राजपथ - जनपथ
सरकार मेहरबान, तो कालिख पहलवान
आखिरकार शनिवार की देर शाम पदोन्नति समिति की बैठक में 87 बैच के अफसर जेईसीएस राव को पदोन्नति देने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई। सोमवार को पदोन्नति आदेश जारी होगा। राव 30 तारीख को रिटायर भी हो जाएंगे। यानी वे दो दिन के लिए पीसीसीएफ रहेंगे। राव की पदोन्नति आसान नहीं थी। वे पिछली सरकार में काफी पॉवरफुल वन अफसरों में रहे हैं, और उन्हें पसंदीदा काम मिलता रहा है।
राव के खिलाफ 3 विभागीय जांच भी चल रही थी, लेकिन वे पिछली सरकार में ही अपनी सारी जांच खत्म करवाने में सफल रहे। रिटायरमेंट के पहले पदोन्नति के लिए वे काफी भागदौड़ कर रहे थे। विभागीय मंत्री, और हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स ने उदारता दिखाई। फिर क्या था राव की पदोन्नति की फाइल तेजी से दौडऩे लगी। विशेषकर फारेस्ट में कई अफसर राव जितने भाग्यशाली नहीं रहे। पीसी मिश्रा जैसे साफ छवि के अफसर तो बिना पीसीसीएफ बने रिटायर हो गए।
नियामक आयोग में दुर्ग जिले की बारी
आखिरकार दुर्ग-भिलाई में पले बढ़े हेमंत वर्मा बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन नियुक्त हो गए। वैसे तो चेयरमैनशिप के लिए 30 आवेदन आए थे। सारे आवेदनों की स्क्रूटनी के बाद अंतिम दो नाम का पैनल तैयार किया। जिसमें पूर्व आईएएस शैलेश पाठक, और हेमंत वर्मा थे।
वैसे तो कुछ जानकार पूर्व सीएस सुनील कुजूर को मजबूत दावेदार मान रहे थे। मगर उनका नाम पैनल में नहीं आ पाया। इस कॉलम में हमने सबसे पहले टेक्नोक्रेट के ही चेयरमैन बनने की संभावना जताई थी। हेमंत वर्मा की नियुक्ति के पीछे उनकी योग्यता-अनुभव से परे स्थानीय होना बाकियों पर वजनदार साबित हुआ।
कांग्रेस सरकार बनने के बाद सबसे पहले पावर कंपनी के चेयरमैनशिप के लिए हेमंत का नाम चला था। तब शैलेन्द्र शुक्ला उन पर भारी पड़ गए थे। और जब नियामक आयोग चेयरमैन की नियुक्ति की बारी आई, तो इस बार भी बड़े पैमाने पर ताकतवर लोगों की सिफारिशें आई थी, लेकिन सीएम ने महत्व नहीं दिया। पैनल में से ही नाम पर मुहर लगाई गई।
परिवहन में राज किसका?
परिवहन में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। पिछली सरकार में पॉवरफुल रहे एक छोटे कर्मचारी की हैसियत घटी नहीं है। वे अब भी पॉवरफुल हैं, और उनके तेवर से खफा कुछ अफसरों ने इसकी शिकायत ऊपर तक पहुंचाई है। इस कर्मचारी का मामला सुलझा नहीं था कि रायपुर में नए नवेले एजेंट ने आरटीओ के नाक में दम कर रखा है। एजेंट गाडिय़ों की फिटनेस के लिए आरटीओ दफ्तर में रखे कागजात को अपने घर लेकर चला गया। एजेंट ने यह कह दिया कि वे जांच के बाद कागजात आरटीओ को देंगे, और फिर फिटनेस सर्टिफिकेट जारी होगा। अब यह बात किसी छिपी नहीं है कि सर्टिफिकेट जारी करने के नाम पर बड़ा ‘खेला’ होता है। सोशल मीडिया में एजेंट की हरकतों पर काफी कुछ लिखा जा रहा है। स्वाभाविक है कि ऐसे कारनामों से विभाग की बदनामी होती है।
गांवों में निजी अस्पताल
उद्योग विभाग को यह कार्ययोजना बनाने के लिये कहा गया है कि गांवों में निजी अस्पतालों के निर्माण के इच्छुक लोगों को किस तरह की सहायता दी जा सकती है। स्वास्थ्य का क्षेत्र सेवा ही नहीं एक उद्योग भी है। पर अब तक इसे प्रोत्साहन देना सरकारी नीतियों में शामिल नहीं रहा है। कभी-कभी सरकारी जमीन जरूर कम दर पर आबंटित कर दी जाती है। हाल के कोरोना संकट के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों से जिस तरह कोरोना के केस बढ़े, गांव क्या तहसील स्तर पर भी स्वास्थ्य सुविधाओं की बड़ी कमी देखी गई। सारा दबाव आखिरकार रायपुर और बिलासपुर जैसे बड़े शहरों पर पड़ा। इसका फायदा निजी अस्पताल प्रबंधकों ने भी खूब उठाया। आम दिनों में भी गांवों में सरकारी डॉक्टरों को टिकाये रखना हमेशा कठिन रहा है। लोगों की निर्भरता नीम-हकीमों और झोला छाप डॉक्टरों पर बनी हुई है। इन परिस्थितियों में यदि किसी तरीके से गांवों में निजी अस्पताल खुल जाते हैं तो कम से कम प्रशिक्षित और डिग्रीधारी डॉक्टरों और नर्सों की सेवायें तो मिल सकेंगीं। पर सवाल यह है कि निजी अस्पतालों के बिल की भरपाई करने की क्षमता गांव के मरीजों में होगी? इस बारे में एक डॉक्टर से राय ली गई तो उनका कहना था, आप क्या समझते हैं, सिर्फ जिला अस्पताल और बड़े सरकारी दूसरे अस्पतालों में गांव के मरीज पहुंचते हैं? शहरों के अधिकांश निजी अस्पताल ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों से भरे हुए मिलेंगे। वे किस तरह से निजी अस्पतालों के बिल को बर्दाश्त कर लेते हैं यह आप अलग से पता करें, पर जब वे शहर आकर खर्च करने के लिये तैयार हैं, तो गांव क्यों नहीं करेंगे?
वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ी पर खतरा बरकरार
बीते एक सप्ताह से कोरोना संक्रमण ने जो रफ्तार पकड़ी है उसका यह नतीजा निकला है कि प्रदेश के 25 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लग चुकी। शनिवार को रिकॉर्ड टूटा जब वैक्सीनेशन का आंकड़ा 3.33 लाख तक पहुंच गया। अब तक 88 लाख लोगों को कोविड टीका लग चुका है। ये आंकड़े बताते हैं कि धीरे-धीरे लोगों में टीके पर भरोसा बढ़ रहा है। अब विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़ा काफी नहीं है। वे बता रहे हैं कि जब तक कम से कम 60 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज नहीं लग जाती, खतरा बना रहेगा। यानि अभी लड़ाई लम्बी लडऩी होगी।
लॉकडाउन के मया...
कोई बात अलग तरह से की जाये तो लोगों का ध्यान उस ओर ज्यादा जाता है। संक्रमण से बचाव के लिये लोग प्रोटोकॉल का पालन करें और लॉकडाउन के निर्देश मानें, इसके लिये दीवार पर इस तरह लेखन किया गया है।