राजपथ - जनपथ
जोगी की आत्मकथा जल्द अंग्रेजी में
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के जीवनकाल से जुड़ी हिन्दी में पूर्व में प्रकाशित हो चुकी आत्मकथा का जल्द ही अंग्रेजी में प्रकाशन होगा। चर्चा है कि स्व. जोगी के राजनीतिक और प्रशासनिक संघर्षों से जुड़ी कहानियां आत्मकथा में शामिल की गई हैं। उनके बेटे अमित जोगी और कुछ सहयोगी अंग्रेजी में अनुवाद कर पुस्तक लगभग तैयार कर चुके हैं। चूंकि जोगी से जुड़ा विषय है, तो राजनीतिक कयास भी लगने ही हैं. पिछले दिनों दिल्ली में प्रदेश कांग्रेस सरकार के नेतृत्व परिवर्तन के अटकलों के बीच छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस पार्टी के विलय की भी चर्चाएं जोरों पर थी। बताते हैं कि जोगी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती रेणु जोगी की दिली ख्वाहिश है कि आत्मकथा के अंग्रेजी अनुवाद का विमोचन कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों हो। पार्टी के विलय की चर्चा की असली वजह यह रही कि विमोचन के लिए श्रीमती जोगी ने दस जनपथ से समय लिया। वैसे भी रेणु जोगी के साथ श्रीमती गांधी के रिश्ते व्यक्तिगत रूप से आज भी मजबूत हैं। जोगी की आत्मकथा के अंग्रेजी में अनुवाद होने के बाद प्रकाशित होने से एक बड़े वर्ग को उनके सत्ता संघर्ष से लेकर प्रशासनिक अफसर के तौर पर किए गए कामों को समझने का मौका मिलेगा। सुनते हैं कि अंग्रेजी की पुस्तक लगभग तैयार हो चुकी है। जोगी ने अपने जीवनकाल में और भी पुस्तकें लिखी है, पर उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी बातें आत्मकथा में खुलकर लिखीं हैं ।
भीड़भाड़ में नहीं मिलेंगे...
कांग्रेस के दिग्गज दिवंगत शुक्ल बंधुओं के इकलौते राजनीतिक वारिस पूर्व मंत्री अमितेश शुक्ल को भूपेश बघेल कैबिनेट में जगह मिलने की उम्मीद थी। लेकिन उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। अमितेश को निगम-मंडल की पेशकश की गई थी, इसके लिए वो तैयार नहीं हुए। शुक्ल बंधुओं की विरासत वजह से अमितेश की दस जनपथ में पहुंच है।
कई बार वे सोनिया, और राहुल से अकेले में मिल चुके हैं। और जब पिछले दिनों राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं के बीच एक प्रमुख नेता ने भी साथ दिल्ली चलने के लिए अप्रोच किया, तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वो सीएम के साथ हैं, लेकिन वे राष्ट्रीय नेताओं से भीड़भाड़ में नहीं मिलेंगे। उनके लिए अलग से टाइम लिया जाए, तभी वो दिल्ली आएंगे। स्वाभाविक है कि अमितेश मंत्री भले ही नहीं है, लेकिन रूतबा कम नहीं है।
उम्मीद थी कि...
कांग्रेस में चल रही उठापटक पर भाजपा की पैनी निगाह है। नेतृत्व परिवर्तन का हल्ला उड़ा, तो राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम पुराने प्रकरण को लेकर अपने धुर विरोधी बृहस्पत सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंच गए।
रामविचार से जुड़े लोगों को उम्मीद थी कि नेतृत्व में बदलाव होता है तो बृहस्पत सिंह के खिलाफ कार्रवाई तुरंत होगी। इसकी एक वजह यह है कि बृहस्पत सिंह, टीएस सिंहदेव के खिलाफ आग उगलते रहे हैं। मगर परिवर्तन जैसा कुछ नहीं हुआ। अब बृहस्पत सिंह को रामविचार पर हमला बोलने का मौका मिल गया, और वे यहां-वहां रामविचार के खिलाफ काफी कुछ बोल रहे हैं।
सूखे की फसल पर नजर रखने की जरूरत..
चार साल पहले राजनांदगांव जिले को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था तो वहां भाजपा नेताओं ने पटाखे फोडक़र खुशियां मनाई थीं। कोई इलाका सूखाग्रस्त घोषित होता है तो वहां के राजनेता और अधिकारी-कर्मचारी खुश क्यों हो जाते हैं यह वरिष्ठ पत्रकार पी. साईंनाथ की किताब तीसरी फसल पढक़र समझा जा सकता है। सूखाग्रस्त इलाकों में राहत पहुंचाने के लिये करोड़ों रुपये रिलीज़ किये जाते हैं और जाहिर है जो लोग इस फंड का इस्तेमाल करते हैं उन्हें अपनी फसल काटने का मौका मिलता है।
छत्तीसगढ़ में इस बार फिर सूखे के आसार दिखाई दे रहे हैं। अब तक 30 तहसील इसकी चपेट में आ चुके हैं और आगे बारिश नहीं हुई तो प्रभावित क्षेत्रों की संख्या बढ़ सकती है। पहले देखा जा चुका है कि बीमा कंपनियों ने फसल बीमा के नाम पर तो खूब मुनाफा कमाया पर सूखा पीडि़त किसान छले गये। कुछ को तो 10-20 रुपये का चेक थमा दिया गया।
इस बार छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घोषणा की है कि अकाल प्रभावित किसानों को प्रति एकड़ 9 हजार रुपये की मदद दी जायेगी। अभी साफ पता नहीं है कि यह राशि नगद के रूप में खाते में जायेगी या फिर किसी योजना में सहायता के रूप में दी जायेगी। जनप्रतिनिधियों को अब सक्रिय हो जाना चाहिये। प्रशासन के भरोसे रहे तो उनके इलाके के सूखा पीडि़त किसान आसमान की ओर ताकते रह जायेंगे। सवाल फंड का ही नहीं, वोटों का भी है।
फिर ताबड़तोड़ नसबंदी..
कोरोना संकट के बाद एक स्थिति सुधरी कि अनेक राष्ट्रीय कार्यक्रमों के तहत होने वाले रुके ऑपरेशन फिर शुरू किये गये हैं। नसबंदी का तो खैर अपने छत्तीसगढ़ में मामला ही अलग है। 8 नवंबर 2014 को तखतपुर के एक बंद पड़े अस्पताल में शिविर लगाकर बड़ी संख्या में महिलाओं की लापरवाही के साथ नसबंदी कर दी गई। इसके बाद 13 महिलाओं की मौत हो गई। इस मामले में दवा सप्लायरों, डॉक्टरों व स्टाफ के विरुद्ध कार्रवाई हुई पर वह नाकाफी थी। कई लोगों को बचा लिया गया। पर इसके बाद एक सबक लिया गया कि लोगों को प्रोत्साहन राशि के लालच में जबरदस्ती पकडक़र नहीं लाया जायेगा, ना ही नसबंदी का कोई लक्ष्य दिया जायेगा। एक डॉक्टर अधिकतम कितने लोगों की नसबंदी एक शिविर में करेंगे यह भी तय कर दिया गया। पर सरगुजा जिले के मैनपाट में हाल ही में जो हुआ उससे लग रहा है कि सब कुछ फिर पुराने ढर्रे पर लौट रहा है। यहां शिविर में 30 महिलाओं का ऑपरेशन निर्धारित किया गया था लेकिन 100 से ज्यादा कर दिये गये। पता चला कि मितानिन और स्वास्थ्य कार्यकर्ता बड़ी संख्या में महिलाओं को नसबंदी के लिये लेकर आ गये। शायद मिलने वाली प्रोत्साहन राशि इसकी वजह थी। पर डॉक्टर ने भी तय से ज्यादा ऑपरेशन करने से मना नहीं किया। अब इस मामले की जांच शुरू हो गई है, डॉक्टर को भी शो-काज नोटिस थमा दिया गया है।
एक कोना पक्षियों के नाम...
सरकारी तौर पर बर्ड फेस्टिवल मनाये जाते हैं, पक्षी विहार बनाने के लिये बजट जारी होता है पर उसके नतीजे दिखाई नहीं देते। पर यही काम यदि समाज के जागरूक लोग करें तो खर्च भी कम होता है और असर भी ज्यादा होता है। महासमुंद जिले के तुमगांव के युवाओं ने विलुप्त हो रही गौरेया और अन्य पक्षियों के लिये बसेरा बनाने का बीड़ा उठाया है। शुरुआत 30 बसेरे बनाकर की गई है। इस युवा शक्ति टीम का नेतृत्व पार्षद धर्मेन्द्र यादव कर रहे हैं। उनका कहना है कि भटकते पक्षियों को इस मुहिम के माध्यम से आशियाना देने की कोशिश की जा रही है। पक्षियों के ये मजबूत घोंसले नगर की कुलदेवी कही जाने वाली शीतला माता के मंदिर परिसर में तैयार करके रखा जा रहा है। बाद में घरों में ये बनाकर दिये जायेंगे। युवाओं का कहना है कि इन दिनों चिडिय़ों की चहक कम सुनाई दे रही है। हो सकता है उनकी कोशिश से यह कमी दूर हो। ([email protected])