राजपथ - जनपथ
पार्टी विथ डिफरेंस...
भाजपा के चिंतन शिविर से उन नेताओं को दूर रखा गया जो कि संगठन की धुरी समझे जाते थे। कई दिग्गज नेता शिविर के आमंत्रितों की क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठ पाए, और उन्हें नहीं बुलाया गया। इनमें कोषाध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, अमर अग्रवाल, राजेश मूणत, और सुभाष राव शामिल हैं। ये नेता बरसों से संगठन के कर्ताधर्ता रहे हैं, लेकिन उन्हें बुलावा नहीं भेजा गया। सुनते हैं कि इन दिग्गजों ने शिविर में न्यौते के लिए भरसक कोशिश भी की थी।
गौरीशंकर अग्रवाल ने दो दिन पहले पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से खुद को शिविर में आमंत्रित नहीं करने की शिकायत भी की थी। मगर पूर्व सीएम ने हाथ खड़े कर दिए। चर्चा तो यह भी है कि गौरीशंकर के खिलाफ पार्टी हाईकमान को कई तरह की शिकायतें हुई है। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर तो एक-दो दफा पार्टी की बैठकों में उन्हें मंचस्थ करने पर आपत्ति कर चुके हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि इन्हीं सब वजहों से गौरीशंकर को शिविर से अलग रखा गया है। इससे परे सुभाष राव प्रदेश के अकेले नेता हैं, जो कि प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से तेलगू में बात करते हैं। यही नहीं, सुभाष राव और राजेश मूणत, दोनों ही शिविर की तिथि तय होने के बाद स्थल चयन के लिए जगदलपुर गए थे। उन्होंने ही चिंतन शिविर के लिए पूरी व्यवस्था की थी। लेकिन उन्हें भी नहीं बुलाया गया।
रमन सरकार के पहले कार्यकाल में अमर अग्रवाल द्वारा मंत्री पद छोडऩे, और फिर पार्टी के बड़े नेता लखीराम अग्रवाल के गुजरने के बाद पार्टी संगठन में कोई बहुत ज्यादा हैसियत नहीं रह गई है। उनकी नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक से पटरी नहीं बैठती है। ऐसे में अमर को आमंत्रित नहीं करने से किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।
शिविर में प्रदेश उपाध्यक्ष, और महामंत्री के साथ ही सांसद, विधायकों को बुलाया गया है। बस्तर के कुछ प्रमुख नेताओं को अहम पद पर नहीं होने के बाद भी आमंत्रित किया गया है। कांग्रेस में यदि ऐसा कुछ हुआ होता तो खुलकर बयानबाजी होने लगती और लोग लड़-भिडक़र शिविर के भीतर घुस जाते, किन्तु भाजपा तो अलग ही तरह की पार्टी है।
राष्ट्रीय महामंत्री डी. पुरंदेश्वरी कह चुकी हैं कि अगला चुनाव किसी एक चेहरे पर नहीं बल्कि पार्टी के नाम पर लड़ा जायेगा। यह संकेत पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके समर्थकों के लिए चिंताजनक है। शायद इस चिंतन शिविर में तय हो कि कौन सा नाम सामने लाया जाये, इसलिये सूची सावधानी से और सुविधाजनक तरीके से बनाई गई हो? कुल मिलाकर विधानसभा चुनाव का रोड मैप तैयार करने के लिए हो रहे शिविर से दिग्गजों को दूर रखने की पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है।
एक और आईएएस दिल्ली की ओर
आईएएस की 97 बैच की अफसर डॉ. एम गीता भी केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रही हैं। गीता कृषि विभाग की सचिव हैं। और कहा जा रहा है कि स्वास्थ्यगत कारणों की वजह से वो दिल्ली में रहना चाहती हैं। राज्य सरकार ने भी उन्हें अनुमति दे दी हैं। केन्द्र सरकार में पोस्टिंग होते ही उन्हें रिलीव किया जा सकता है। डॉ. गीता के जाने के बाद मंत्रालय में आधा दर्जन अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। वैसे भी अगले एक-दो महीने में विशेष सचिव स्तर के अफसर, सचिव के पद पर पदोन्नत हो जाएंगे। इनमें से अंकित आनंद तो अहम दायित्व संभाल रहे हैं। बाकी को भी महत्वपूर्ण दायित्व दिया जा सकता है। कुल मिलाकर सीनियर अफसरों की गैर मौजूदगी में युवा अफसरों पर प्रशासन की बागडोर रहेगी।
बिजली बंद कर बचायेंगे हाथियों की जान
हाथियों से प्रभावित पत्थलगांव इलाके में हाल ही में एक हाथी की बिजली का करंट लगने से मौत हो गई। शुरुआती जांच में मालूम हुआ कि एक किसान ने अपनी फसल की हिफाजत करने के लिये बाड़ी की फेंसिंग को बिजली तार से जोड़ दिया था, जिसकी चपेट में हाथी आ गया। इस वर्ष की यह ऐसी दूसरी मौत है। अब बिजली विभाग के अधिकारियों ने वन विभाग से कहा है कि वे हमें हाथियों के मूवमेंट के बारे में जानकारी दें तो हम उस इलाके में बिजली बंद कर देंगे। अरसे से करंट से होने वाली मौतों का ठीकरा दोनों विभाग एक दूसरे के सिर पर फोड़ते रहे हैं। यह मसला भी अनसुलझा है कि हाथियों के विचरण क्षेत्र से गुजरने वाली बिजली लाइनों की ऊंचाई बढ़ाई जाये। इस पर करोड़ों रुपये खर्च होने हैं। दोनों ही इसे वहन करने के लिये तैयार नहीं है। ऐसे में मूवमेंट की सूचना देने की जिम्मेदारी वन विभाग पर बिजली विभाग ने डाल दी है। ऐसा किया गया तो विचरण वाले क्षेत्रों में कई-कई दिनों, हफ्तों तक बिजली बंद रह सकती है। इस से घरेलू उपभोक्ताओं को ही नहीं किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। हाथी तो हो सकता है बचा लिये जायें लेकिन बिजली के बगैर खेती-किसानी, व्यापार और बच्चों की पढ़ाई पर खासा असर पड़ सकता है।
तिरपाल पर यूनिवर्सिटी बिल्डिंग
आदिवासी बाहुल्य सरगुजा में गहिरा गुरु के नाम पर खोले गये विश्वविद्यालय से सरगुजा, जशपुर व कोरिया जिले के 75 से अधिक निजी व शासकीय महाविद्यालय संचालित होते हैं। अब इस यूनिवर्सिटी को बने 12 साल हो गये पर अब तक अपना बिल्डिंग नहीं मिल सका है। अंग्रेजों के जमाने में बने एक जर्जर भवन में इसे संचालित करना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि सीमेंट से बनी शीट के छत से पानी टपकता है। इससे बचने के लिये छत पर तिरपाल बिछा दी गई है, ताकि महत्वपूर्ण दस्तावेजों, कुलपति और कुलसचिव के चेम्बर को पानी टपकने से बचाया जा सके। अपना काम लेकर रोजाना पहुंचने वाले छात्रों और पालकों के लिये भी बैठने या आराम करने की ठीक जगह यहां नहीं है। पता चला है कि 10 साल बाद सन् 2019 में इसके नये भवन के लिए राशि मंजूर की गई और निर्माण की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग को सौंपी गई, पर अब तक कोई भी हिस्सा तैयार नहीं हो सका है जहां जाकर स्टाफ काम शुरू कर सके।