राजपथ - जनपथ
हुक्का बंद, शराबखोरी होने दो..
सीएम की हर बैठक के बाद पुलिस अधिकारी अपना रिकॉर्ड दुरुस्त करने में लग जाते हैं। उन्होंने प्रदेश में हुक्का बार चलने पर फटकार क्या लगाई अगले दिन रायपुर, बिलासपुर और दूसरे जिलों में ताबड़तोड़ कार्रवाई चालू हो गई। पहले हुक्का बार में ही छापामारी की जाती थी पर इस बार हुक्का का सामान, चिमनी और फ्लेवर बेचने वाले भी पकड़े गये। यदि यह नशे के खिलाफ जंग है तो सेल्यूट। बस काम कुछ आगे तक होना चाहिये था। शराबखोरी बढ़ रही है। देर रात होने वाले हंगामे, मारपीट, यहां तक की मर्डर में, कितने हुक्का बार से लौटने वाले हैं और कितने शराब दुकानों से- इसका भी ब्यौरा जुटाना चाहिये। कितने घर हुक्का के चलते तबाह हो रहे हैं और कितने शराब की वजह से इसका भी डेटा हो। यह वही सरकार है जिसे शराबबंदी के अपने चुनावी वादे को पूरा करना है।
काश यहां भी चुनाव होता..
कोरोना महामारी के चलते अदालतें लम्बे वक्त तक बंद रही। इसके चलते प्रोफेशनल्स आर्थिक संकट में जूझ रहे थे। वकील जो सबको न्याय दिलाने के लिये पैरवी करते हैं उनकी भी हालत बुरी हो गई। उन वकीलों की ज़्यादा जिन्होंने चार-पांच साल की वकालत में ज्यादा जमा नहीं कर रखा था। इन्हें आर्थिक सहायता देने के लिये सीएम, विधि मंत्री, बार कौंसिल आदि में आवेदन लगाये गये। हाईकोर्ट में भी केस लगाया गया। जरूरतमंदों की तादात ज्यादा थी, मदद कुछ को ही मिल पाई। यह संख्या कुल इस पेशे से जुड़े में से एक या दो फीसदी ही रही। अब जरा यूपी पर निगाह डालिये। वहां सीएम ने घोषणा की है कि इस पेशे से जुड़े लोगों को पांच लाख रुपये तक की एकमुश्त मदद की जायेगी। जो पात्रता रखते हैं उन्हें आवेदन जमा करने कहा गया है।
अपने राधेश्याम बारले
कर्नाटक में लोक वाद्य और पर्यावरण पर विशिष्ट योगदान करने वाले हजब्बा और तिम्मक्का पर खूब चर्चा हुई कि वे नंगे पांव राष्ट्रपति से पद्म पुरस्कार लेने के लिये पहुंचे। पर पंथी नृत्य को नई ऊंचाई देने वाले अपने छत्तीसगढ़ के राधेश्याम बारले ने भी तो नंगे पांव ही राष्ट्रपति से सम्मान ग्रहण किया। इसकी बात मीडिया पर कम हुई इसलिये तस्वीर साझा की जा रही है।
कुछ सवाल आपके मन में उठ सकते हैं मसलन, नंगे पांव क्यों गये राधेश्याम? वेशभूषा तो सलीके ही है। कोविंद जी के पास नंगे पांव दिखाकर छत्तीसगढ़ की हालत बतानी है क्या? कुल मिलाकर क्या नंगे पांव दिखाने के पीछे कोई राजनीति है?