राजपथ - जनपथ
राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट और छत्तीसगढ़
सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सवाल किया कि अंग्रेजों ने आजादी की मांग उठाने वालों को खामोश करने के लिये जो कानून बनाया था, उसकी आज क्या जरूरत है? बहुत से लोग मानते हैं कि यह टिप्पणी मौजूदा केन्द्र सरकार को कठघरे में खड़ा करती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं ने आरोप लगाया है कि केन्द्र की मोदी सरकार इस कानून का दुरुपयोग कर रही है और लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनने की कोशिश की जा रही है। पर यह पूरा सच नहीं है। सन् 2010 से 2020 के बीच दर्ज किये गये 816 मामलों में सर्वाधिक 65 प्रतिशत मुकदमे भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए के समय के तो हैं, पर बाकी 35 प्रतिशत यूपीए सरकार के ही हुए। कुछ समय पहले ही पत्रकार विनोद दुआ को सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के आरोप से मुक्त करते हुए पुलिस को फटकार लगाई थी। दुआ ने अपने एक कार्यक्रम में मोदी सरकार की आलोचना की थी जिसे पुलिस ने देश को अस्थिर करने की साजिश के रूप में लिया।
यह संयोग है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी जिस मामले की सुनवाई के दौरान आई है वह छत्तीसगढ़ के कांकेर के पत्रकार कमल शुक्ला ने दायर की है। उनके अलावा इस केस में याचिकाकर्ता मणिपुर के पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेमचा हैं। दोनों ने राजद्रोह कानून को रद्द करने की मांग की है।
यह भी एक संयोग है कि कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे मौके पर आई है जब छत्तीसगढ़ में एक आईपीएस अधिकारी गुरुजिन्दर पाल सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा राजधानी की कोतवाली पुलिस ने दर्ज किया है। उन्होंने इस कानून के तहत खुद पर जुर्म दर्ज जाने के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से रिट लगाई है। कोर्ट में सुनवाई अभी होने वाली है। तब तय होगा कि उनके खिलाफ यह मुकदमा गंभीर सबूतों के आधार पर दर्ज किया गया या सरकार की सहूलियत के लिये। पर, कानून के बहुत से जानकारों का कहना है कि अब राजद्रोह की धारा 124 ए की जरूरत नहीं है, क्योंकि वैसे भी अन लॉ फुल प्रेवेन्शन एक्ट (यूएपीए) देश में लागू हो चुका है। जो भी हो, छत्तीसगढ़ के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ध्यान खींचती है, जब फैसला आयेगा तब तो महत्व और बढ़ जायेगा।
मशहूर होने के कई रास्ते हैं..
राज्यपाल अनुसूईया उइके ने कल ऐसे युवा को सम्मानित किया जिनकी उपलब्धियां बाकी लोगों से हटकर है। बिलासपुर जिले के कोटा के रहने वाले अर्पित लाल का नाम दो बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। उनके करतब अनोखे हैं। उन्होंने सिक्कों का मीनार बनाने, पैरों के सहारे अंगूर खाने, कच्चा अंडा खा जाने में बाजी मारी है और पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त किये हैं।
राजभवन में राज्यपाल ने उन्हें सम्मानित किया। उनके वकील पिता हैरिस लाल व कन्या शाला की व्याख्याता अपर्णा लाल भी इस दौरान मौजूद थी। उनका कहना है कि जिस दिशा में मन करता है अर्पित जूझते हैं। उनका म्यूजिक एलबम एक आ चुका, एक आने वाला है। गिटार व की बोर्ड अच्छी तरह बजा लेते हैं। उन्होंने जेरूशलम यूनिवर्सिटी से 18 साल की उम्र में डॉक्टर ऑफ डिग्निटी की डिग्री हासिल कर ली। कनाडा के इंटरनेशनल टेलीविजन शो में वे भाग ले चुके हैं। उनकी उपलब्धियों पर वाशिंगटन पोस्ट में भी एक खबर लग चुकी है। अर्पित इन दिनों एक किताब भी लिख रहे हैं। उनका छोटा भाई आयुष भी इसमें मदद करता है।
राज्यपाल के हाथों सम्मानित नहीं किये जाते तो अर्पित की इन उपलब्धियों पर कोई गौर ही नहीं करता।
विधायक, जिला अध्यक्ष भी इनको नहीं जानते...
निगम, मंडल, आयोगों की नई सूची में जिन्हें अपना नाम नहीं मिला वे एक दूसरे काम में लग गये। किस नाम की सिफारिश किसने की होगी, और उनका पत्ता किसने काटा होगा? पर सूरजपुर जिले में अलग ही घटना हो गई है। जिले से कृषक कल्याण परिषद् में सदस्य के रूप में संजय गुप्ता को शामिल किया गया है। सूची में नाम देखकर लोग एक दूसरे से पूछने लगे कि ये कौन हैं? इस नाम का तो कोई व्यक्ति कांग्रेस में सक्रिय नहीं है। वे फेसबुक और वाट्सअप के जरिये भी जानकारी जुटा रहे हैं फिर भी पता नहीं लग सका। भटगांव विधायक पारसनाथ राजवाड़े और जिला कांग्रेस अध्यक्ष भगवती राजवाड़े भी कह रहे हैं कि उन्हें पता नहीं ये कौन हैं।
वैसे निगम, मंडल की इस दूसरी सूची ने प्रदेश के सैकड़ों उम्मीद लगाये बैठे कार्यकर्ताओं को झटका दिया है। महीनों तक दर्जनों दरबारों में माथा टेकना काम नहीं आया। बीते विधानसभा चुनाव में बहाये गये पसीने की कोई कीमत मिलेगी या नहीं, सोचकर मायूस हुए जा रहे हैं। बस, इन्हें एक ही उम्मीद है कि कोई तीसरी सूची भी जारी हो जाये, जिसकी संभावना वरिष्ठ नेता बता रहे हैं। पर जब इस सूची के इंतजार में ही कई महीने गुजारने पड़े तो पता नहीं अगली सूची कब जारी होगी। हवा तो अभी से बना दी गई है।