राजपथ - जनपथ
नाम में क्या रखा है?
हिंदुस्तान में जहां जात पात खत्म करने की बात होती है वहां भी देश के हर शहर-कस्बे में बहुत से इलाकों का नाम-जात पर रखा हुआ दिखता है। बहुत पहले राजधानी रायपुर में जेल रोड पर एक पंजाबी लाइन हुआ करती थी, बाद में शायद उसका नाम बदल गया। लेकिन सिंधियों की बहुत सी बस्तियों में सिंधी कॉलोनी या सिंधी बस्ती नाम चलन में आ जाता है, फिर चाहे वह औपचारिक रूप से रखा गया हो या नहीं। अभी रायपुर के एक बोर्ड की फोटो राजीव चक्रवर्ती ने फेसबुक पर पोस्ट की है जिसमें सिंधी चाल और बंगाली पारा, दो इलाकों के नाम दिख रहे हैं। इनसे परे बनियापारा, ब्राह्मणपारा, सतनामीपारा जैसे मोहल्ले छत्तीसगढ़ के बहुत से शहरों में हैं। एक वक्त था जब इस इलाके में मोहल्ले की किराना दुकान आमतौर पर सिंधी चलाते थे, और उन्हें किराना दुकान के बजाय सिंधी दुकान कहा जाता था। जब सरकार और म्युनिसिपल ही किसी इलाके के जाति के नाम को मान्यता देते हैं, तो फिर वह नाम जल्द टलने वाला भी नहीं रहता। खैर जो भी ही, रायपुर में मरने पर सबसे अधिक लोगों को मारवाड़ी श्मशान नसीब होता है।
सदस्यता अभियान के मायने
सदस्य संख्या से चुनाव में बहुत फायदा मिलता हो, ऐसा लगता नहीं। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनाव में 15 सीटों पर सिमट गई थी। तब दावा किया जा रहा था कि प्रदेश में पार्टी के 34 लाख सदस्य हैं। उस चुनाव में कांग्रेस सदस्यों की संख्या 6 लाख के आसपास थी। बीते साल भी 6 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य था। अब 1 नवंबर से कांग्रेस ने जो सदस्यता अभियान शुरू किया है वह मार्च तक चलेगा। इस दौरान 10 लाख नये सदस्य बनाने का लक्ष्य है। बूथ मैनेजमेंट, प्रचार और चुनाव प्रबंधन की दूसरी जरूरतों के लिये पार्टी को कार्यकर्ता तो चाहिये पर बिना रीति-नीति को जाने ही, सत्ता के प्रभाव में और दूसरे निहित उद्देश्यों के चलते सदस्यता लेने वाले यह काम शायद नहीं कर पायें। वैसे पिछले कई चुनावों में देखा गया है कि इस काम के लिये भी युवाओं को हायर किया जाता है। भाजपा सवाल कर रही है कि कांग्रेस में संगठन चुनाव होते ही नहीं तो सदस्यता अभियान चलाने की क्या मतलब रह जाता है। पर हो सकता है कांग्रेस अगले चुनाव से पहले भाजपा का रिकॉर्ड तोडऩा चाहती हो।
किसान घर का बेटा होना काम आया...
आईपीएस रतनलाल डांगी अपनी बॉडी फिटनेस और योग की वीडियो अक्सर सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं। समय-समय पर वे प्रेरक विचार भी रखते हैं, जिसे खबर की तरह अख़बारों में इभी जगह मिलती है। इस बार उन्होंने एक ऐसी पोस्ट डाली है जो उनके किसान परिवार से होने को सार्थक करता है। उन्होंने अपने बंगले में एक गाय पाल रखी है। दीपावली की देर रात जब सारे सहायक अवकाश पर थे गाय को प्रसव पीड़ा हुई। लक्ष्मी जी की पूजा करके उठे डांगी खुद ही प्रसव कराने में जुट गये और उनकी गाय ने एक स्वस्थ बछिया को जन्म दिया। वीडियो में दिखाई दे रहा है कि गाय किस तरह पीड़ा में कराह रही है और जैसे ही बछिया को खींचकर उन्होंने बाहर निकाला गाय की आवाज से पता चला कि उसे राहत मिली। अगले दिन गोवर्धन पूजा थी। अपनी मान्यताओं के अनुरूप डांगी ने बछिया की पूजा की और कहा- परिवार में लक्ष्मी आई है।
एसपी को तो दूसरों को रोकना चाहिये...
हाथियों के साथ मनोरंजन का खेल गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही के एसपी त्रिलोक बंसल व उनकी पत्नी पर भारी पड़ गया। हाथियों की उन्मुक्त आवाजाही और मानव को उनसे बचाने के लिये जारी सामान्य निर्देशों का पालन कराना वन विभाग के अलावा प्रशासन और पुलिस का भी है। अमारू के जंगल में हाथियों का दल होने की खबर मिलने पर बंसल उनका दर्शन करने के लिये निकल पड़े। इतना ही नहीं, जैसी खबर है वे वीडियो भी बनाने लगे। उन्होंने कायदा तोड़ा, जिसका खामियाजा यह हुआ कि उनकी जान खतरे में पड़ गई थी। वीडियो, फोटो शूट के चक्कर में हाथियों के हमले के छत्तीसगढ़ में कई लोग पहले शिकार हो चुके हैं। ऐसे में हाथी प्रभावित जिले की कमान संभाल रहे कप्तान का सतर्क नहीं होना कतई समझदारी की बात नहीं। लोग वीडियो, फोटो शूट कर रोमांच तो अनुभव करते हैं लेकिन यह शांत स्वभाव के इस जानवर को सताये जाने और आक्रमण के लिये उकसाये जाने की प्रक्रिया है। यह तो अच्छा हुआ कि हाथियों ने सिर्फ दौड़ाया और एसपी को चोट हाथी के वार से नहीं, गिरने से लगी। अब वे स्वस्थ भी हो रहे हैं, हमारी कामना भी है कि वे जल्द चंगे होकर वापस ड्यूटी पर लौटें। पर इस घटना से उन सब लोगों को सबक मिल गया होगा जो करीब जाकर फोटो वीडियो खींचने का दुस्साहस करते हैं। हाथी न आम-आदमी को पहचानते, न एसपी को। उनको गुस्सा दिलाना ठीक नहीं।