उनके खिलाफ नाराजगी का माहौल जनता में बना हुआ था। सरकार की त्वरित कार्रवाई पर लोगों ने प्रसन्नता जताई और बयान भी जारी किये, लेकिन अब उसके ठीक बगल वाले जिले बैकुंठपुर (कोरिया) में कलेक्टर के तबादले से तो पटाखे भी फूटे। और यह काम कांग्रेसियों ने ही किया। जो खबर आ रही है उसके मुताबिक यहां के 3 विधायकों में से दो नहीं चाहते थे कि कलेक्टर को हटाया जाए, जबकि अंबिका सिंहदेव की पटरी उनके साथ नहीं बैठ रही थी। उनके समर्थकों का बयान आया है कि कोरिया जिला विकास के मामले में पीछे हो रहा था, अब तेजी आएगी। भाजपा नेताओं को तंज कसने और चुटकी लेने का मौका मिल गया है। वे कह रहे हैं कि क्षेत्र के विकास के लिये एकजुट होने की जगह विधायक अपनी पसंद-नापसंद से अधिकारियों को हटाने, बिठाने में लगे हुए हैं।
तबादले के वक्त
कुछ कलेक्टरों का हटना तय था। पहली बार के एक कलेक्टर को कुछ दिन पहले ही भनक लग गई थी। फिर क्या था कलेक्टर ने आनन-फानन में जमीन के प्रकरणों को इतनी तेजी से निपटाया कि मातहत भी दंग रह गए। कलेक्टर के खिलाफ लेनदेन की शिकायत सरकार के एक मंत्री तक पहुंची है, मंत्रीजी भी उसी जिले के रहवासी हैं। मंत्रीजी कर भी क्या सकते हैं। कलेक्टर महोदय अपना काम कर निकल गए।
पिछले ढाई साल में प्रशासनिक अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग की तरफ निगाह डालें, तो एक बात साफ है कि मौजूदा सरकार में लो-प्रोफाइल में रहने वाले अफसरों को अच्छा महत्व मिला है। सरकार के एक करीबी का मानना है कि काम को प्रचार की जरूरत नहीं है, जिनका काम दिखता है उन्हें महत्व दिया जा रहा है।
एमआईसी को लेकर चर्चा
रायपुर नगर निगम एमआईसी हर महीने बैठती है, और इसमें विकास योजनाओं को मंजूरी दी जाती है। चूंकि कोरोना की वजह से सामान्य सभा नहीं हो रही है। इसलिए एमआईसी का महत्व और बढ़ जाता है। 9 जून को होने वाली एमआईसी में आने वाले एक प्रस्ताव की जमकर चर्चा है। यह प्रस्ताव एक बड़े उद्योग समूह के कार्पोरेट बिल्डिंग की जमीन के लीज की अवधि बढ़ाने का है। चर्चा है कि इस प्रस्ताव को लाने के लिए निगम के दो विपरीत ध्रुव माने जाने वाले पदाधिकारी एकजुट हो गए हैं। दो प्रतिद्वंदी मिल गए हैं, तो प्रस्ताव मंजूरी मिलना तय है।
ब्लैक फंगस के खतरनाक इंजेक्शन
छत्तीसगढ़ में ब्लैक फंगस के इंजेक्शन्स की बड़ी कमी बनी हुई है। एम्स, सिम्स और जिन-जिन मेडिकल कॉलेजों में मरीजों का इलाज चल रहा है वहां जरूरत के आधे इंजेक्शन भी उपलब्ध नहीं हैं। इधर, मध्यप्रदेश के भोपाल, जबलपुर, इंदौर, सागर और भोपाल से खबर है कि ब्लैक फंगस के सस्ते इंजेक्शन के चलते वहां दाखिल 183 मरीजों की तबीयत बिगड़ गई। स्थिति इसलिये बिगड़ी क्योंकि हिमाचल की एक फार्मा कंपनी का बेहद सस्ता 340 रुपये का एम्फोटेरेसिन बी इंजेक्शन इन्हें लगाया गया। इन्हें ठंड के साथ बुखार आया और उल्टी दस्त की शिकायत भी पाई गई। तुरंत इस इंजेक्शन का इस्तेमाल बंद किया गया। इसी के साथ केन्द्र सरकार की रिपोर्ट भी आई है जिसमें कहा गया है कि इलाज के लिये समय पर भर्ती किये गये जाने के बावजूद 46 प्रतिशत लोगों को बचाया नहीं जा सका। ब्लैक फंगस के केस जरूर कोरोना से कम हैं, पर मृत्यु दर तो कोरोना से कहीं ज्यादा खतरनाक स्थिति पर है।
लोगों को यह याद होगा कि जब नकली रेमडेसिविर के कारोबारी मध्यप्रदेश में पकड़े गये थे तो छत्तीसगढ़ में इन्होंने सप्लाई की, इसकी जानकारी जांच दलों के हाथ लगी थी। ब्लैक फंगस के इंजेक्शन नकली है या फिर केवल उसकी गुणवत्ता सवालों के घेरे में है, ये तो विशेषज्ञ डॉक्टर और फार्मासिस्ट ही बता सकते हैं। पर फिलहाल मध्यप्रदेश के मामलों को देखते हुए छत्तीसगढ़ को सावधान तो रहना ही होगा।
स्कूली शिक्षा में राज्य का परफार्मेंस
दो दिन पहले नीति आयोग ने जब बेहतर परफार्मेंस वाले राज्यों की श्रेणी में छत्तीसगढ़ को टॉप लिस्ट पर रखा था तब लोगों ने खुशी जाहिर की थी। पर अगले ही दिन केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट ने मायूस कर दिया। परफारमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) में छत्तीसगढ़ का स्तर काफी नीचे है। कई ऐसे राज्य जिन्हें छत्तीसगढ़ से भी ज्यादा पिछड़ा माना जाता है उनकी ग्रेडिंग भी अपने प्रदेश से कहीं ज्यादा बेहतर है। ग्रेड के हिसाब से देखें तो मेघालय और लद्दाख की स्थिति ही छत्तीसगढ़ के मुकाबले परफार्मेंस में कमजोर है।
स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता पर तो प्रदेश में समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। कई स्वतंत्र सर्वेक्षणों से भी यह बात सामने आ चुकी है कि अभी सुधार के लिये बहुत काम करना होगा। यह रिपोर्ट कुल 70 मापदंडों के आधार पर बनाई गई है। इनमें एकीकृत जिला सूचना प्रणाली, राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण मध्यान्ह भोजन, सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन आदि हैं। सूची में पंजाब, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्य ऊपर हैं।
जारी किया गया यह आंकड़ा सन् 2019-20 के तीसरे एडिशन का है। तब कोरोना का भी असर शुरू नहीं हुआ था। कोरोना के बाद तो स्कूली शिक्षा पर बहुत ज्यादा और अभूतपूर्व बदलाव आया है। ऑनलाइन पढ़ाई जैसे आकलन इस सर्वेक्षण में है नहीं। राज्य में अभी हजारों पदों पर शिक्षकों की भर्ती रुकी है। समय पर किताबें, छात्रवृत्ति और बालिकाओं को साइकिलें नहीं बंट पाने की शिकायत हर साल आती है। छात्रों की संख्या घटने की वजह से सैकड़ों स्कूलों को बंद करना पड़ा है। दूसरी ओर पिछले साल से स्वामी आत्मानंद विशिष्ट अंग्रेजी स्कूल खोलकर एक बेहतर काम भी शुरू किया गया है, जिसके परिणाम अभी आने वाले हैं।
फिर भी, इस केन्द्र की इस ग्रेडिंग को एक मौका माना जा सकता है गुणवत्ता में सुधार लाने का। हमारे सामने टॉप सूची में शामिल पंजाब का भी उदाहरण है। पंजाब ने 3 सालों में लगभग तीन हजार स्कूलों में स्मार्ट कक्षायें शुरू की हैं। इसके अलावा शिक्षा के स्तर, बुनियादी सुविधा, समान शिक्षा और शासन प्रक्रिया में व्यापक सुधार की बात आई है। सर्वेक्षण निरीक्षण के लिए हर स्तर पर कमेटी बनी है। सरकारी स्कूलों में पिछले 2 सालों में पांच लाख से ज्यादा नए बच्चों ने दाखिला लिया है। क्या हमारे यहां ऐसा नहीं हो सकता?
घर पहुंच मालिश, पर सम्हलकर
मालिश का काम चाहे परंपरागत रूप से हिंदुस्तान में बहुत पहले से चले आ रहा हो, लेकिन जैसे-जैसे इसकी आधुनिक सेवा शुरू हुई वह तरह-तरह की सनसनी से भरी रही। मसाज पार्लर के नाम पर कई जगहों पर जिस तरह के देह सुख देने का काम चलता है, उस पर अगर इलाके की पुलिस मेहरबान ना रहे तो कभी-कभी उन पर कोई कार्यवाही भी होते दिखती है। अब फेसबुक पर रायपुर, दुर्ग, भिलाई के लिए यह इश्तहार दिख रहा है जिसमें घर पर जाकर किसी अकेली महिला या किसी जोड़े की मालिश की सर्विस बताई जा रही है, लेकिन किसी अकेले पुरुष की मालिश से इनकार किया जा रहा है. अब इसका क्या मतलब हो सकता है लोग अपने आप निकालते रहें। फेसबुक के बहुत से इश्तहार धोखा देने वाले रहते हैं, देख समझकर ही फंसें।