राजपथ - जनपथ
इसे कहते हैं गई भैंस पानी में
प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी ने वन भैंसा को छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु घोषित किया था। तब से लेकर अब तक उसके संरक्षण के लिए फूंके गए करोड़ों रुपयों के बजट की परिणीति यह हुई है कि आखिरी संदिग्ध वन भैंसे की भी मौत हो गई।
वन भैंसा को बचाने के नाम पर बम्हनी झूला गांव के चेतन से जनवरी सन 2007 में आशा नाम की एक मादा भैंस को जप्त कर लिया। चेतन ने वन विभाग के अधिकारियों के साथ खूब झगड़ा किया। कहा कि यह मेरी पालतू भैंस है, वन भैंसा नहीं है। मगर वन विभाग ने दावा किया कि यह माता, मादा वन भैंस ही है। कुछ वन्यजीव प्रेमियों ने मांग कि कि इसका डीएनए टेस्ट कराया जाए। इधर वन विभाग ने वन भैंसा प्रजनन केंद्र उदंती में रखकर इस मादा भैंस की ब्रीडिंग कराई, जिससे 5 नर और एक मादा भैंस पैदा हुई।
डीएनए टेस्ट प्रजनन के बाद हुआ। इन छह में से सिर्फ एक के बारे में दावा किया गया कि यह मादा वन भैंस है।
वन्य प्राणी विशेषज्ञ इस बात पर भी संतुष्ट थे कि राजकीय पशु वन भैंस का अस्तित्व बना रहेगा। वन विभाग के अधिकारियों ने इसका नाम भी खुशी रख दिया था। मगर दुर्भाग्य की खुशी नाम ने वन विभाग के अधिकारियों की पोल खोल कर वन्यजीव प्रेमियों को दुखी कर दिया। मालूम यह हुआ है कि वह मुर्रा भैंस है। आमतौर पर पालतू।
जंगल में अधिकारी किस तरह से करोड़ों रुपए के परियोजना को किस तरह से बिना जाने समझे बहा रहे हैं और न केवल जंगल का विनाश बल्कि वन्य जीवों को खत्म कर रहे हैं, यह मामला इसका बड़ा उदाहरण है।
ऑनलाइन पढ़ाई की लत लग चुकी ...
केरल से जरूर कोरोना महामारी के भयावह आंकड़े हैं पर दक्षिण छोडक़र बाकी राज्यों में गतिविधियों को सामान्य करने की कोशिश की जा रही है। इसीलिये छत्तीसगढ़ में भी 50-50 फीसदी उपस्थिति के साथ स्कूल खोले जा चुके हैं। एक शिक्षक से पूछा गया कि क्या हाल है स्कूलों का? वह बता रहे हैं कि बच्चे 15-20 प्रतिशत ही पहुंच रहे हैं। जब बच्चों और उनके अभिभावकों से पूछा जाता है कि अनुपस्थिति क्यों? कहते हैं कोरोना फैलने का डर है। बच्चों को गाइडलाइन ठीक तरह से पता नहीं। वे एक साथ बैठेंगे। दो गज की दूरी नहीं रहेगी। मास्क निकालकर टिफिन बांटकर खायेंगे। खेल-कूद के बिना रह नहीं पायेंगे फिर एक दूसरे को मरोड़ेंगे। न- ना, स्कूल नहीं भेजेंगे।
शिक्षक कहते हैं कि यह चिंता बेकार की है। 50 फीसदी उपस्थिति पहले ही तय की जा चुकी है। खेलकूद बंद है। जो कोरोना के डर से स्कूल नहीं भेज रहे हैं वही अपने पूरे परिवार के साथ मॉल में फिल्म देखते हुए मिल गये। बच्चों को लेकर वे बाजार जा रहे और त्यौहार मना रहे हैं।
फिर वजह क्या है? दरअसल बच्चों को बीते दो साल में ऑनलाइन पढ़ाई का चस्का लग चुका है। स्कूल जाने के नाम पर कतरा रहे हैं। उन्हें मोबाइल फोन की ऑनलाइन पढ़ाई भा रही है। पालक भी स्कूल ड्रेस, टिफिन, ऑटो रिक्शा के झंझट से बचने के लिये दबाव नहीं डाल रहे हैं।
शिक्षकों ने चेतावनी दी है कि स्कूल नहीं आ रहे हो, पर सोच लो। इस बार इग्ज़ाम ऑनलाइन नहीं, ऑफलाइऩ ही होगा और आनाकानी करने पर नतीजे के लिये तैयार रहें।
स्काई वाक और मल्टी लेवल पार्किंग..
भाठागांव नया बस स्टैंड और शहर के मुख्य मार्ग को तहस-नहस कर बनाये गये स्काई वाक के बाद अब इस कहीं मल्टीलेवल पार्किंग के अनुपयोगी की बारी तो नहीं? यहां 700 कारों को पार्क करने की जगह है। क्या इतनी कारों को यहां पार्क करने की जरूरत पडऩे वाली है? पार्क करने से बेहतर क्या यह ठीक नहीं लगेगा कि कार वे घर पर ही छोडक़र निकलें और टैक्सी से कलेक्टोरेट और बाजार पहुंच जायें?