राजपथ - जनपथ
टाइगर तो क्या चीतल भी नहीं बचेंगे..
बारिश के दिनों में वनों में पर्यटन पर रोक लगा दी जाती है। इसकी वजह यह नहीं होती कि जंगल के भीतर रास्ते कीचड़-दलदल से बंद हो जाते हैं, बल्कि इसलिये क्योंकि यह वन्यजीवों का प्रजजन काल माना जाता है, खलल न हो। मुंगेली जिले के अचानकमार अभयारण्य को टाइगर रिजर्व का दर्जा तो दे दिया गया है पर वैकल्पिक मार्ग, आरएमकेके के बन जाने के बावजूद इस जंगल के बीच से गुजरने वाले पुराने मार्ग से आवाजाही पर राजनैतिक कारणों से अब तक रोक नहीं लगाई गई है। शिवतराई से लमनी तक की दूरी तय करने के लिये डेढ़ घंटे का पास मिलता है। गाड़ी बिगडऩे, रास्ता खराब होने जैसा बहाना बनाकर देर भी की जा सकती है।
इन दिनों हो रही आवाजाही से वन्यजीवों को किस तरह दहशत का सामना करना पड़ रहा है, यह फेसबुक पर वन्य लाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य प्राण चड्ढा के वाल पर आज अपलोड किये गये एक वीडियो को देखकर पता चलता है। 40-50 चीतलों का झुंड सडक़ पार करने वाला था कि एक कार आ गई। कार से उतरे लोगों ने शोर करते हुए भीतर तक उनको दौड़ाया। आये दिन होने वाले शिकार का एहसास रहा होगा, जान से हाथ धोने के डर से चीतल भागने लगे। हिरण, सडक़ तो खैर पार ही नहीं कर पाये। रिकॉर्डिंग करने वाले शख्स ने इन कार सवारों से पूछा भी कि इनको क्यों दौड़ा रहे हो? उनका लापरवाही भरा जवाब था कि दौड़ा नहीं रहे, बस नजदीक से देखना चाहते हैं। यह अचानकमार वही है जहां कुछ दिन पहले दूसरे जंगल से भटककर पहुंची एक घायल बाघिन के बारे में ग्रामीणों ने बताया, तब वन अफसरों को पता चला। वन विभाग टाइगर रिजर्व के नाम पर करोड़ों रुपये अचानकमार पर खर्च करता है, पर स्थिति यह है कि टाइगर तो क्या हिरण, चीतल की भी सुरक्षा को लेकर लापरवाही बरती रही है। अचानकमार से छपरवा ग्राम तक आठ-दस किलोमीटर की सडक़ ही ज्यादा संवेदनशील है पर यहां कोई पेट्रोलिंग नहीं हो रही है।
नक्सल समस्या किसके सिर मढ़े?
अपने राज्य में तीन साल के भीतर 970 नक्सली हमले और इनमें 341 लोगों की मौत! केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में यह जानकारी दी है कि देश में सर्वाधिक नक्सल हिंसा प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ है। संगठन सम्बन्धी काम से राजस्थान जाते समय प्रदेश के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू पर इस मुद्दे को लेकर पत्रकारों ने सवाल दागा। इस चिंताजनक आंकड़े को लेकर मंत्री निश्चिन्त दिखे। उन्होंने जवाब दिया- आंकड़े केन्द्र ने जारी किये हैं तो इस समस्या का हल निकालने की जिम्मेदारी भी तो उनकी ही है। हम नक्सलियों पर अटैक करते हैं तो वे भागकर दूसरे राज्य चले जाते हैं, दूसरे राज्य में दबाव बढ़ता है तो हमारे यहां आ जाते हैं। केन्द्र को जितना हो सकता है, मदद करते हैं।
ठीक है, पूरे राज्य में कानून-व्यवस्था संभालने का इतना बोझ है। कहीं दुर्घटनायें हो रही हैं, कहीं ठगी तो कहीं हत्यायें। कम से कम नक्सल समस्या तो अपने सिर पर केन्द्र पूरी तरह ले ले। शायद मंत्री कहना चाहते हैं कि भले ही इनसे पीडि़त छत्तीसगढ़ के लोग हों, पर हैं तो देश के नागरिक। यानि, मसला केन्द्र का हुआ। उन्हें पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के इस बयान पर बिल्कुल गौर नहीं करना चाहिये जो सलाह दे रहे हैं कि-मंत्री पद छोडिय़े और राजस्थान घूमिये।
राजधानी के सप्लाई रैकेट..
सरकारी विभागों में सामग्री खरीदने के बजट जिलों को जारी होता है, तो प्रदेश के अफसरों की निगाह से नहीं बच पाता। ब्लॉक और गांवों में राशि जाती है तो जिले के अधिकारी उसे अपने पास मंगा लेते हैं। इसका नुकसान यह होता है कि छोटे सप्लायर, विक्रेता बाहर हो जाते हैं और राजधानी तथा जिले में बैठे लोगों के हाथ मलाई लग जाती है।
आज दो अगस्त से स्कूल चालू हुए हैं। इन स्कूलों में ड्रेस की सप्लाई मुफ्त की जानी है। पर धुर नक्सल क्षेत्र गंगालूर में सहकारी संघ की महिलाओं ने जो स्कूल ड्रेस जिले के शिक्षा अधिकारियों के आदेश पर तैयार किये थे वे डम्प पड़े हुए हैं। आमदनी तो बंद है, करीब 10 लाख रुपये इसमें उनके फंस गये हैं। अधिकारी बता रहे हैं कि स्कूल ड्रेस की सप्लाई इस बार राजधानी से हो रही है, इसलिये उनकी ड्रेस नहीं खरीदी जायेगी। इन महिलाओं से बीते 10 साल से स्कूल ड्रेस सिलवाये जाते थे। करीब 8 सौ महिलाओं की आजीविका इस पर टिकी हुई है। सरकार की नीति महिला समूहों को प्रोत्साहित करने की है, जगह-जगह छोटे-छोटे आजीविका केन्द्र भी इसके लिये बनाये गये हैं। फिर नक्सलियों से सर्वाधिक प्रभावित जिलों में से एक बीजापुर के किसी गांव में यदि महिलायें कुछ काम कर रही हैं तो उसे छीनने का फैसला क्यों लिया गया? सप्लाई रैकेट ने आखिर किसको भरोसे में लिया होगा?
त्योहारों में इस साल सुकून
अगस्त का यह पूरा महीना खास दिनों का है, उत्सव-पर्व-त्योहारों का। पहली तारीख ही फ्रेंडशिप डे से हो गई है। 9 अगस्त और कहीं-कहीं 10 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जायेगा। 11 अगस्त हरेली, 13 अगस्त को नागपंचमी फिर 15 अगस्त को 75वां स्वतंत्रता दिवस। 16 अगस्त पारसी नववर्ष है। 19 अगस्त इमाम हुसैन की शहादत का पर्व मोहर्रम है। 22 अगस्त को रक्षाबंधन है। छत्तीसगढ़ में अनेक उत्तर भारतीय कजरी तीज व्रत रखते हैं, जो 25 अगस्त को है। 28 अगस्त को हलषष्ठी है, जो छत्तीसगढ़ में बेहद पारम्परिक तरीके से मनाया जाता है। महिलायें संतानों के सुख के लिये निर्जला रहकर कुंड की पूजा करती हैं। कृष्ण जन्मोत्सव 30 अगस्त को है।
ये त्यौहार हर साल आते हैं। अमूमन जुलाई-अगस्त में ही। बस खास ये है कि पिछले साल इन पर्वों के मनाने में कोरोना संक्रमण की दहशत इस साल के मुकाबले कई गुना ज्यादा थी। कई शहरों में लॉकडाउन भी था। रक्षाबंधन के दौरान यात्राओं के लिये पास की जरूरत पड़ी थी। स्वतंत्रता दिवस भी सीमित उपस्थिति में मनाया गया था। देश के कई राज्यों में कोरोना के केस जरूर फिर से बढऩे लग गये हैं पर छत्तीसगढ़ में स्थिति फिलहाल तो ठीक है। यानी पाबंदियों के बगैर अगस्त गुजर जाने की संभावना दिखाई दे रही है। त्यौहार के दिनों में बाजार में खरीदारी बढ़ती है, परिवहन सेवाओं को भी लाभ मिलता है। इस बार इन पर पिछले साल की तरह मार नहीं पड़ेगी, ऐसा अनुमान है।
नशे की लोकप्रिय बातें !
अभी एक सर्वे किया गया कि हिंदुस्तान में दारू पीने के बाद लोग आम तौर पर क्या-क्या कहते हैं. नशे में सबसे लोकप्रिय बातें ये मिली हैं.
1. भाई है तू मेरा
2. गाड़ी मैं चलाऊंगा
3. आज चढ़ नहीं रही
4. मैं दिल से तेरी इज्जत करता हूँ
5. ये मत समझ कि मैं पी के बोल रहा हूँ
6. यार कम तो नहीं पड़ेगी?
7. एक छोटा सा और हो जाये
8. तू बोल भाई क्या चाहिए, तेरे लिए जान भी हाजिर है
9. अपने बाप को मत सिखा
10. काश वो मिल जाती तो ये हाथ में ना होती और द बेस्ट वन
11. सन्डे से दारू बंद.... और जिम चालू