राजपथ - जनपथ
चर्चा तो यह भी है कि अब...
टीम नड्डा की घोषणा के बाद से प्रदेश भाजपा में खुसुर-फुसुर हो रही है। वैसे तो प्रदेश भाजपा के 7 नेताओं को जगह मिली है। पूर्व सीएम रमन सिंह दूसरी बार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने हैं। सरोज पाण्डेय, अजय चंद्राकर, और लता उसेंडी को कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, पवन साय, और सांसद अरुण साव को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में रखा गया है।
पदाधिकारी, और कार्यसमिति सदस्य को प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है। चूंकि सरोज राष्ट्रीय महामंत्री रह चुकी हैं, इसलिए उन्हें कार्यसमिति में लिया जाना अस्वाभाविक नहीं था। नेता प्रतिपक्ष, और महामंत्री (संगठन) को तो विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में जगह मिल ही जाती है। मगर अजय चंद्राकर का नाम कई लोगों को चौंका रहा है।
अजय तेजतर्रार नेता माने जाते हैं। और जब विधायक दल के नेता का नाम तय हो रहा था तब भी अजय प्रमुख दावेदार थे। तब रमन सिंह की पसंद पर कौशिक के नाम पर मुहर लग गई। इसके बाद वो प्रदेश अध्यक्ष की पद की दौड़ में भी थे। तब उनकी दावेदारी यह कहकर कमजोर कर दी कि नेता प्रतिपक्ष, और अध्यक्ष एक ही समाज से होने से अच्छा मैसेज नहीं जाएगा।
और जब टीम नड्डा की कार्यकारिणी बन रही थी तब चर्चा है कि उन्हें रोकने के लिए पार्टी के एक ताकतवर नेता ने ओपी चौधरी का नाम भी आगे बढ़ाया था। चूंकि नड्डा प्रदेश के प्रभारी रहे हैं, और अजय चंद्राकर की उपयोगिता जानते हैं। यही वजह है कि उन्हें कार्यसमिति में लेने में परहेज नहीं किया। इससे परे पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय का सूची में नाम नहीं होना उनके समर्थकों को अखर रहा है। रामविचार नेताम और रेणुका सिंह को भी कार्यसमिति में जगह नहीं मिलने से विशेषकर सरगुजा संभाग के पार्टी कार्यकर्ता हैरान हैं।
रामविचार आदिवासी मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। जबकि रेणुका प्रदेश से अकेली केन्द्रीय मंत्री हैं। यही नहीं, प्रदेश कोषाध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल को लेकर चर्चा रही कि वो कार्यसमिति में जगह पाने के लिए काफी कोशिश कर रहे हैं। मगर पार्टी ने उन्हें चिंतन शिविर से भी दूर रख एक तरह से संकेत दे दिया था कि पार्टी के भीतर उनकी भूमिका सीमित हो गई है। चर्चा तो यह भी है कि अब गौरीशंकर के सहयोगी नंदन जैन को पूरे कोष का जिम्मा सौंपा जा सकता है। देखना है कि आगे क्या होता है।
रेस्ट हाउस में डॉग की खातिरदारी
सरकारी गेस्ट हाउस में आम लोगों को ठहरने की इजाजत नहीं मिलती। पर यदि प्रशासन या राजनीति से कोई वजन रखता है तो वह अपने कुत्तों को भी वहां ठहरा सकता है। जशपुर के विश्राम गृह में अंग्रेजी नस्ल के तीन कुत्ते ठहराये गये थे। उनके लिये बकायदा एक कमरा बुक किया गया था। उन्हें जो लोग लेकर आये, उनके लिये भी अलग कमरे बुक थे। रेस्ट हाउस ही नहीं। इसके बाद उन्हें सर्किट हाउस में भी एक दिन ठहराया गया। फिर, उन्हें आगे की सफर पर ले जाया गया। बताया जाता है कि ये कुत्ते एक प्रशासनिक अधिकारी के थे, जो इन्हें अपने घर भेज रहे थे लेकिन एक कुत्ते को स्वास्थ्य संबंधी कोई इश्यू था, इसलिये सभी को रोका गया। पूरा इंतजाम सरकारी था, इन कुत्तों से बड़ा कोई दूसरा वीआईपी इस दौरान रेस्ट हाउस, सर्किट हाउस में रुकने के लिये आया नहीं, इसलिये कोई हंगामा नहीं हुआ।
बात केवल ट्रांसफर पोस्टिंग की नहीं
स्कूल शिक्षा विभाग ही क्यों, तमाम सरकारी महकमों में ट्रांसफर, पोस्टिंग और विभागीय जांच रफा-दफा करने के नाम पर खूब लेन-देन की शिकायतें हमेशा रही हैं। सरकार कोई भी हो, कभी रेट कम चलता है, कभी ज्यादा। लगातार दो साल से ट्रांसफर खुला, इसलिये विशेष प्रकरण बताकर ही तबादले किये जा रहे हैं। तबादले जहां नहीं हो पा रहे वहां अटैचमेंट का सहारा लिया जा रहा है। न काम करने वालों को दिक्कत है, न कराने वालों को। परेशानी वहां होती है जब सत्ता पक्ष से जुड़े विधायक और जनप्रतिनिधियों की सिफारिश किनारे कर अधिकारी, लिफाफे को ज्यादा महत्व देने लगते हैं। स्कूल शिक्षा विभाग में ऐसा हो रहा होगा। सरकार का सबसे बड़ा विभाग है। गांव-गांव में स्कूल हैं। हजारों की संख्या में शिक्षक और दूसरे स्टाफ हैं। पर जरा सोचिये, क्या सिर्फ शिक्षा विभाग में ही ऐसा हो रहा है, बाकी विभागों में सब ठीक चल रहा है? मंत्री के बचाव में उतरे स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कह रहे हैं कि ट्रांसफर तो चीफ सेक्रेटरी कर रहे हैं। यह भी कहा कि घर हो पार्टी, नीलाम करेंगे तो विरोधी को फायदा तो होगा। मतलब यह है कि विधायकों का मोर्चा खोलना और इसका सार्वजनिक करना बताता है कि बात केवल ट्रांसफर पोस्टिंग की नहीं है। कई लोग तो पूछने लगे हैं कि यदि भ्रष्टाचार के चलते मंत्रिमंडल से प्रेमसाय का पत्ता आगे कभी कट गया तो उनकी जगह पर सरगुजा से क्या बृहस्पति सिंह लिये जायेंगे?
55 रुपये लीटर केरोसिन
उज्ज्वला योजना के तहत गरीबों को मुफ्त रसोई गैस दिये गये हैं। पर सिलेंडर रिफिलिंग की कीमत के चलते इसे वे नियमित नहीं भरा पाते हैं। ग्रामीण इलाकों में तो फिर भी कहीं से लकड़ी से ईंधन की जरूरत पूरी की जा सकती है पर शहरी इलाकों की गरीब बस्तियों में केरोसिन की मांग बनी हुई है। जब सारे पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़े हुए हैं तब शायद किसी को अंदाजा न हो कि केरोसिन आजकल किस दाम पर मिल रहा है। कोरिया जिले की सकारिया गांव की सरकारी राशन दुकान में यह 55 रुपये लीटर बिक रहा था। गैस सिलेंडर से खाना पकाना सस्ता पड़ता है मगर जो लोग एक हजार रुपये एकमुश्त खर्च नहीं कर पाते वे क्या करें। उन्हें केरोसिन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। फिलहाल, फूड विभाग को शिकायत मिली तो वह राशन दुकान निलंबित कर दी गई है, पर सवाल यह है कि क्या कोई एक ईंधन निर्धन परिवारों के लिये सहज उनकी पहुंच के भीतर के दाम में मिल पायेगा, या फिर उन्हें बिना पकाये हुए भोजन तैयार करने का कोई तरीका ढूंढना पड़ेगा?