राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दौलत के बादशाह जी पी सिंह, ईमानदारी की पॉलिसी नहीं ली
24-Jul-2021 7:33 PM
छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दौलत के बादशाह जी पी सिंह, ईमानदारी की पॉलिसी नहीं ली

दौलत के बादशाह जी पी सिंह, ईमानदारी की पॉलिसी नहीं ली

छत्तीसगढ़ के एडीजी जीपी सिंह की लगाई गई दोनों याचिकाएं कल हाई कोर्ट में खारिज हो गईं. अदालत के फैसले को देखें तो उसमें राज्य शासन के एसीबी की तरफ से जीपी सिंह की संपत्ति का जो ब्यौरा पेश किया गया है, वह आंखें चकाचौंध कर देता है। यह लिस्ट अभी अधूरी है और जांच अभी जारी है।

सरकारी एजेंसी का कहना है कि अब तक 6 करोड़ 40 लाख से अधिक की संपत्ति मिल चुकी है जबकि पूरी नौकरी में जीपी सिंह को तनख्वाह पौने दो करोड़ ही मिली है। अब अनुपातहीन संपत्ति का पहली नजर में यह एक बड़ा पुख्ता मामला दिखता है, जिसमें जीपी सिंह की संपत्ति में 68 लाख से अधिक निवेश म्यूचुअल फंड में किया गया, मकान और जमीन में 55 लाख रुपए से अधिक लगाए गए, जीवन बीमा में 39 लाख रुपए से अधिक लगाए गए, उनके पिता के नाम पर 48 लाख से अधिक, मां के नाम पर 1करोड़ 10 लाख से अधिक,  बेटे के नाम पर 34 लाख से अधिक, पत्नी के नाम पर एक करोड़ से अधिक, का हिसाब मिल चुका है. इन सबका टोटल 6 करोड़ 41 लाख से अधिक है। लेकिन दिलचस्प बात यह है जीपी सिंह और परिवार के लोगों के नाम पर इतना बड़ा-बड़ा बीमा लिया गया है जिसकी हद नहीं, और बड़ी संख्या में बीमा पॉलिसी ली गई हैं, हर बरस एक एक व्यक्ति के लिए कई-कई बीमा पॉलिसी हैं जिनमें दसियों लाख रुपए का भुगतान हो रहा है। लेकिन एक सरकारी अधिकारी को अपने तौर-तरीके ठीक रखने से मुफ्त में जो बीमा हासिल होता है, जी पी सिंह ने उसकी कोई फिक्र नहीं की।

जब भी सरकार में जी पी सिंह की चर्चा होती है तो लोगों को पिछले मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के एक मंत्रिमंडल की याद आती है जिसमें बृजमोहन अग्रवाल ने रायपुर के आईजी जी पी सिंह की महीने की कमाई का आंकड़ा तमाम लोगों के सामने ही गिनाया था, यह सबको मालूम था कि जी पी सिंह की कमाई कैसी है, लेकिन उसके बाद भी तरह-तरह की बहादुरी के मेडल और राष्ट्रपति के मेडल जी पी सिंह को मिलते रहे, और जाहिर है कि ऐसे में ईमानदार कर्मचारियों का हौसला तो पस्त होता ही है।

अब मंत्री बन गये हैं, अब तो मजाक उड़ाना छोड़ दें..
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ विधायकों में से एक आबकारी मंत्री कवासी लखमा अपने विनोदी स्वभाव के लिये जाने जाते हैं। लोग भी उनको हल्के फुल्के अंदाज में लेकर ठहाके लगाते और भूल जाते हैं। पर इस बार बात बिगड़ गई है। भाजपा की प्रदेश प्रभारी महासचिव का नाम उन्होंने हंसी-हंसी में फूलन देवी बताया फिर जाकर असली नाम लिया। बस्तर के भाजपा नेता पूर्व विधायक डॉ. सुभाऊराम कश्यप ने इसे गंभीरता से लिया है। उनका कहना है कि प्रेस के सामने भाजपा नेत्री पर लखमा की ऐसी टिप्पणी करना अपमानजनक है। अब वे केबिनेट मंत्री हैं, इस तरह मसखरी करना उन्हें शोभा नहीं देता। कश्यप कहते हैं कि कांग्रेस में भी महिला नेत्रियां हैं, मंत्री जी यह मत भूलें। कोई उन्हें कुछ कह दे तो?  कश्यप ने तो सलाह दे डाली है कि जिस तरह मुख्यमंत्री का संदेश पढऩे के लिये लखमा जी के लिये वाचक की व्यवस्था की जाती है, उसी तरह कब कहां क्या बोलना है, यह बताने के लिये भी एक स्थायी व्यवस्था उनके लिये कर दी जाये।

मजदूरी करते करते बना प्रोफेसर
लोरमी के नवागांव जैत,  गांव के मुकेश रजक को घर के खर्चों में मदद करने के लिये स्कूल के दिनों में ही मजदूरी करनी पड़ गई। अच्छे नंबरों से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी उसे पढ़ाई बंद करने की नौबत आ गई, क्योंकि वह गांव से बाहर जाकर पढऩे का खर्च नहीं उठा सकता था। इसी दौरान किस्मत से पास के ग्राम कोतरी में महाविद्यालय खुल गया। पहले ही बैच में उसे प्रवेश मिल गया। इसी दौरान वहां के प्राध्यापकों ने उसका हौसला देख प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये तैयारी करने की सलाह दी। आगे की पढ़ाई के लिये मुकेश बिलासपुर आ गये, पर यहां भी आर्थिक संकट था। यहां उनके चाचा रहते थे। वे उनकी छोटी सी होटल में हाथ बंटाने लगे। चाचा ने उसके लक्ष्य को समझा, काम कम लेते थे, मजदूरी थोड़ी अधिक देते थे। पीजी की डिग्री लेते तक उसने थोड़े पैसे जमा कर लिये। सीधे यूपीएससी की तैयारी के लिये दिल्ली चले गये। यूपीएससी में लिखित परीक्षा उसने पास कर ली, पर साक्षात्कार में रुक गये। मुकेश ने हौसला टूटने नहीं दिया। सीजी पीएससी में सहायक प्राध्यापक के लिये परीक्षा दी और विभिन्न चरणों को पार करने के बाद उसका चयन हो गया। एक छोटे से गांव से, स्कूल के दिनों में मजदूरी करने, कॉलेज के दिनों में जूठे-कप प्लेट धोकर खर्च चलाने वाले इस नौजवान को गांव, शिक्षक और दोस्तों की ओर से भरपूर शाबाशी मिल रही है।

रेत ढोने वालों के निशाने पर एसडीएम
छत्तीसगढ़ में अनेक नदियों की छाती अवैध रेत उत्खनन से छलनी हो रही है। जाहिर है यह अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों के संरक्षण के बिना नहीं हो रहा है। पिछले वर्षों से पर्यावरण सम्बन्धी नियम कुछ कड़े किये गये हैं। विधिवत घाटों की नीलामी करने, तय स्थानों से ही खनन करने और मशीनों का इस्तेमाल नहीं करने का निर्देश है, जिसका उल्लंघन हो रहा है। यही हाल कसडोल इलाके में महानदी का है। यहां रेत खनन करने वालों ने एसडीएम की कार्रवाई पर सवाल खड़ा कर दिया है। बड़ी संख्या में ट्रेक्टर, ट्रक के साथ उन्होंने एसडीएम का दफ्तर घेर लिया। उनके आने की खबर मिली तो दफ्तर से एसडीएम गायब हो गये। ट्रक, ट्रेक्टर मालिकों का कहना है कि एक-एक गाड़ी को पकडक़र 15-20 हजार की वसूली कर रहे हैं। इतना तो पहले कभी नहीं हुआ। जनपद सदस्यों का कहना है कि पंचायतों के सरकारी निर्माण के लिये निकाली गई रेत की गाड़ी भी रोककर वसूली की जा रही है। सभी रेत निकासी अवैध नहीं है। पर, रेत परिवहन करने वालों को डर बना रहता है कि उनकी गाड़ी का चालान कर महीने दो महीने के लिये थाने में न खड़ी कर दी जाये।


एसडीएम मिथिलेश डोंडे कहते हैं कि उन्होंने कई रेत परिवहन करने वालों से जीवनदीप समिति के लिये रसीद देकर राशि ली है पर बिना रसीद एक रुपया नहीं लिया। एसडीएम के खिलाफ दूसरी बार कलेक्टर बलौदाबाजार को ज्ञापन दिया गया है। अब देखना है क्या होता है, वसूली रुकेगी या रेत का परिवहन। ([email protected])

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