राजपथ - जनपथ
छात्र नेतृत्व के लिये इंटरव्यू
बीजेपी की तरह कांग्रेस कैडर बेस्ड पार्टी नहीं है इसलिये संगठन के पद नेताओं की सिफारिश और उनकी पहुंच के आधार पर दे दिये जाते हैं। पर छात्र इकाई में पदाधिकारियों के चयन के लिये इस बार कांग्रेस ने लगभग वह तरीका अपनाया है जो कैडर वाले किसी संगठन में पाया जाता है। प्रदेश एनएसयूआई का नया अध्यक्ष चुना जाना है। इसके लिये राज्य के बड़े नेताओं से नाम नहीं मंगाये गये, बल्कि जो एनएसयूआई में पहले से काम कर रहे हैं उनसे आवेदन मांगे गये। दिल्ली में इनका इंटरव्यू हुआ। उन्हें अब तक के छात्रों व समाज के लिये गये कार्यों के बारे में पूछा गया। भविष्य में किन योजनाओं को वे लाना चाहते हैं, उस पर सवाल हुए। कोरोना महामारी और छात्रों की पढ़ाई को इस अवधि में पहुंची क्षति की भरपाई कैसे होगी, यह भी पूछा गया। प्रदेश से 14 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिये चुना गया था। इनमें भावेश शुक्ला, पूर्णानंद साहू, अमित शर्मा, चमन साहू, नीरज पांडे, आदित्य सिंह, निखिल कांत साहू आदि छात्र शामिल थे। हालांकि बताया जाता है कि इन 14 नामों में अधिकांश का किसी न किसी सीनियर नेता से सम्पर्क है। बहुत पहले कॉलेजों के स्टूडेंट यूनियन के चुनाव होते थे, लोकप्रिय छात्र नेताओं का आसानी से पता चल जाता था और उन्हें एबीवीपी, एनएसयूआई में अपनी जगह अपने-आप मिल जाती थी। अब यह नये मापदंड से चुने जाने वाले छात्र नेता अपने संगठन को कितना मजबूत कर सकेंगे, समय बतायेगा।
जितने जिले, उनसे दुगने नाम
छत्तीसगढ़ में पहले सिर्फ 11 जिले थे, फिर 18 फिर 23 और 28 हो गये। अब 15 अगस्त को चार नये जिले घोषित कर दिये जाने के बाद इनकी संख्या बढक़र 32 हो जायेगी। मध्यप्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद अवसर मिला और प्रशासनिक कसावट के लिये कई दूरदराज के इलाकों को जिला मुख्यालय घोषित किया गया। मध्यप्रदेश के समय जब जांजगीर और कोरबा को जिला घोषित किया गया तो चाम्पा में लोग आंदोलन पर उतर गये। समझौता ऐसे किया गया कि जिले का नाम ही जांजगीर-चाम्पा कर दिया गया। हालांकि अधिकांश मुख्यालय अब भी जांजगीर और नवागढ़ में ही स्थापित हैं।
बलौदाबाजार-भाटापारा, बलरामपुर-रामानुजगंज जिलों का नाम भी सबको संतुष्ट करने के हिसाब से रखा गया। अन्य नये जिलों में भी पहचान और प्राथमिकता का सवाल आया। सन् 2018 में दुबारा कांग्रेस सरकार बनी तो फिर एक नया जिला बना। नाम रखने पर विवाद न हो इसके लिये लम्बा सा नाम गौरेला-मरवाही-पेन्ड्रा रख दिया गया। इसका नाम तो इतना लम्बा हो गया कि सीजीपीएससी के कॉलम में अतिरिक्त जगह बनानी पड़ी। अब संक्षेप में लोगों ने इसे जीपीएम कहना शुरू कर दिया है।
बीते 15 अगस्त को मानपुर-मोहला जिले की भी घोषणा हुई है। इसके समीप के अम्बागढ़-चौकी के लोगों की भी जिला बनाने की मांग थी। वहां लोग मानपुर-मोहला को जिला बनाने और अम्बागढ़-चौकी को नहीं बनाये जाने के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। खास बात है कि उनके आंदोलन को अपनी ही सरकार के खिलाफ वहां की कांग्रेस विधायक छन्नी साहू भी साथ दे रही हैं। वे कहती हैं कि इसे जिला बनाने की मांग पुरानी थी। जनता अगर आंदोलन पर उतर गई है तो मुझे तो प्रतिनिधि होने के नाते उनका साथ तो देना पड़ेगा। सीएम से मिलने के लिये उन्होंने समय मांगा है। तब शायद एक जिले का नया नाम आकार लेगा, जो लंबाई में जीपीएम का भी रिकॉर्ड तोड़ देगा। वैसे विधायक एक बार पहले भी डेढ़ साल पहले भी नगर पंचायत चुनाव में हुए विवाद को लेकर राजीव भवन में जिला कांग्रेस अध्यक्ष को हटाने के लिये धरना दे चुकी हैं।
वैक्सीनेशन विहीन ट्रेन, हवाई-जहाज यात्री
कोविड वैक्सीनेशन को लेकर जागरूकता की बात की जाती है तो अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों व आदिवासी बाहुल्य जिलों का आंकड़ा सामने होता है। पर शिक्षित व समझदार समझे जाने वाले लोगों में भी इसकी कमी दिखाई दे रही है। ट्रेन और हवाई जहाज से यात्रा करने वालों को कोविड का वैक्सीन लगवाना या फिर 72 घंटे के भीतर का आरटी पीसीआर टेस्ट होना जरूरी है, पर यात्री यह जरूरी टेस्ट नहीं करा रहे हैं। रायपुर और बिलासपुर जैसे स्टेशनों में हर दिन पांच सात सौ ऐसे यात्री मिल रहे हैं जिन्होंने कोविड टीका नहीं लगवाया न ही उनके पास कोई ताजा टेस्ट रिपोर्ट है। कई यात्री तो लम्बे-चौड़े फ्लेटफार्म में गली तलाशने लगते हैं कि बिना तलाशी के वे बाहर कैसे निकल सकें।
ऐसा मान भी लिया जाये कि ट्रेनों में अमीर-गरीब हर तबके का व्यक्ति सफर करता है, कुछ लोग कम पढ़े लिखे भी होते हों, पर हवाई जहाज का सफर ऐसा नहीं है। पर रायपुर-बिलासपुर के हवाईअड्डों में भी बड़ी संख्या में ऐसे यात्री रोजाना मिल रहे हैं, जिन्होंने न तो कोविड टेस्ट निगेटिव रिपोर्ट रखी है न ही एक भी डोज वैक्सीन का लगवाया। ऐसे लोगों को आप क्या कहेंगे? शायद वे लैब जाने की जगह सीधे स्टेशन या एयरपोर्ट का रुख, समय बचाने के लिये कर रहे हैं। भले ही उन्हें इसके लिये अतिरिक्त राशि और समय उन्हें गंवाना पड़ रहा है।