राजपथ - जनपथ
गब्बर की शराबबंदी के लिये डिमांड
शराबबंदी पर फैसला जैसे-जैसे टलता जा रहा है लोग इसके विरोध में प्रदर्शन और धरना भी दे रहे हैं। भाजपा गंगाजल लेकर ली गई शपथ की याद दिलाती है। आम आदमी पार्टी जो इस समय प्रदेश में अपनी जमीन तैयार करने की कोशिश कर रही है उसके आंदोलन, प्रदर्शनों में यह प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। पर, सरकार को कुछ लोग बिना सामने आये भी उनके वादे को चेतावनी की भाषा में याद दिला रहे हैं। गरियाबंद के राजिम जिले के होटल, ठेलों और दुकानों पर गब्बर के पम्फलेट लगे हैं। ये गब्बर कौन हैं, नाम नहीं लिखा है पर इसमें मांग की गई है कि छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस पर 1 नवंबर को मुख्यमंत्री पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर अपना वादा पूरा करें। हमारी माता, बहनों के साथ हो रही हिंसा, अत्याचार और सडक़ दुर्घटनाओं का कारण नशा ही है।
यहां तक तो ठीक है लेकिन इसके बाद गब्बर स्टाइल में चेतावनी दी गई है कि 1 नवंबर के बाद भी शराब दुकानें चालू रहीं तो दुकानों में तोडफ़ोड़, आगजनी और लूटपाट की घटनायें शुरू हो सकती है। आखिरी में दी गई चेतावनी के चलते ही, लगता है गब्बर ने अपना नाम-पता पम्फलेट में नहीं डाला।
छत्तीसगढ़ सरकार पर इस वादे को पूरा करने का दबाव भी दिख रहा है। इसीलिये सामाजिक संगठनों के साथ शराबबंदी पर सुझाव देने के लिये बैठक भी कल रखी गई। मोटा सुझाव यही निकला है कि दुकानें कम की जायें, खोलने का समय कम हो। जिन राज्यों में शराबबंदी लागू है, लागू होने के बाद विफल हो गई है वहां एक बार फिर दौरा किया जाये, अचानक बंद नहीं किया जायेगा वरना स्वास्थ्य गत समस्या खड़ी होगी...आदि। लगता है कि कुछ समय पहले आबकारी मंत्री कवासी लखमा के मुंह से अनायास निकली बात ही सामने आयेगी कि चुनाव से 6 माह पहले बंद कर देंगे।
बीजेपी के ओबीसी नेता आगे किये जायेंगे?
धर्मांतरण को छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी समस्या बताकर जगह-जगह आंदोलन कर रही भाजपा के पास बताया जा रहा है कि अगले चुनाव के लिये एक प्लान बी भी है। पार्टी का एक वर्ग मानता है कि धर्मांतरण, कश्मीर, पाकिस्तान, राम मंदिर आदि मुद्दों पर राष्ट्रीय रणनीतिकारों का जोर भले हो पर छत्तीसगढ़ की परिस्थितियां दूसरी हैं। लोगों के सामने अब भी पटवारी, तहसील ऑफिस का भ्रष्टाचार, नक्शा पास कराने में होने वाली दिक्कत, बिजली कटौती, बदहाल सडक़ें, नेता, अधिकारियों और ठेकेदारों में बंदरबाट जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं। इस समय छत्तीसगढिय़ा, किसानी और गांव, गोबर के मुद्दे की तोड़ खोजना जरूरी है। खासकर भाजपा ने जब कह दिया हो कि अगले चुनाव में सीएम का कोई चेहरा नहीं होगा।
सूत्र बताते हैं कि अब एक सूची बीजेपी में बन रही है और उन्हें सामने करने की बात हो रही है, जिनका चेहरा छत्तीसगढिय़ा किसान जैसा हो। इनमें रमेश बैस, जो फिलहाल झारखंड के राज्यपाल हैं के अलावा सांसद विजय बघेल, चंदूलाल साहू, मधुसूदन यादव, संतोष पांडे, नारायण चंदेल, पूनम चंद्राकर, मोहन चोपड़ा, प्रह्लाद रजक, भैयालाल राजवाड़े, ओपी चौधरी जैसे करीब दो तीन दर्जन नाम हैं। इन्हें अगले चुनाव से पहले ज्यादा सक्रिय किया जा सकता है। बताते हैं जगदलपुर चिंतन शिविर में इस मुद्दे पर भी चर्चा हो चुकी है।
स्कूल में हाजिरी पर गिफ्ट
उत्तरी छत्तीसगढ़ में खूबसूरत पहाडिय़ों के बीच बसे मैनपाट के जामझरिया की प्राथमिक शाला की तीन साल पहले तब मीडिया में चर्चा हुई थी, जब मई महीने में हुई गर्मी की छुट्टियों के दौरान यहां के एक शिक्षक अरविंद गुप्ता ने अपने भतीजे के साथ मिलकर स्कूल पर रंग-बिरंगी चित्रकारी कर पढ़ाई के माहौल को खुशनुमा बनाया था। अब यह स्कूल एक बार फिर चर्चा में है। लॉकडाउन के बाद लगातार शालायें बंद थीं। खुलने के बाद भी बच्चों में रोजाना आने की रुचि कम दिख रही है। अब यहां के शिक्षकों ने स्कूल में बच्चों के पहुंचने के लिये अनोखा ऑफर दिया है। जो बच्चे हफ्ते में पूरे दिन स्कूल आयेंगे उन्हें खिलौने, किताबें, जूते, कपड़े आदि गिफ्ट किये जायेंगे। इसका असर यह हुआ कि बच्चों की दर्ज संख्या बढ़ गई। इसी तरह के पुरस्कार आंतरिक मूल्यांकन व सामान्य ज्ञान की प्रतिस्पर्धा में भी दिये जाते हैं। स्कूल में पढऩे वाले ज्यादातर बच्चे आदिवासी मंझवार जाति के हैं, जिनमें शिक्षा का अनुपात कम है। यह संरक्षित वर्ग भी है। शिक्षकों की इस पहल की राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हो चुकी है। मुख्यमंत्री, मंत्री और कलेक्टर उन्हें कई बार सम्मानित कर चुके हैं। ऐसे समय में जब शिक्षक किसी शहर के आसपास या अपने घर के करीब सुविधाजनक स्कूल में तबादले के लिये जोर लगाते रहते हैं, उनकी इस कोशिश को दूसरे स्कूलों के सामने उदाहरण के रूप में रखा जा सकता है।