राजपथ - जनपथ
रवि भगत का महत्व
जशपुर के रहने वाले, और वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े भाजयुमो के राष्ट्रीय मंत्री रवि भगत की काफी पूछ परख हो रही है। वे पिछले दिनों दिल्ली गए, तो भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने उन्हें काफी तवज्जो दी, और साथ लेकर सभी पदाधिकारियों से मिलवाया। भगत को आदिवासी इलाकों में युवाओं को पार्टी से जोडऩे की अहम जिम्मेदारी दी गई है। वे दिल्ली से लौटे तो एयरपोर्ट के बाहर हाथ जोडक़र धरती पर लेटकर प्रणाम किया, और कहा-वो अपनी मां के पास आ गए हैं। भाजयुमो कार्यकर्ताओं को रवि भगत की कार्यशैली कुछ हद तक नंदकुमार साय जैसी लगने लगी है। रवि को जूनियर नंदकुमार साय कहा जाने लगा है।
भरोसा कायम है
चर्चित युवा नेता सूर्यकांत तिवारी उर्फ सूर्या एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। सूर्यकांत को हाई बीपी, घबराहट की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें देखने के लिए सीएम भूपेश बघेल, और आधा दर्जन से अधिक विधायक पहुंचे थे।
सूर्यकांत, अभी सीएम विरोधियों के निशाने पर हैं, और चर्चा है कि जिस तरह टीएस सिंहदेव के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद डेढ़ दर्जन से अधिक विधायक खुलकर बृहस्पत सिंह के साथ दिखे थे, उसके पीछे भी सूर्यकांत की भूमिका रही है।
पार्टी के कई नेता अनौपचारिक चर्चा में यहां तक कह रहे हैं कि सूर्यकांत की वजह से ही बृहस्पत सिंह, और सिंहदेव के बीच विवाद बढ़ा है, और इसे निपटाने के लिए हाईकमान को दखल देना पड़ा।
वैसे तो सीएम अपने पैर के घाव के इलाज के लिए अस्पताल गए थे। इस दौरान वे वहां इलाज करा रहे पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के बड़े भाई आलोक चंद्राकर, और सूर्यकांत का भी कुशलक्षेम पूछने गए।
मगर जिस तरह सीएम की सूर्यकांत से चर्चा के दौरान बृहस्पत सिंह समेत आधा दर्जन विधायक मौजूद थे, उससे यह संदेश गया कि सीएम का भरोसा सूर्यकांत पर कम नहीं हुआ है।
दार्शनिक नसीहतों का वक्त
अभी छत्तीसगढ़ में लोगों को बड़ी दार्शनिक बातें करने के लिए बहुत सी मिसालें हासिल हैं। पिछली भाजपा सरकार के समय अतिताकतवर रहे कई अफसरों को लेकर लोग इन दिनों चर्चा करते हैं कि सारी बातों का हिसाब इसी जिंदगी में और इसी धरती पर चुकता करके जाना पड़ता है। कल तक जिनकी पेशाब से दिया जलता था, आज वे छत्तीसगढ़ में वापस पांव रखने की हालत में नहीं रह गए। उन दिनों ऐसे ताकतवर अफसरों की मेहरबानी से कई लोगों ने अपने कई काम करवा लिए थे, तो आज वह मुंह छुपाते घूम रहे हैं।
कुछ लोग भाजपा सरकार से पहले जोगी सरकार के दिनों को याद करते हैं कि उस सरकार के दौरान जिन लोगों ने भी जो बुरे काम किए थे, उन्होंने इन 20 वर्षों में ही क्या-क्या नहीं चुकाया है, कौन-कौन सी तकलीफ नहीं पाई है, और किस तरह उनका नाम भी अब मिट गया है। जग्गी हत्याकांड से जुड़े, पुलिस, और गैरपुलिस लोगों को देख लें कि आज वे क्या बच गए हैं. लोगों को अलग-अलग सरकारों के वक्त ज्यादती करने वाले लोगों का इसी जिंदगी में हिसाब चुकता करना समझ तो आ रहा है, लेकिन उस वक्त समझ आता है जब वे ऐसी ताकत का इस्तेमाल कर चुके रहते हैं, और अब केवल भुगतान का वक्त सामने रहता है।
छत्तीसगढ़ के जो लोग ऐसे ताकतवर नामों से अच्छी तरह वाकिफ हैं, वे नेताओं और अफसरों में से एक-एक को याद करके देख लें कि वह आज कहां पहुंचे हैं, किस हालत में हैं, और अपने कुकर्मों का कैसा-कैसा भुगतान उन्हें करना पड़ा है। लोग यह सब याद कर लेंगे तो ईश्वर, धर्म, और पाप-पुण्य जैसी सारी बातें किनारे रह जाएंगी, और कुदरत की यह नसीहत सामने आएगी कि आम लगाने वाले को आम हासिल होते हैं, और बबूल लगाने वाले को बबूल, फिर चाहे इसमें थोड़ा वक्त क्यों न लगता हो.
बेटी हैं तो जहान, पेड़ हैं तो जान
बस्तर के साथ जुड़ी हिंसा और संघर्ष की पहचान को राजनीतिक और सरकारी प्रयासों से कितना बदला जा सकेगा पर पता नहीं लेकिन व्यक्तिगत तौर पर तो बहुत काम हो रहे हैं। इनमें से ही एक है वीरेन्द्र सिंह का काम। वे पर्यावरण के प्रति अपने समर्पण के कारण नेशनल मीडिया और वेब पोर्टल में छाये हुए हैं। कांकेर में बंजर जमीन पर वे बीते 23 सालों में करीब 30 हजार पौधे लगा चुके और 35 से अधिक तालाबों की सफाई कर चुके हैं। वे मूल रूप से बालोद के हैं पर भिलाई, दुर्ग, भानुप्रतापपुर जहां-जहां काम पर रहे, पौधे लगाने का अभियान शुरू कर दिया। एक निजी कम्पनी में कार्यरत वीरेन्द्र सिंह अपने वेतन का एक हिस्सा हर माह पर्यावरण के संरक्षण पर खर्च कर देते हैं। इस बार बारिश के मौसम में उन्होंने चार हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है जिनमें से तीन हजार से ज्यादा लगा चुके हैं। वे हर रोज पौधे लेकर निकलते हैं और जहां सही जगह मिलती है रोप देते हैं। पौधों की निगरानी के लिये वे खुद सतर्क रहते हैं और अब बहुत से युवा उनके साथ जुड़ चुके हैं। पर्यावरण का संदेश देने के लिये वे सन् 2008 में युवाओं की टीम लेकर साइकिल से वाघा बॉर्डर तक जा चुके हैं। पांच माह की इस यात्रा को उन्होंने रास्ते के नदी-नालों को साफ करते हुए पूरा किया। पर्यावरण के साथ-साथ बेटी बचाओ का संदेश भी वे साथ-साथ देते हैं। कई पेड़ों को बालिकाओं के परिधान में भी उन्होंने सजाया है।
वीरेन्द्र सिंह की उपलब्धि इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल की गई है। अनेक संस्थाओं ने पुरस्कृत किया है। पर इन सबको वे ज्यादा महत्व नहीं देते हैं और अपने काम में ही लगे रहते हैं।
हर साल सरकारी विभाग लाखों पौधे लगाने का अभियान जून-जुलाई में चलाते हैं। करोड़ों रुपये इस पर खर्च किये जाते हैं। अगले साल तक उन पौधों का कहीं पता नहीं चलता। ऐसे में अपने वेतन के पैसे से खर्च कर कोई शख्स एक ही धुन में बीते तीन दशकों से लगा हो तो देश में उनकी चर्चा तो होगी ही।
बृहस्पति सिंह की नई मुश्किल
रामानुजगंज के विधायक बृहस्पति सिंह ने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव पर हत्या की साजिश रचने के अपने आरोप के लिये खेद व्यक्त कर दिया। विधानसभा की कार्रवाई ही इस मुद्दे पर बाधित हो गई थी। पर अब खेद जताना भी भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। पूर्व मंत्री और इस समय राज्यसभा के सदस्य रामविचार नेताम को इस ‘सॉरी’ ने कुरेद दिया है। उन्हें बीते जनवरी में अपने ऊपर लगाया गया ऐसा ही आरोप फिर से याद आ गया है। नेताम ने कहा कि जब उन्होंने सिंहदेव से खेद जता दिया तो उनसे क्यों नहीं। हमारे कार्यकर्ता भी तो नाराज हुए थे और वे अब तक माफी मांगने की मांग कायम है। इतना ही नहीं, नेताम ने खेद नहीं जताने पर मानहानि का मुकदमा करने की चेतावनी दे दी है। राजधानी में प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की बीच तो यह मुद्दा ठंडा पड़ चुका है पर सरगुजा में कांग्रेसियों के बीच अब भी सुलग रहा है। नेताम ने स्व-प्रेरणा से बृहस्पति सिंह को चेतावनी दी है या सरगुजा में कांग्रेस के बृहस्पति विरोधियों ने उन्हें यह सलाह दी, कुछ कह नहीं सकते। पर जो भी हो, नेताम खामोश नहीं हुए तो विधायक बृहस्पति सिंह को जल्द सुलह का रास्ता निकालना पड़ेगा। शायद उनका एक और खेद-नामा जल्दी आये।