राजपथ - जनपथ
हसदेव अरण्य के दफ्तर में बापू का कैलेंडर..
महात्मा गांधी ने कहा था- ‘धरती के पास सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त है, किंतु किसी के लालच के लिए नहीं। मुझे प्रकृति के अतिरिक्त किसी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं है, उसने कभी भी मुझे विफल नहीं किया है। जब तक हम प्रकृति के विरुद्ध हिंसा को रोकने वाला पारिस्थितिकी आंदोलन खड़ा नहीं करेंगे, तब तक अहिंसा का सिद्धांत मानव संस्कृति की नीति का केंद्र नहीं बनेगा।’
बापू को समर्पित छत्तीसगढ़ सरकार का यह कैलेंडर हसदेव अरण्य के एक सरकारी भवन में लगा है। इस कैलेंडर में बापू के लिखे एक-एक शब्द गौरतलब हैं। यह संयोग है कि प्रकृति को बचाने हसदेव अरण्य के आदिवासी आज से अहिंसक आंदोलन कर रहे हैं। (सोशल मीडिया से)
बापू की कुटिया का उद्घाटन और संचालन
छत्तीसगढ़ के तीन शहर रायपुर, नया रायपुर और बिलासपुर स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल हैं। इस परियोजना पर अफसरों का पूरा नियंत्रण है, जनप्रतिनिधियों की यहां तक कि महापौर और विधायकों की भी कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में कोई जवाबदेही इन पर बनती नहीं है। दूसरे राज्यों की स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की देखा-देखी छत्तीसगढ़ के तीनों शहरों में बापू की कुटिया प्रोजेक्ट भी शामिल है। रायपुर नगर निगम के सभी जोन में एक-एक बापू की कुटिया बनाने का फैसला चार साल पहले लिया गया था। इनमें से अधिकांश तो बन गये, कमरे खड़े हो गये। जोर-शोर से उद्घाटन कर दिया गया, पर अब इसके रख-रखाव पर किसी का ध्यान नहीं है। इसे ठेके पर देने की योजना बनाई गई थी, जिसमें संचालक को जुंबा डांस (जो स्मार्ट सिटी योजनाकारों का सबसे पसंदीदा खर्च है), किटी पार्टी की छूट भी दी जाने वाली थी। हालांकि योगा, आर्ट चिल्ड्रेन पार्टी की योजना भी थी। पर हाल यह है कि अधिकांश कुटिया बंद मिल रहे हैं। शुरू-शुरू में बुजुर्ग योगा, ध्यान, मेल-मुलाकात के लिये यहां इक_े होते थे पर अव्यवस्था के कारण अब लोग यहां नहीं पहुंचते। कुछ तो आवारा कुत्तों का सराय भी बन गये हैं।
पर इससे कोई सबक लिया गया हो, ऐसा नहीं लगता। रायपुर में विफलता के बावजूद बिलासपुर में भी बापू की कुटिया यहां के स्मृति वन में तैयार की गई हैं। आज इसके उद्घाटन का कार्यक्रम रखा गया है। बजट है सो खर्च कर दिया गया। भवन अभी तो अच्छे दिख रहे हैं, पर अगले 2 अक्टूबर को मालूम होगा कि कुटिया बुजुर्गों के किसी काम की रही या नहीं।
गांधीवादी रास्ते से हटी शराब दुकान...
एक बार शराब दुकान खुलने के बाद उसे हटाने की मांग उठती है तो यह जिला प्रशासन और आबकारी विभाग के लिये नाक का सवाल बन जाता है। वे जल्दी सुनने के लिये तैयार नहीं होते। पर धमतरी के नागरिकों ने एक माह का लंबा आंदोलन कर सफलता पाई। यहां के सोरिद वार्ड में 1 सितंबर से शराब दुकान के सामने उसे हटाने की मांग पर धरना शुरू किया गया। तरीका गांधीवादी था। कोई उत्पात नहीं। लोग आते रहे, धरने पर बैठते रहे। महिलायें गांधी की तस्वीर लेकर खड़ी हो गईं और शराब खरीदने वालों की तिलक लगाकर आरती उतारने लगीं। कुछ दिन पहले स्कूली बच्चों ने यूनिफॉर्म में ब्लैक बोर्ड लगाकर क्लास शुरू कर दी थी, जिसमें द से दारू, च से चखना..., पढ़ाकर विरोध जताया गया। मीडिया में इन घटनाओं को खूब कवरेज मिला था। शराब पीने, खरीदने वाले भी शर्मिंदा हो रहे थे।
आखिरकार गांधी जयंती के एक दिन पहले आबकारी विभाग ने इस दुकान पर ताला लगा दिया है। अधिकारियों ने धरना देने वालों से कहा कि अब तो पंडाल समेट लीजिये, हम शराब दुकान कहीं और ले जायेंगे। अधिकारियों की बात आंदोलनकारियों को जंच गई, पर अभी पूरा यकीन नहीं है। इसीलिये धरना जारी है। जब तक यह दुकान खाली नहीं कर दी जाती और बोर्ड हटा नहीं दिया जाता- बैठेंगे। आज गांधी जयंती के दिन भी उनका विरोध जारी रहा।