राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भगत सिंह की पगड़ी का ऐसा इस्तेमाल !
28-Sep-2021 5:41 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भगत सिंह की पगड़ी का ऐसा इस्तेमाल !

भगत सिंह की पगड़ी का ऐसा इस्तेमाल !

वैसे तो दुनिया में लावारिस छोड़ दी गई विरासत पर कोई भी अपना कब्जा ठीक उसी तरह जमा लेते हैं जिस तरह किसी खाली पड़ी हुई जमीन पर कोई भी अपना घर या दुकान बना लेते हैं। लेकिन फिर भी कुछ मामलों को देख कर लगता है कि क्या विरासत पर ऐसा दावा सचमुच सही है? अब जैसे छत्तीसगढ़ भाजपा के एक बड़े नेता ने आज सोशल मीडिया पर भगत सिंह की जयंती पर उन्हें सादर नमन करते हुए एक ऐसी फोटो पोस्ट की है जिसमें भगत सिंह की पगड़ी भाजपा के दो रंगों की बनी हुई दिख रही है। इसी पोस्टर में नीचे भाजपा के चुनाव चिन्ह के पीछे यही दो रंग दिख रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या सिखों की पगड़ी ऐसे दो रंगों के फैशन वाली कभी देखी गई है? और क्या सचमुच ही भगत सिंह के पास किसी किस्म की कोई फैशन करने का कोई वक्त था, या ऐसा उनका कोई शौक था? देश के इतिहास के इस सबसे बड़े शहीद की पगड़ी के ऐसे राजनीतिक रंग हैरान करते हैं। इसके बाद एक कमल फूल थमाना ही बच गया था। दिन भर में दर्जन भर रंगों के कपड़े बदलने वाले नेताओं के लिए ही ऐसी दुरंगी पगड़ी बचाकर रख लेनी चाहिए।

दुर्लभ पेड़ की अकाल मौत

आमतौर पर वनस्पतियों की पहचान और उसके महत्व को लेकर लोगों में जागरूकता कम है। पर आदिवासी समुदाय जंगलों में मौजूद तरह-तरह की प्रजातियों से भली-भांति परिचित हैं। कुछ वर्ष पहले जब किरंदुल में फर्न नाम की एक दुर्लभ प्रजाति के पौधे की तरफ उनका ध्यान गया तो इसके महत्व की चर्चा शुरू हुई। वनस्पति विज्ञानी इसके शोध में लग गये। पता चला कि यह 30 लाख वर्ष पुरानी प्रजाति है, जो डायनासोर के युग में पाया जाता था। यहां कुछ 459 पौधे पाये गये, जिनके बारे में दावा किया जाता है कि इसकी यहां पर एक से दो हजार वर्ष पहले की मौजूदगी है। इन पौधों की रफ्तार बहुत धीमी होती है इसलिये पेड़ के रूप में बढ़ता देखना अद्भुत है। इन 459 पौधों में से एक ने पेड़ का आकार ले लिया, जिसकी ऊंचाई 10 फीट हो गई। राष्ट्रीय औषधि पादप मंडल ने इसके संरक्षण के उपाय शुरू किये। वन विभाग ने इस क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया और इसकी नियमित देखभाल होने लगी। एनएमडीसी ने भी जिम्मेदारी ली कि इस पौधे को बचाया जायेगा क्योंकि यह उसके खनन क्षेत्र में आता है। पर पिछले दिनों यह पौधा टूटकर नष्ट हो गया। स्थानीय ग्रामीण और वनस्पति प्रेमी उसके नष्ट होने से दुखी हैं। यह एकमात्र ऐसा पौधा था जो बढ़ चुका था बाकी तो कम ऊंचाई के पौधे हैं, जिनके पेड़ बनने में कई बरस लग जायेंगे। इन पौधों में कितने बच पायेंगे, इसे लेकर भी कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। ग्रामीण इसके नष्ट होने के लिये वन विभाग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। पर विभाग का कहना है कि बीते दिनों बारिश में पानी का तेज बहाव आया, इस वजह से ऐसा हुआ। फिलहाल टूटे हुए पेड़ के अवशेष को बचेली फॉरेस्ट रेंजर के दफ्तर में रखा गया है। हजारों किस्म के औषधीय गुणों वाले पौधे-पत्तियां, पेड़ छत्तीसगढ़ के जंगलों में हैं, पर यह दुर्लभतम है। 

माइनिंग अफसर तस्करों के साथ?

बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के गम्हरिया गांव में रात के वक्त भीड़ सडक़ पर उतर गई। अवैध रेत उत्खनन कर ओवरलोड हाईवा दौड़ाने के कारण सडक़ों की हालत खराब हो रही थी, लगातार शिकायतों के बाद भी माइनिंग अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे थे। कुछ दिन पहले तो एबुंलेंस में ले जाई जा रही एक बीमार पंडो बालिका की जाम में फंसने से मौत भी हो गई। उन्होंने हाईवा रोक लिये। जाम की खबर मिलने पर प्रशासन को मिली। एक माइनिंग इंस्पेक्टर को सुलह के लिये भेजा गया। ग्रामीणों को लगा अब होगी तगड़ी कार्रवाई। आखिर वे सडक़ पर आ गये हैं। मगर इंस्पेक्टर ने हाईवा के कागजात देखे और कह दिया सब सही है। उन्होंने कोई भी एक्शन लेने से इंकार कर दिया। इन दिनों बारिश के कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रेत खनन पर रोक लगाई है। भारी वाहनों को नदी में उतारने पर तो स्थायी रोक है। माइनिंग इंस्पेक्टर के रवैये को देखकर ग्रामीण हैरान रह गये। उनकी रेत माफिया के बीच साठगांठ रहती है यह तो उनको पता था लेकिन खुलेआम ग्रामीणों की भीड़ की परवाह नहीं करते हुए वे उसकी तरफदारी करेंगे ऐसा अंदाजा नहीं था। माइनिंग अफसर की शह मिलने पर अवैध रेत ले जा रहे हाईवा मालिकों के हौसला बढ़ा। इन्होंने ग्रामीणों को धमकी दे डाली कि रास्ता नहीं खोलेंगे तो गोली चला देंगे। मामला बिगड़ता देख पुलिस ने हस्तक्षेप किया और ग्रामीणों की शिकायत पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की।

हालांकि ऐसा लगता नहीं कि इस एफआईआर की वे परवाह कर रहे होंगे। माइनिंग, एक्साइज फूड आदि कुछ ऐसे विभाग हैं जो कलेक्टर के सीधे नियंत्रण में होते हैं। माना जाता है कि इन विभागों में जो कुछ भी काला-पीला होता है सब उनकी जानकारी में रहता है। अब यहां के कलेक्टर, पंडो आदिवासियों की लगातार मौत की वजह से बदल दिये गये हैं। नये कलेक्टर अवैध ओवरलोड रेत गाडिय़ों पर रोक लगायेंगे या नहीं, यह अब पता चलेगा।

कोरोना काल में बेहतर पढ़ाई !

कोरोना संक्रमण के फैलाव और लॉकडाउन के दिनों में बच्चों को घरों में ऑनलाइन रहकर पढऩा पड़ा। बच्चों के शैक्षणिक स्तर और पढ़ाई की गुणवत्ता पर इसका क्या असर पड़ा, इस पर एक सर्वेक्षण हाल ही में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् ने कराया। यह सर्वेक्षण पूरे प्रदेश के 20 लाख से ज्यादा बच्चों के बीच हुआ और शिक्षकों को यह काम सौंपा गया था। इस सर्वे ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को चौंका दिया है। इस सर्वे में यह पाया गया कि 73.34 फीसदी बच्चों की पढ़ाई का स्तर अच्छा रहा मगर 28.66 प्रतिशत को अगली कक्षा में प्रवेश के लायक नहीं किया गया। उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि बच्चों ने घर बैठे अच्छी पढ़ाई की। अब स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से फरमान जारी हो गया कि फिर से सर्वेक्षण किया जाये। इससे शिक्षकों में नाराजगी है। कर्मचारी संगठनों ने स्कूल शिक्षा मंत्री से शिकायत की है कि बार-बार एक ही ऊबाऊ काम में लगाकर उन्हें परेशान नहीं किया जाये।

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