राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नाम में क्या रखा है? बहुत कुछ
10-Aug-2021 4:33 PM
छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ :   नाम में क्या रखा है? बहुत कुछ

नाम में क्या रखा है? बहुत कुछ
शेक्सपियर की प्रसिद्ध उक्ति है-नाम में क्या रखा है, गर...। 
मगर सच कहें, तो नाम में बहुत कुछ रखा है। एक ही नाम की वजह से कई बार गलतफहमी हो जाती है। और जिन्हें पद मिलना चाहिए, वह दूसरे को मिल गया। बात कांग्रेस की हो रही है। कुछ अरसा पहले प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारियों की सूची जारी हुई, जिसमें कन्हैया अग्रवाल को महामंत्री बनाया गया। सूची जारी होने के बाद इस नाम को लेकर झंझट चलता रहा। कन्हैया अग्रवाल नाम के दो नेता हैं, और दोनों ही इस पद के दावेदार थे। 

एक कन्हैया अग्रवाल रायपुर के हैं, जो कि रायपुर दक्षिण से पार्टी प्रत्याशी थे। दूसरे कन्हैया अग्रवाल कवर्धा के हैं, जो कि पार्टी के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। सरकार के मंत्री मोहम्मद अकबर, और अन्य प्रमुख नेताओं ने कवर्धा के कन्हैया अग्रवाल को महामंत्री बनाने की अनुशंसा की थी। उनका नाम फाइनल हो गया। सूची जारी हुई, तो एड्रेस नहीं था। इसके बाद पूर्व प्रत्याशी सक्रिय हो गए, और उन्होंने नाम के बाद रायपुर जुड़वा दिया। ऐसा कर वो महामंत्री के पद पर काबिज होने में सफल रहे। 

कुछ इसी तरह की गलती निगम-मंडल की सूची जारी करते समय हो रही थी। कन्हैया अग्रवाल को क्रेडा का सदस्य नियुक्त करने का आदेश जारी होना था। इस बार पहले जैसी गलती न हो जाए, इसके लिए अकबर को कोशिश करनी पड़ी, और उन्होंने नाम के बाद जिला कवर्धा, और पूर्व जिलाध्यक्ष जुड़वाया। 

कुछ इसी तरह दीपक दुबे के नाम को लेकर कांग्रेस में गलतफहमी होती रही है। दुर्ग वाले दीपक दुबे दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के समर्थक माने जाते हैं, तो रायपुर वाले दिवंगत श्यामाचरण शुक्ल से जुड़े रहे हैं। एक बार सिंधिया खेमे ने दुर्ग के दीपक दुबे को प्रदेश पदाधिकारी बनाने की अनुशंसा की थी। उनका नाम जुड़ गया था। फिर वैसी ही गलतफहमी पैदा हो गई। कुछ दिन तक यह साफ नहीं हो पाया कि रायपुर वाले को पदाधिकारी बनाया गया है, या फिर दुर्ग के दीपक दुबे को। आखिरकार दुर्ग वाले के विरोधी सक्रिय हो गए, और नाम के बाद रायपुर जुड़ गया। वैसे रायपुर वाले भी अनुभवी, और सीनियर रहे हैं इसलिए ज्यादा कुछ हल्ला नहीं मचा। मगर दुर्ग वाले पद पाते रह गए।

'छत्तीसगढ़ ' के नाम पर.. '
मिलते-जुलते नामों और नामों में जोड़-तोड़ का शिकार यह अखबार 'छत्तीसगढ़ ' भी रहा है। इस अखबार ने बड़ी मेहनत करके केंद्र सरकार के एक सार्वजनिक उपक्रम से अपने लिए कुछ विज्ञापन मंजूर करवाए। विज्ञापन मंजूर हो गए और नीचे जिस टेबल से विज्ञापन जारी होने थे, वहां तक फाइल पहुंच गई। कुछ दिन इंतजार के बाद संपर्क करने पर पता लगा कि विज्ञापन तो जारी हो चुके हैं। जब फाइलों को देखा गया तो पता लगा कि इस अखबार के नाम छत्तीसगढ़ के साथ कोई और शब्द आगे-पीछे जोड़कर जो दूसरे बहुत से अखबारों के नाम बनते हैं, उनमें से कुछ अखबारों ने 'छत्तीसगढ़ ' के लिए मंजूर विज्ञापन अपने नाम पर जारी करवा लिए हैं। अब जब अखबारों के साथ ऐसा हो सकता तो राजनीति में तो ऐसा हो ही सकता है। इसी के लिए कहा जाता है कि नकली नोट बाजार से असली नोटों को बाहर कर देते हैं।

जैक्स राव खबरों के बाहर नहीं 
पूर्व हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स मुदित कुमार सिंह, और पीसीसीएफ के पद से रिटायर होने वाले जेएसीएस राव ने संविदा पर पोस्टिंग के लिए जोर लगाया है। चर्चा हैं कि मुदित सिंह के लिए उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल ने अनुशंसा भी की है, लेकिन अब खबर छनकर आ रही है उसके मुताबिक मुदित सिंह को संविदा नियुक्ति देने की फाइल नस्तीबद्ध हो चुकी है। 

जेएसीएस राव की बात करे, तो वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने उन्हें संविदा पर नियुक्त करने की अनुशंसा की थी। पहले नियम-कायदे को नजर अंदाज कर उन्हें बोर्ड में सलाहकार नियुक्त कर दिया गया था, लेकिन बाद में मंत्री की नाराजगी के बाद उनकी सलाहकार पद पर नियुक्ति का प्रस्ताव निरस्त कर दिया गया, मगर संविदा नियुक्ति की फाइल चल रही है। 

चर्चा है कि जेएसीएस राव ने बोर्ड के चेयरमैन बालकृष्ण पाठक के जरिए दबाव भी बनाया है। पाठक इस सिलसिले में सीएम से मिल आए हैं। बावजूद इसके उन्हें नियुक्ति मिल पाएगी, इसकी संभावना कम ही दिख रही है। समय-समय पर उनकी कार्यशैली को लेकर शिकायत होते रही है। यही वजह है कि उनकी संविदा नियुक्ति की फाइल नहीं बढ़ पा रही है। 


मूक प्राणियों के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति

जो जीव बोल नहीं सकते और तुच्छ समझे जाते हैं उनमें भी अपनत्व और प्रेम की अनुभूति छलक जाती है।

शवभक्षी सफेद गिद्ध अब लुफ्त होने की कगार पर हैं, लेकिन वन्यजीवों से लगाव रखने वाले लोग इनको खोज लेते हैं। शनिवार को मोहनभाटा में भैंस का शव एक किनारे दिखा। यह तय था कि कुत्ते और चील के बाद सफेद गिद्ध यहां पहुंचे।  

वहां एक नहीं अलबत्ता चार सफेद गिद्धों का परिवार दिखा जो पेट भरकर करीब के तालाब में पानी पीने मस्तानी चाल चला जा रहा था। इसमें एक किशोर था, जिसके पंख अभी काले थे, जबकि तीन पूर्ण वयस्क। ये सफेद पीले पंखों से सुसज्जित थे।

पानी पीने के बाद तृप्त भाव लिये बड़े दो सफेद गिद्ध एक दूसरे की करीब गये और चोंच से दूसरे को  कुछ लम्हे तक प्यार करते रहे।

इस तस्वीर को कैद करने वाले वाइल्डलाइफ फोटोग्रॉफर और सीनियर जर्नलिस्ट प्राण चड्ढा कहते हैं कि छोटी चिडिय़ा मुनिया, तोते, घुग्घू में ऐसा आम है। पर शवभक्षी सफेद गिद्ध में यह उन्होंने पहली बार देखा। वो गिद्ध जो मृत मवेशी की हड्डी से लगा सड़ा मांस नोच कर पेट भरता है।  

इसी मौके पर एक और अनुभव हुआ। भैस के शव के पास आ रहे कुछ कुत्तों पर युवा होता सांड हमला कर रहा था। यह किशोर सांड शायद उस मृत मवेशी के साथ इस मैदान में चरने के लिए आता रहा होगा। मरने के बाद उसके साथी को कुत्ते खा रहे थे, इसलिए वह दु:खी था और कुत्तों को तेजी से दौड़ाकर भगा रहा था। वहां मौजूद लोगों ने सांड की भावना को दिल की गहराई से महसूस किया।

पहले खुद की सजा तय कर लीजिए

कबीरधाम के जिला शिक्षा अधिकारी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता का निरीक्षण करने के लिये इन दिनों दौरा कर रहे हैं। लोहारा विकासखंड के एक स्कूल में चौथी कक्षा की छात्रा से उन्होंने उसकी एक किताब के पाठ एक की पहली लाइन पढऩे के लिये कहा गया, लेकिन वह नहीं पढ़ पाई। उसे पहली कक्षा के हिंदी का पाठ पढऩे कहा गया तो वह भी नहीं हो सका। अब अधिकारी ने शिक्षक से एक शब्द अंत्येष्टि लिखने के लिये कहा। शिक्षक ने गलत लिखा- अंत्येष्ठि। दफ्तर लौटते ही जिला शिक्षा अधिकारी ने शिक्षक पर कार्रवाई कर दी। उनकी एक वेतन वृद्धि रोक दी गई। पर, इस कार्रवाई का पत्र जारी करते समय डीईओ ने खुद गलत हिंदी लिख डाली। असमर्थता शब्द का उन्होंने दो बार प्रयोग किया, पर सही नहीं लिखा। मतलब, जो हाल बच्चों का, वही हाल शिक्षक का, और उन पर कार्रवाई करने वाले अधिकारी का भी। अब जिला शिक्षा अधिकारी के हिंदी ज्ञान पर उनसे ऊपर का कोई अधिकारी नोटिस जारी न कर दें, वरना उनकी भी पोल खुलने का खतरा है।

टापर्स को भी देनी होगी प्रवेश परीक्षा
12वीं बोर्ड परीक्षा में 80-90 प्रतिशत अंक लेकर उत्तीर्ण होने पर भी छात्रों को वह खुशी नहीं हो रही है जो परीक्षा देने के पारम्परिक तरीके के जरिये पास होने पर मिला करती थी। आंतरिक मूल्यांकन का पैमाना किसी छात्र की क्षमता को परखने का एक सर्वाधिक उपयुक्त तरीका माना गया। इससे लगभग सभी अच्छे नंबर हासिल करते हुए पास हुए। इन 80-90 प्रतिशत अंकों का कितना वजन है यह यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में दाखिले के लिये भारी संख्या में आ रहे आवेदनों से पता चलता है। प्रदेश की एकमात्र सेंट्रल यूनिवर्सिटी में तय किया गया है कि 12वीं में मिले प्राप्तांको के आधार पर कोई मेरिट लिस्ट नहीं बनाई जायेगी। अभ्यर्थियों को एक अलग से प्रवेश परीक्षा देनी पड़ेगी। चाहे उसका कितना भी ऊपर नंबर क्यों न हो। जो विद्यार्थी सेंट्रल यूनिवर्सिटी या इसी तरह के अन्य भारी डिमांड वाले कॉलेजों में प्रवेश लेना चाहते हैं उन्हें इस परीक्षा की तैयारी शुरू कर देनी चाहिये। यह जरूर है कि हर बार की तरह ये परीक्षा ऑफलाइन नहीं बल्कि ऑनलाइन ली जायेगी। ऐसे में उन छात्रों के लिये भी उम्मीद है जिन्हें मेरिट लिस्ट के आधार पर किसी कॉलेज में एडमिशन मिलने का मौका नहीं मिलने वाला था।
 

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