राजपथ - जनपथ
रनौत के समर्थन में यह भी...
इस समय कंगना रनौत के बयान का डंका बजा हुआ है। ज्यादातर लोग इस बात की आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने आजादी को भीख में मिली बताकर लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान किया और 2014 में हुए सत्ता परिवर्तन को आजादी बताकर तो हद ही कर दी। छत्तीसगढ़ में कई स्थानों पर कांग्रेस ने उनके खिलाफ थाने में शिकायतें की हैं। एफआईआर दर्ज होने की बात भी देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही है। वाट्सएप पर भी एक अलग तरह का युद्ध चल रहा है। छत्तीसगढ़ में वाट्सएप से उठाकर उसी पर वेब पोर्टल के समाचार डालकर हिट्स लाने का चलन है। ऐसे कुछ पोर्टल आपत्तिजनक सामग्री उठाकर भी समाचार बना डाल रहे हैं। इनमें गांधी, नेहरू की अभद्र भाषा में आलोचना करते हुए पूछा जा रहा है कि कंगना रनौत ने गलत क्या कहा? जो तर्क समर्थन में दिये गये हैं उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध हैं। हाल ही में जिलों में सोशल मीडिया की सामग्री पर नजर रखने के लिये बनाई समितियों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है, न ही एफ़आईआर के लिये पीछे पड़े कांग्रेस नेताओं का। और तो और अपने प्रदेश में ऐसे पोर्टल विज्ञापनों से पोषित भी किये जा रहे हैं।
बिरसा किसके आदर्श, किसके भगवान?
आदिवासी समुदाय का एक बड़ा वर्ग अपने आपको हिंदू नहीं मानता, न ही उसकी वर्ण व्यवस्था से सहमत है। वे खुद को प्रकृति पूजक मानते हैं। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हमेशा आदिवासियों को हिंदू धर्म का हिस्सा माना। अभी कल ही राष्ट्रीय जनजाति गौरव दिवस का एक कार्यक्रम बिलासपुर में हुआ। बिरसा मुंडा को यहां पहुंचीं राज्यपाल ने आदिवासियों का भगवान बताया और कहा कि आदिवासी समाज सनातन धर्म की रीढ़ है। गौरव दिवस का यह आयोजन देश के दूसरे हिस्सों में भी हो रहे हैं। भोपाल में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कार्यक्रम है। जहां भाजपा की सरकारें हैं आयोजन सरकार करा रही है लेकिन सरकार न हो फर्क नहीं पड़ता। अनेक संगठन हैं। राज्यपाल की मौजूदगी हो तो कार्यक्रम की शोभा तो बढ़ ही जाती है, बात लोगों तक पहुंच भी जाती है। वैसे देश जानता है कि गांधी, बोस, आजाद, भगत सिंह और कई महान सेनानियों की तरह बिरसा मुंडा ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया। बाकी नेताओं से कहीं पहले। वे नेता तो देश के हुए न कि किसी वर्ग के।
बुरी नजर वाले को कोरोना टीका
यह संदिग्ध तरह का स्लोगन एक ट्रक में दिखा। अपने आप में यह कोरोना
टीकाकरण के खिलाफ प्रचार-दुष्प्रचार भी कहा जा सकता है। कोरोना टीका तो
अच्छे बुरे सबकी जरूरत है। दुष्प्रचार पर तो जुर्म भी दर्ज हो जाता है।
कुल्लू का पेड़ भी केंचुल बदलता है!
छत्तीसगढ़ के पथरीले पहाड़ी और नाले में कुल्लू का पेड़ न केवल आयुर्वेदिक गुणों की खान है अलबत्ता साल में दो तीन बार तने और शाखों का रंग बदलता है। यह पेड़ छतीसगढ़ के अलावा और भी जगह मिलता है, इसे घोस्ट ट्री कहा जाता है।
इस बारे में छत्तीसगढ़ के वन और प्रकृतिप्रेमी प्राण चड्ढा ने लिखा है- इसकी गोंद ठंडी तासीर की होती है और आयुर्वेदिक दवाओं में बड़ी मांग होने के कारण गोद के लोभ में कई पेड़ कुल्हाड़ी की चोट दर चोट से मारे जाते हैं। मुंगेली जिले में अंग्रजों के बनाये खुडिय़ा रेस्ट हाउस के सामने इसके कुछ बुजुर्ग पेड़ चांदनी रात में सफेद चमकते है।
कुल्लू का वानस्पतिक नाम ईस्टर कुलिया यूरेन है। चमकीले आकर्षक रंग के चलते ये पेड़ रात में अलग से पहचान में आते हैं। होली पर जब पत्ते गिर जाते हैं, तब पीले रंग के फूल खिलते हैं। कुल्लू का गोंद शक्तिवर्धक और औषधीय गुणों के लिए सभी पहचानते हैं इस वजह प्रतिबंधित होने के बावजूद ये पेड़ कुल्हाड़ी का शिकार बन रहा है। वन विभाग को इस शानदार पेड़ को बचाने प्रोजेक्ट बना कर काम हाथ में लेना होगा।
चित्र- अक्टूबर 2021में कान्हा नेशनल पार्क में लिया था जिसमें पेड़ अपने पुराने छाल का रंग बदलते हुए। ऐसा लगता है जैसे पेड़ भी केंचुल बदल रहा है।