राजपथ - जनपथ
राज्यपाल ने रिपोर्ट पढ़ ली तो?
झीरम घाटी आयोग की रिपोर्ट को लेकर राज्य सरकार पेशोपेश में है। न्यायिक जांच आयोग और राज्यपाल दोनों ही राजनीतिक व्यक्ति या संगठन नहीं इसलिये संभलकर बोलना पड़ रहा है। आयोग से नहीं पूछा जा सकता कि आपने हमें न देकर रिपोर्ट राज्यपाल को क्यों दी? राज्यपाल से भी नहीं कह सकते कि दी तो आपने क्यों रख ली?
मीडिया से आयोग और राज्यपाल को प्रतिक्रिया मिल रही होगी पर वे अपनी संस्थागत मर्यादाओं के चलते जवाब नहीं देंगे। अभी तो रिपोर्ट राज्यपाल को सिर्फ दी गई है। रिपोर्ट पढ़ी और उस पर उनकी कोई टीप आती है तो फिर उस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया होगी? राज्यपाल ने रिपोर्ट को देखने की बात तो कह ही दी है। मंडी बिल और यूनिवर्सिटीज़ का नाम बदलने के विधेयकों के रुकने के बावजूद दूसरे कुछ राज्यों की तरह, सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति प्रदेश में अब तक नहीं बनी। पर, झीरम सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिये बड़ा संवेदनशील मुद्दा है। जांच आयोग की रिपोर्ट से कहीं यह नौबत तो नहीं आने वाली है?
जिम्बाबवे तकनीक से शिफ्टिंग
कानन पेंडारी जू में चीतलों की संख्या फिर बढ़ी है। यहां चीतलों की उछल-कूद के लिये मैदान काफी बड़ा है पर प्रजनन भी उतनी ही तेजी से होता है। इनकी अच्छी देखभाल की जाती है और जब संख्या बढ़ जाती है तो किसी अभयारण्य में छोड़ दिया जाता है। इस बार भी अधिक चीतलों को अचानकमार, तैमोर पिंगला और गुरुघासीदास उद्यान में छोडऩे की तैयारी चल रही है। पहले देखा गया है कि चंचल प्रकृति के चीतलों को वाहनों में भरने के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। पर इस बार इन्हें पकडऩे के लिये बोमा तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक फिसलन वाली रैंप तैयार की जा रही है, जिसकी प्रवेश करते समय तो चौड़ाई 40 मीटर है पर आगे चलकर संकरा होते हुए यह 1.5 मीटर ही रह जाता है। पूरे रैंप में चीतल के लिये आहार फैला दिये जाते हैं। जैसे ही डेढ़ मीटर का फासला खत्म होता है, उन्हें गाड़ी में भर लिया जाता है। इसे बोमा तकनीक कहते हैं जो जिम्बाबवे में अपनाई जाती है। छत्तीसगढ़ में पहली बार इसका प्रयोग किया जा रहा है।
वही घोड़ा, वही मैदान
कांग्रेस का सदस्यता अभियान चल रहा है। जिला पदाधिकारियों पर जिम्मेदारी है कि प्रदेश में तय किये गये लक्ष्य के अनुरूप 10 लाख सदस्य बनाने के लिये अपना जोर लगायें। इसके चलते कार्यकर्ताओं की एक बार फिर पूछ-परख बढ़ी है, बैठकें ले जा रही है। मरवाही उप-चुनाव में कांग्रेस को रिकॉर्ड तोड़ जीत के मुकाम तक पहुंचाने वाले कार्यकर्ता दुखी और नाराज हैं। यह नाराजगी वही है जो हर जगह कांग्रेस की बैठकों से निकलकर आ रही है। कार्यकर्ताओं से जब कहा गया कि ज्यादा से ज्यादा सदस्य बनाने के लिये जुट जायें तो साफ पूछा गया कि किस मुंह से जायें? अधिकारी निरंकुश हो गये हैं। कार्यकर्ताओं का काम करना तो दूर वे बात करना भी पसंद नहीं करते। अपना काम तो छोडिय़े किसी फरियादी, जरूरतमंद का भी काम नहीं करा पाते। चुनाव आने पर ही हमें पूछा जाता है और घोड़े की तरह मैदान में दौड़ा दिया जाता है। अब सदस्यता के लिये दौडऩे कहा जा रहा है। कृषि, बिजली, राजस्व, शिक्षा विभाग में समस्याओं, शिकायतों की अर्जियां धूल खा रही हैं। काम होंगे नहीं तो कैसे किसी से कहें कि सदस्य बनो। ([email protected])