राजपथ - जनपथ
कुदरत ने क्या पेड़ों को बदशक्ल बनाया है?
शहरों में तो म्युनिसिपल और अब उससे भी ऊपर स्मार्ट सिटी के नाम पर होने वाले अंधाधुंध खर्च का रास्ता निकालने के लिए अब अफसर पेड़ों के तनों को रंगवाने लगे हैं मानो कुदरत ने उनके तनों को बदशक्ल बनाया है और उन्हें खूबसूरत बनाने की जिम्मेदारी म्युनिसिपल की है। नतीजा यह है कि रंग-पेंट का रसायन पेड़ों के तनों से भीतर जा रहा है और कहीं कहीं पर पेड़ मर भी रहे हैं। कुछ दिन पहले रायपुर के पर्यावरणप्रेमी नितिन सिंघवी ने मुख्य सचिव को एक चि_ी लिखकर मरने वाले पेड़ों की तस्वीरों सहित आपत्ति दर्ज कराई थी कि पेड़ों के जीवन के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्होंने यह भी लिखा था कि राजधानी के गांधी उद्यान में अशोक के दो पेड़ ऐसे पेंट लगाकर सौंदर्यीकरण करने के बाद मर गए। उन्होंने शिकायत में यह भी लिखा था कि ऐसी खबरें छपी हैं कि भिलाई में पेड़ों पर पेंट करने में 38 लाख रुपए खर्च किए गए। अब मानो शहरों में पेड़ों की बर्बादी काफी न हो, इसलिए शहरों के बाहर भी ऐसा काम किया जा रहा है।
फेसबुक पर एक बैंक अधिकारी स्मिता ने तस्वीरें पोस्ट की हैं कि किस तरह रायपुर से सिरपुर के रास्ते पर हरे भरे पेड़ों के तनों पर बुद्ध बना दिए जा रहे हैं। इतिहास में सिरपुर एक बड़ा बौद्ध केंद्र था. लेकिन वहां के रास्ते में पेड़ों पर ऐसा रसायन पता नहीं उनका क्या नुकसान करेगा। यह काम पर्यटन विभाग ने किया है या किसी और विभाग ने, लेकिन तस्वीरों को देखने वाले लोग तस्वीरों की तारीफ कर रहे हैं. यह समझ लोगों में अभी आई नहीं है कि पेड़ों की अपनी खूबसूरती होती है, उन्हें रंग-रोगन की जरूरत नहीं होती है। और प्रदूषण निवारण मंडल तो सरकार के फैसलों पर कह भी क्या सकता है।
क्या आप बंदरों से परेशान हैं?
छत्तीसगढ़ के वनों में हाथियों की मौजूदगी की तरह ही शहरों में रहने वाले लोग बंदरों से परेशान होते हैं। इनका ठिकाना भी जंगल ही होता है, पर जब आहार की दिक्कत खड़ी होती है तो वे रिहायशी इलाकों का रुख करते हैं। दिल्ली के सचिवालय में तो बकायदा वन विभाग की टीम स्थायी रूप से बंदरों पर नियंत्रण के लिए तैनात है। अपने यहां जब बंदर छतों और आंगन में पहुंचते हैं तब उनसे निपटने का तरीका बंदर और मनुष्य दोनों के लिये खतरनाक होता है। ज्यादातर लोगों को पता नहीं है कि बंदरों पर काबू पाने के लिए वे वन विभाग की मदद ले सकते हैं। इस बात की याद दिलाने के लिए वन विभाग ने एक आम सूचना निकाली है। यदि बंदरों के उत्पात से कोई परेशान है तो वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों को खबर कर सकते हैं। पर, इसके लिए एक निर्धारित प्रारूप में आवेदन देना होगा। अपना नाम-पता तो इसमें लिखना ही होगा, पर यह भी बताना है कि बंदर दिन में कितनी बार आते हैं, वे काले मुंह के है या लाल मुंह के। आने वाले बंदरों की संख्या कितनी रहती है। कब से वह आपके इलाके में मंडरा रहे हैं। क्या बीते कुछ सालों के भीतर उनकी प्रकृति में कोई परिवर्तन आया है, क्या यह बंदर आक्रामक हैं? क्या बंदर ने किसी को काटा है यदि हां तो कौन-कौन सी घटनाएं हुई हैं? काटने की कम से कम एक घटना का विस्तार से ब्यौरा भी देना है।
अब इतनी सारी जानकारी अगर आप हासिल कर सकें तो यह तय मानिए कि आपकी बंदरों से दोस्ती हो जायेगी और वन विभाग से शिकायत करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।
90 विधायकों से मिलने निकल पड़े...
खैरागढ़ ब्लॉक के भीम पुरी निवासी चंद्रशेखर राजपूत का मामला उदाहरण है कि गांव में दबंगों की सरकार चलती है और स्थानीय प्रशासन भी उनके आगे नतमस्तक होता है। चंद्रशेखर को गांव से इसलिए बहिष्कृत कर दिया गया क्योंकि उसने 150 रुपये चंदा देने से मना कर दिया। हुक्का-पानी बंद होने के बाद उसने थाने, तहसील और एसडीएम दफ्तर में शिकायत की, मगर कोई नतीजा नहीं निकला। तब उसने तय कर लिया कि वह साइकिल यात्रा करके प्रदेश के सभी विधायकों के पास पहुंचेंगे और फरियाद करेंगे। अभी करीब 15 दिन ही उसे गांव से निकले हुए हैं। वह बस्तर से लेकर सरगुजा तक साइकिल से पहुंचना चाहते हैं। अब तक वे पूर्व विधायक डॉ रमन सिंह, विधायक देवव्रत सिंह, मंत्री रविंद्र चौबे सहित 8 लोगों से मुलाकात कर चुके हैं और सबको अपनी तकलीफ बता चुके हैं। चंद्रशेखर को लगता है कि जो अधिकारी उन्हें न्याय दिलाने में रुचि नहीं ले रहे हैं वे इन विधायकों की सिफारिश पर काम जरूर करेंगे और उसे वापस गांव वाले मिल-जुल कर रहने की मंजूरी देंगे। अच्छा होगा कोई जनप्रतिनिधि संवेदना के साथ उसकी बात सुने और काम कर दे, जिससे चंद्रशेखर बीच रास्ते से लौट जाये। एक छोर से दूसरे छोर तक विधायकों तक पहुंचने का कष्ट न उठाना पड़े।
भीड़ में भी वैक्सीन जरूरी नहीं
गणेश उत्सव के लिए जारी गाइडलाइन पिछले साल की कॉपी पेस्ट है। तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए पिछली बार की तरह मूर्ति की ऊंचाई, चौड़ाई, पंडाल का आकार, सबका नाम पता मोबाइल नंबर लिखना, 20 से अधिक लोगों का इक_ा ना होना, जैसे कई नियम जो पिछली बार भी लागू किए गए थे, इस बार भी प्रभावी रहेंगे। फर्क यह है कि तब पहली लहर में वैक्सीन नहीं आये थे। और अब बड़ी संख्या में लोगों ने कोविड-19 से बचाव के टीके लगवा लिए हैं। यह बात कुछ हैरान कर सकती है कि विभिन्न जिलों से जो गाइडलाइन जारी हुए हैं उनमें इस बात का कोई जिक्र नहीं है। गाइडलाइन में यह जोड़ा जा सकता था कि इन सार्वजनिक कार्यक्रमों में पहुंचने और आयोजन की इजाजत उनको ही रहेगी, जो टीके लगवा चुके हैं। स्कूल खुलने के चलते आखिर शिक्षकों को टीके लगवाने कहा ही गया है। ऐसे वक्त में जब कोरोना के केस कम हो जाने के कारण बहुत से लोग वैक्सीन लगवाने में रुचि नहीं ले रहे हैं, इस उत्सव का प्रशासन वैक्सीनेशन बढ़ाने में इस्तेमाल क्यों नहीं कर लेता?
जहां मौका मिलता है दुकान सजा लेते हैं !
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पार्टी प्रदेश कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी और उसे फेसबुक पर लाइव दिखाया जा रहा था। अब लोग भी होशियार हो गए हैं जब उन्हें सरकार कहीं दिखती है तो वे सरकार से तरह-तरह की मांग करने लगते हैं। मुख्यमंत्री और उनके मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे और नीचे लोग सरकार से तरह-तरह की मांग कर रहे थे। इस बीच किसी ज्योतिषी/तांत्रिक को भी अपना कारोबार चलाने का रास्ता दिखा, तो उसने भी वहां पर वशीकरण मंत्र जैसी कई बातों को लिखना शुरु कर दिया अपना फोन नंबर डालना शुरू कर दिया और हर तरह की दिक्कत दूर करने का झांसा देने लगा। और तो और एक किसी लडक़ी या महिला ने उसके साथ लाइव वीडियो कॉल का मजा लेने के लिए एक व्हाट्सएप नंबर भी पोस्ट कर दिया गया। लोग भी खूब रहते हैं, जहां मौका मिलता है दुकान सजा लेते हैं !