राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चिट्ठी और सुकमा का नाता
28-Oct-2021 5:59 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चिट्ठी और सुकमा का नाता

चिट्ठी और सुकमा का नाता

सुकमा एसपी सुनील शर्मा के लिए विभागीय खामी से बाहर निकली एक गोपनीय चिट्ठी परेशानी का सबब बन गई है। 2017 बैच के आईपीएस शर्मा पहली बार एसपी बने  और उनकी पोस्टिंग के चार माह के भीतर धर्मांतरण से जुड़े गंभीर मामले के पत्र के सार्वजनिक होने के बाद से विपक्षी भाजपा के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। सुनते हैं कि पत्र में लिखे शब्दों को भाजपा प्रचारित कर रही है कि सरकारी कागजात में धर्मांतरण को स्वीकार किया गया है। वैसे सुकमा का चिट्ठी के जरिए विवादों से पुराना नाता रहा है। जितेन्द्र शुक्ला को भी सरकार ने मंत्री को प्रोटोकॉल से परे पत्र लिखने के मामले में सुकमा से हटा दिया था। धर्मांतरण के मसले पर भाजपा, सरकार पर हमलावर है. ऐसे में शासकीय पत्र के लीक होने से शीर्ष अफसर और सरकार नाराज हो गए हैं। खबर है कि दीपावली के बाद राज्य सरकार नए जिलों में ओएसडी पदस्थ करने के साथ ही कुछ जिलों  के एसपी को इधर-उधर कर सकती है। चिट्ठी के चलते सुकमा एसपी को बदलने की चर्चाएं प्रशासनिक हल्के में जोर पकड़ रही हैं।

कांग्रेसी नशे का समर्थन करें या विरोध?

एक नवंबर से कांग्रेस का सदस्यता अभियान शुरू हो रहा है, जो मार्च तक चलेगा। सदस्यता फॉर्म के साथ एक शपथ पत्र भी होगा जिसमें बताना है कि मैं नियमित रूप से खादी धारण करता हूं, शराब और मादक पदार्थों से दूर रहता हूं। सामाजिक भेदभाव और असमानता को खत्म करने में विश्वास रखता हूं।

एक पुराने कांग्रेसी की टिप्पणी थी, शुक्र है ये सब शर्तें नई सदस्यता लेने वाले पर लागू होनी है। वरना हमें ये शपथ लेनी पड़ती तो शायद सदस्य बन ही नहीं पाते। अब देखिये कांग्रेस सदस्यता के लिये नशे से दूरी  जरूरी है, दूसरी तरफ हमारे छत्तीसगढ़ से ही प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद केटीएस तुलसी साहब ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल ही दायर कर दी है कि ड्रग्स की छूट दी जानी चाहिये क्योंकि यह दर्द और तनाव कम करता है। हो सकता है तुलसी जी की बातें ठीक हों, पर अनेक लोग मानते हैं कि मानसिक तनाव कम करने के लिये नशे की जगह अध्यात्म, प्रेरक विचार, संकल्प, इच्छाशक्ति ज्यादा काम की चीज है। इस याचिका को आधार बनाकर कहीं सदस्यता के नियम को ही चुनौती न दे दी जाये।

अमरकंटक की तराई पर फिर विवाद

मध्यप्रदेश का बंटवारा हुआ तो अमरकंटक ही नहीं बल्कि पूरे शहडोल जिले के लोग छत्तीसगढ़ में शामिल होना चाहते थे। अमरकंटक का मुख्य मंदिर मध्यप्रदेश के हिस्से में है जबकि अन्य कई दर्शनीय स्थल माई की बगिया, राजमेरगढ़, जलेश्वर धाम आदि छत्तीसगढ़ में आते हैं। पर सीमा को लेकर आये दिन विवाद होता है। जलेश्वर मंदिर पर अमरकंटक की नगर पंचायत द्वारा मकान नंबर की सील टांक देने से यह विवाद फिर खड़ा हो गया है। हालांकि राजस्व रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ के पक्ष में दुरुस्त है फिर भी जिस तरह से यह मुद्दा बार-बार उठ जाता है कोई स्थायी हल निकालना दोनों राज्यों के लिये जरूरी है। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजमेरगढ़ की यात्रा की थी। मैकल पर्वत श्रृंखला की यह सबसे ऊंची जगह है, जहां पहुंचा जा सकता है। उन्होंने इसे इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के अनुरूप संवारने की घोषणा की थी। भाजपा शासनकाल में, तत्कालीन धर्मस्व व संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी इस जगह के विकास के लिये पहल की थी। पर उनके सब काम अधूरे रह गये, खंडहरनुमा अवशेष दिखाई देते हैं। अमरकंटक के ठीक नीचे छत्तीसगढ़ के अनेक दर्शनीय स्थल आज उपेक्षा के शिकार हैं जबकि गौरेला ही नहीं पूरे राज्य के लोगों का अमरकंटक से खासा लगाव है। जीपीएम और बिलासपुर जिले के लोग इस क्षेत्र को उसके वैभव के अनुरूप संवारने के लिये बार-बार गुहार लगाते रहे हैं, पर सरकार बदल गई, कुछ नहीं हो रहा है।

मैनपाट के बाद कारीपाट के टीचर की बात..

प्रदेश में वैसे को कोरोना काल के दौरान छोटे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बनाये रखने के लिये बहुत से कदम उठाये गये थे, जैसे मोहल्ला क्लास, बुल्टू, पढ़ाई तुहंर द्वार। ये काम निर्देश पर शिक्षकों ने किये। पर अपने स्तर पर रुचि लेकर बच्चों को स्कूल की ओर खींचने का काम कोई जुनूनी शिक्षक ही कर सकता है। पिछले महीने 30 सितंबर को इस कॉलम में मैनपाट के जामझरिया स्कूल के शिक्षक अरविंद गुप्ता का जिक्र हुआ था। कोरोना के बाद स्कूल आने की दुबारा आदत डालने के लिये उन्होंने अपने खर्च से दीवारों में रंग बिरंगी तस्वीरें उकेरीं, महीने में पूरे दिन स्कूल आने वाले बच्चों को जूते कपड़े आदि गिफ्ट देना शुरू किया। असर यह हुआ कि वहां उपस्थिति 100 फीसदी हो गई है।

कुछ इसी तरह का काम बलौदाबाजार जिले के बिलाईगढ़ ब्लॉक के कारीपाट स्कूल के शिक्षक विनोद डडसेना कर रहे हैं। उन्होंने स्कूल की दीवारों पर बच्चों को लुभाने वाली आकर्षक कलाकृतियां उकेरी हैं। पहाड़े और सूक्तियां लिख डाले हैं। यहां ऐसा करना ज्यादा जरूरी इसलिये भी था, क्योंकि कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों को बंद करने का फरमान निकालने में सरकार देरी नहीं करती। शिक्षक विनोद की कोशिश से यहां की दर्ज संख्या 3 से बढक़र 20 हो चुकी है। इनकी कोशिश को देखते हुए विभाग ने एक और शिक्षक की नियुक्ति यहां कर दी है। पहले वे अकेले ही पहली से पांचवी तक के बच्चों को पढ़ा रहे थे। निजी स्कूलों से प्रतिस्पर्धा के लिये इस समय प्रदेश में अनेक स्वामी आत्मानंद स्कूल खोले गये हैं, पर बिना किसी सरकारी मदद के भी निजी स्कूल, पब्लिक स्कूल के बच्चों को सरकारी स्कूलों की ओर आकर्षित किया जा सकता है, यह इसका उदाहरण है। शासन के स्तर पर ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

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