राजपथ - जनपथ
करोड़ों गंवा चुके पूर्व चेयरमैन
भाजपा के दो ताकतवर लोगों के कारोबारी झगड़े को सुलझाने में पार्टी के दिग्गज नेताओं का पसीना छूट रहा है। संगठन के प्रभावशाली लोगों ने दोनों के साथ बैठक कर मामले को सुलझाने की कोशिश भी की, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया।
हुआ यूं कि एक निगम के पूर्व चेयरमैन ने काफी माल बनाया, और बिलासपुर संभाग के पार्टी के एक बड़े नेता के बेटे के कारोबार में लगा दिया। नेताजी के बेटे का करोड़ों का काम चलता है। चलते कारोबार में निवेश करना फायदेमंद रहता है। सब कुछ ठीक चल रहा था।
कुछ समय बाद नेताजी का देहांत हो गया। पार्टी की सरकार भी चली गई। इसके बाद आफत आनी शुरू हो गई। पहले पूर्व चेयरमैन को संगठन में भी कोई दायित्व नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने दिवंगत हो चुके नेता के कारोबारी बेटे से अपना हिसाब-किताब करने कहा, तो कारोबारी ने हाथ झटक दिए।
दो नंबर के पैसे की कोई लिखा पढ़ी तो होती नहीं है। यह सब कुछ भरोसे पर चलता है। कारोबारी बेटे के हाथ खड़े करने के बाद पूर्व चेयरमैन ने पार्टी के लोगों से मदद मांगी, लेकिन नतीजा सिफर रहा। करोड़ों गंवा चुके पूर्व चेयरमैन का हाल ऐसा है कि वो खुले तौर पर कुछ नहीं कह पा रहे हैं। बड़े नेताओं से भी वो दुखी हैं, और इस वजह से उन्होंने पार्टी के कार्यक्रमों में भी आना जाना तकरीबन बंद कर दिया है।
अब तो पितर लग चुका है
कांग्रेस के सिंधी नेता मायूस है। वजह यह है कि समाज के नेताओं को निगम-मंडल में जगह नहीं मिल पाई है। ऐसा नहीं है कि किसी को पद देने का विचार नहीं है। सिंधी अकादमी का गठन तो समाज के नेताओं को एडजेस्ट करने के लिए ही हुआ है।
निगम-मंडल के लिए एक-दो नाम फाइनल भी हो गए थे, लेकिन जिनका नाम तय हुआ था उन्हें पद न देने के लिए समाज के लोग दाऊजी से मिलने पहुंच गए। फिर क्या था गाड़ी अटक गई।
समाज के कई प्रबुद्ध लोग समय-समय पर दाऊजी से मिलकर समाज को प्रतिनिधित्व देने का आग्रह करते रहते हैं। एक बार तो दाऊजी हंसी मजाक में कह भी चुके हैं कि समाज के लोग जितने पार्टी में हैं, उतने ही वोट कांग्रेस को मिलते हैं। खैर, अब तो पितर लग चुका है। पखवाड़े भर तो कुछ होना नहीं है। शायद दशहरा-दीवाली के बाद यदि कांग्रेस में सब कुछ ठीक चलता रहा, तो समाज के एक-दो लोगों को पद मिल सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
कुछ कल की बात, कुछ आज की
मदन गोपाल पुरोहित जी से मिलिए। उम्र 78 साल है। सन 80 में रायपुर आए थे। जब आए तब से लेकर 6 साल तक मिस्टर (रायपुर) छत्तीसगढ़ रहे। 13 साल की उम्र से बॉडी बनाने के काम में लग गए थे, क्योंकि घर के बुजुर्गों ने कहा था बॉडी बना लो कम से कम चौकीदार बन जाओगे। इनसे मिलकर आज का दिन बन गया। अब वे केमिकल का कारोबार करते हैं. (अखबारनवीस रितेश मिश्रा ने ट्विटर पर पोस्ट किया)
ग्रामीणों के सवाल से सर्वे टीम अवाक
कोरबा वन मंडल के पसरखेत रेंज के कोलगा ग्राम के भूगर्भ में भारी मात्रा में कोयले का भंडार होने का अनुमान है। इस जगह पर सर्वे का काम एक निजी कंपनी को सौंपा गया है। पहले यह कंपनी ड्रिल पद्धति से कोयले का पता लगा चुकी है। करीब 1000 की आबादी वाले इस गांव के लोग यहां पर खदान नहीं चाहते। उनका रोजगार खेती किसानी और वनोपज संग्रह पर ही टिका हुआ है। वे अपने जंगल में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं चाहते। ड्रिल पद्धति से एक बार हुए सर्वे का भी ग्रामीणों ने विरोध किया और कलेक्टर, एसपी को ज्ञापन सौंपा था। हुआ कुछ नहीं बल्कि इस बार सर्वे टीम विस्फोट के जरिए कोयले का पता लगाने के लिए पहुंच गई। ग्रामीणों ने उन्हें बस्ती के भीतर घेर लिया। पुलिस और प्रशासन के कुछ लोग कंपनी की मदद के लिए पहुंच गए। शायद ग्रामीणों पर शासकीय कार्य में बाधा डालने के नाम पर कार्रवाई हो जाती पर गांव वाले भी समझदार निकले। सर्वे के लिए पहुंचे कंपनी के लोगों से और प्रशासन से उन्होंने सवाल किया यह घना जंगल है यहां पर विस्फोट करने से पहले आपने किस-किस की अनुमति प्राप्त की है, कागजात दिखाइए। उनके पास कोई कागज नहीं था। फिर गांव के लोगों ने वन विभाग कि वहां मौजूद अधिकारियों से सवाल किया कि क्या जंगल में विस्फोट करने के लिए आपने कोई अनुमति दी है। वन विभाग ने पहले तो टालना चाहा यह तो सिर्फ सर्वे है इसमें क्या अनुमति। गांव वालों ने कहा विस्फोट से जंगल की जो बर्बादी होगी, पेड़ पौधे झुलस सकते हैं। हमारे घरों में दरार पड़ सकती है, तो इसकी कौन भरपाई करेगा। वन विभाग ने कहा हमारी अनुमति तो नहीं ली गई है। गांव वालों ने फिर समझाया कि आप अनुमति दे भी नहीं सकते हैं। पहले हमारी ग्राम सभा बैठेगी और प्रस्ताव पारित होगा तब जाकर के कंपनी सर्वे के लिए जंगल में कदम रख सकती है। ग्रामीणों के सवाल तीथे थे समझदारी से भरे हुए, जिसकी उम्मीद वहां पहुंची सर्वे टीम, प्रशासन और वन विभाग के अधिकारियों को नहीं थी। सर्वे टीम उल्टे पांव लौट गई।
रेलवे की उदारता भारी पड़ रही
कोविड-19 संक्रमण के बाद रेलवे ने लंबी दूरी की ट्रेनों का अब तक नियमित परिचालन शुरू नहीं किया है, जबकि त्योहार का सीजन शुरू हो चुका है और ट्रेनों में भीड़ भी दिखाई दे रही है। प्रतिदिन चलने वाली ट्रेनों जैसे मुंबई-हावड़ा, पुणे-हावड़ा, उत्कल, गीतांजलि, साउथ बिहार स्पेशल ट्रेनों में रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ जैसे स्टेशनों से कंफर्म टिकट हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है। यात्री 20 से 25 दिन पहले रिजर्वेशन करा रहे हैं तब जाकर कंफर्म टिकट मिल पा रही है। कोरोना से बचाव के लिए रेलवे ने नियम बना रखा है कि यात्रा सिर्फ कंफर्म टिकटों पर की जा सकेगी।
पर कई यात्री टिकट कंफर्म नहीं होने पर भी ट्रेन पर सवार हो जाते हैं। ऐसे यात्रियों का क्या किया जाए, इस पर रेलवे ने कोई नया नियम नहीं बनाया है। पहले से तय नियम के अनुसार वह जुर्माना भरकर सफर तय कर सकता है। टीटीई ऐसा उदारता के साथ कर रहे हैं। इसमें ऊपरी कुछ कमाई की गुंजाइश भी रहती है, जिस पर कोरोना काल के बाद काफी मंदी आई है। पर टीटीई की इस उदारता के चलते कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां उड़ रही है। वैसे भी सभी बर्थ बुक किये जाने के बाद दो गज की दूरी का तो पालन हो ही नहीं रहा है। कोरोना गाइडलाइन का पालन एक औपचारिकता बनकर रह गई है। ऐसे में ट्रेनों का पहले जैसा नियमित नहीं करना, छोटे स्टेशनों पर स्टापेज नहीं देना यात्रियों पर भारी पड़ रहा है।