राजपथ - जनपथ
सबको पास तो कर दिया, अब आगे?
माध्यमिक शिक्षा मंडल की 12वीं बोर्ड की परीक्षा इस बार घर बैठे ली गई। नतीजतन, 2.5 लाख विद्यार्थियों में से 97.43 प्रतिशत पास हो गये। इनमें से भी 95.44 प्रतिशत विद्यार्थियों ने प्रथम श्रेणी में सफलता हासिल की है। नतीजा अभिभावकों और छात्रों को सुकून देने वाला रहा। उन शिक्षकों को तो और भी अच्छा लगा होगा, जो अपने विद्यार्थियों के खराब परफार्मेंस पर अपने ऊपर ऊंगली उठने की चिंता कर रहे थे। अब इस बेहतरीन नतीजे के बाद शुरू है कॉलेजों में एडमिशन की आपाधापी। कॉलेजों में सब मिलाकर सीटों की संख्या पास होने वाले विद्यार्थियों से एक तिहाई भी नहीं है। नीट और जेईई के जरिये होने वाली प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं को छोड़ भी दें तो विज्ञान, वाणिज्य, कला जैसे सामान्य विषयों में भी प्रवेश के लिये इस बार मारामारी मचने वाली है। इन विषयों के लिये केन्द्रीय विश्वविद्यालय को छोडक़र बाकी जगह प्रवेश परीक्षा नहीं होती। अब प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। उच्च शिक्षा विभाग ने आवेदन से संबंधित विषय में मिले गुणात्मक अंकों के आधार पर एडमिशन देने का निर्देश कॉलेजों को दिया है। इसके बावजूद नामचीन कॉलेजों में प्रवेश के लिये बड़ी संख्या में आवेदन आने की संभावना है। विद्यार्थी 12वीं बोर्ड में कहने के लिये तो प्रथम श्रेणी में पास हो गये लेकिन जरूरी नहीं कि उन्हें मनपसंद कॉलेजों में प्रवेश मिल जाये। कट ऑफ लिस्ट ऐसे कॉलेजों में बहुत अधिक रहने के आसार हैं। ऐसी स्थिति में दो साल से तालाबंदी झेल रहे निजी कॉलेजों के दिन फिरने वाले हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में जहां पिछले साल करीब 70 प्रतिशत सीटें खाली रह गई थीं, रौनक बढ़ सकती है।
एक डेढ़ फीट का कुआं..
नक्सल प्रभावित बस्तर में तबादले को वे अफसर काला पानी नहीं मानते जिनको यहां काम करने का तौर तरीका समझ में आ गया है। कई ऐसे अफसर हैं जिनके घर-परिवार तो रायपुर, बिलासपुर, भिलाई जैसे ज्यादा सुविधाजनक शहरों में हैं पर खुद कभी बस्तर छोडक़र नहीं आना चाहते। इसकी वजह क्या हो सकती है? दरअसल नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण यहां विकास कार्यों के लिये बजट अतिरिक्त दिया जाता है। पर राशि खर्च किस तरह की जा रही है, प्राय: इस पर निगरानी नहीं रखी जाती। बहुत से काम कागजों में हो जाते हैं। कोंडागांव जिले में आम आदमी पार्टी ने धरातल पर सरकारी योजनाओं की स्थिति जांचने का इस समय अभियान चला रखा है। पार्टी ने पाया कि मनरेगा के तहत कई गांवों में दर्जनों ऐसे कुएं हैं जिनकी गहराई एक या दो फीट ही है। पानी भले न निकले, बिल और तस्वीरें निकालने के लिये इतनी गहराई काफी है। आप पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एक प्रेस वार्ता ली और आरोप के साथ कुछ सबूत भी सामने रखे। उनका यह भी कहना है कि अफसरों को इस पर कार्रवाई का आग्रह करते हुए ज्ञापन दिया गया है पर वे अपनी जगह से हिलने के लिये तैयार नहीं हैं। कई जगहों पर तो इस अधूरे काम का भी मजदूरों को उनकी मेहनत का भुगतान नहीं किया गया है।
किसके दामाद ने क्या किया था?
आम तौर पर केन्द्रीय मंत्री राज्य सरकारों के फैसले पर सीधे कुछ बोलते नहीं, चाहे वह विपक्ष की सरकार क्यों न हो। लेकिन जिस तरह से चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज को खरीदने के छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले पर पीयूष गोयल और माधवराव सिंधिया की प्रतिक्रिया आई है, वह प्रत्याशित नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि प्रदेश के भाजपा नेताओं का विरोध में जारी वक्तव्यों का असर नहीं पडऩे वाला इसलिये राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को सामने लाया गया। इन प्रतिक्रियाओं का बघेल ने जवाब भी सोशल मीडिया के जरिये दिया और कहा कि हम तो कम से कम खरीदने का काम कर रहे हैं, बेचने का नहीं, जो केन्द्र सरकार कर रही है। उन्होंने कहा, मेडिकल कॉलेज के साथ-साथ नगरनार संयंत्र को भी खरीदने जा रहे हैं।
भाजपा के आरोप के मुख्य तत्व ‘कर्ज में डूबे दामाद के मेडिकल कॉलेज को उबारने के लिये सौदा’ का भी लोगों ने पता किया। मालूम हुआ कि कॉलेज के एक डॉयरेक्टर डॉ. एमपी चंद्राकर के भाई विजय चंद्राकर के बेटे से मुख्यमंत्री की पुत्री का विवाह हुआ है। पर इसे दामाद का कॉलेज इसलिये नहीं कहा जा सकता क्योंकि एमपी चंद्राकर और विजय चंद्राकर के बीच कोई व्यावसायिक संबंध नहीं हैं। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का बयान आने पर सोशल मीडिया पर लोगों ने पूछा है- वे किसके दामाद थे, जिन्होंने दाऊ कल्याण सिंह अस्पताल को 50 करोड़ रुपये में गिरवी रख दिया था?
इस कॉलेज के विवाद में जिन डॉ. एम पी चंद्राकर से भूपेश बघेल के दामाद का संबंध है, वे कॉलेज के 14 डायरेक्टरों में से एक हैं, और कॉलेज में उनके शेयर कुल 4 फ़ीसदी हैं। कॉलेज के रिकॉर्ड के मुताबिक यहां 59 शेयर होल्डर हैं। इस तरह डॉ. एम पी चंद्राकर एक बहुत ही छोटे शेयर होल्डर हैं, और कॉलेज के संस्थापकों में से एक हैं। पहले वे कॉलेज की गवर्निंग बॉडी के एमडी थे, अब नहीं है, अब वे सिर्फ 14 डायरेक्टरों में से एक हैं। ([email protected])