राजपथ - जनपथ
चिटफंड में डूबे कितने रुपये वापस मिलेंगे?
फर्जी चिटफंड कंपनियों में करोड़ों रुपए डूबा चुके निवेशकों को एक बार फिर लग रहा है कि उनके पैसे वापस मिल जाएंगे। एजेंटों की भी गर्दन इसमें फंसी हुई है। मौजूदा कांग्रेस सरकार के प्रमुख चुनावी वादों में एक यह भी था कि कंपनियों की प्रॉपर्टी बेचकर और बैंकों में जमा रकम सीज करके निवेशकों को पैसे लौटाए जाएंगे।
सभी जिलों में इन दिनों निवेशकों से आवेदन लिए जा रहे हैं। उन्हें पूरा विवरण भरकर दस्तावेजों के साथ कलेक्टोरेट में फॉर्म जमा करना है। दूसरी ओर तथ्य यह है कि अब तक केवल 322 निवेशकों के पैसे लौटाये जा सके हैं। वह भी जमा की गई रकम का सिर्फ 30 प्रतिशत। यानि मूल धन भी पूरा नहीं मिल पाया है। पिछले महीने गृह विभाग की समीक्षा में यह बात सामने आई कि राज्य में 187 अनियमित चिटफंड कंपनियों के खिलाफ 427 प्रकरण पंजीबद्ध हैं। इनमें से 265 प्रकरण अदालतों में विचाराधीन हैं। अब तक संपत्ति कुर्क करके इनसे 9 करोड़ 32 लाख रुपए वसूल किए जा सके हैं। एजेंटों की मानें तो पूरे प्रदेश में पैसे लगाने वालों की संख्या एक लाख 6 हजार के करीब है। कहां 322 और कहां एक लाख! ढाई साल में बस इतनी ही कामयाबी मिली। कोई चमत्कार ही होगा यदि सरकार अपना वादा सौ फीसदी पूरा कर पाये। दरअसल, कई व्यावहारिक कठिनाईयों का हवाला अधिकारी दे रहे हैं। ज्यादातर कम्पनियों के संचालक फरार हैं। उनकी प्रापर्टी दूसरे प्रदेशों में हैं। कई कम्पनियों के मालिकों का तो पता ही नहीं चल रहा है।
मतलब यह है कि लूटे गये हर धन को स्विस बैंक भेजना जरूरी नहीं है और न ही विदेश भागना। अपने देश के भीतर रहकर भी लूट और ठगी के पैसों से ऐश की जा सकती है।
क्या फिर रद्द होंगे फर्जी राशन कार्ड?
राशन कार्ड का ज्यादा होना किसी भी प्रदेश की गरीबी का इंडिकेटर है। यह हमेशा वोट बटोरने का जरिया भी रहा है। अपने छत्तीसगढ़ में ही ऐसा हो चुका है कि चुनाव से पहले बड़ी उदारता से लाखों की संख्या में राशन कार्ड बनाए गए और चुनाव खत्म होने के बाद जांच के नाम पर आधे निरस्त कर दिये गये। कांग्रेस सरकार बनने के बाद राशन कार्ड नए सिरे से तैयार किए गए। उसे ऑनलाइन एंट्री और आधार कार्ड से जोडक़र ज्यादा फुलप्रूफ बनाने की कोशिश की गई। पर चकमा देने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं। वोटों की ही मजबूरी रहती है राशन कार्ड बनवाने में निकायों के प्रत्याशी और निर्वाचित प्रतिनिधि भी मदद करते हैं। इसके चलते खंगाला जाये तो सैकड़ों सरकारी कर्मचारी, आयकर दाता, पक्की मकानों और चारपहिया मालिक भी बीपीएल कार्डधारक मिल जायेंगे। हाल ही में फर्जी राशन कार्ड को पकडऩे के लिए राजधानी में जो तरीका अपनाया गया है उससे 50,000 राशन कार्ड निरस्त हो सकते हैं। राशन देने के लिए दुकानों में बायोमेट्रिक मशीन से अंगूठे का निशान लिया जा रहा है और इसे आधार कार्ड से जोड़ा भी गया है। यानी आधार कार्ड में जो दर्ज है वह राशन कार्ड लेते समय देने वाले निशान से मैच करना चाहिए। बीते महीने जुलाई का आंकड़ा बताता है कि जिले के 2.38 लाख राशन कार्ड धारियों में से 57 हजार लोग राशन लेने के लिए नहीं पहुंचे। ऐसा नहीं कह सकते कि सब के सब फर्जी होने की वजह नहीं आये। फिर भी राशन दुकान नहीं पहुंचने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि 24 फीसदी स्टाक दुकानों में बच गया है। फूड अफसरों का कहना है कि यदि दो-तीन माह तक यह लोग लगातार राशन लेने नहीं आए तो उनके कार्ड की जांच की जाएगी और निरस्त कर दिये जाएंगे। अभी चुनाव का कोई मौसम नहीं है। इसलिये फर्जी राशन कार्डों को बचाने की सिफारिश कोई पार्षद या नेता शायद ही करे।
बिना मेहनत के मिला भोजन हाथियों को पसंद नहीं?
गांव में हाथियों के हमले रोकने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग ने मार्कफेड से धान खरीदना शुरू कर दिया है। प्रयोग के तौर पर उनके विचरण वाले रास्तों में रखा भी गया। सूरजपुर वन मंडल के पांच अलग-अलग बीट में 20 क्विंटल धान रखे गये। इनमें से 3 गांवों में हाथियों ने 14 क्विंटल धान खा लिया। मगर धर्मजयगढ़, बालोद आदि स्थानों पर धान पड़ा रह गया, उसे हाथियों ने खाना पसंद नहीं किया।
लगता है कि ज्यादातर इलाकों में हाथियों को धान की कटी हुई पकी-पकाई फसल यानि सहज-सुलभ भोजन पसंद नहीं है और वे सीधे खेतों और घरों में दस्तक देना चाहते हैं। धान खराब होने से बचाने के लिए एक विभाग ने दूसरे विभाग की मदद के लिये हाथ तो बढ़ाया पर यह प्रयोग कितना सफल होता है, कहना मुश्किल है।