राजपथ - जनपथ
विजय बघेल की पूछ-परख
वैसे तो सीएम भूपेश बघेल, और दुर्ग सांसद विजय बघेल के आपस में चाचा-भतीजे के रिश्ते हैं। रिश्तेदारी के बाद भी दोनों के बीच राजनीतिक अदावत जग जाहिर है। दोनों के करीबी लोग एक-दूसरे का सम्मान भी करते देखे जा सकते हैं। पिछले दिनों भाजपा के विधायक-सांसदों ने सीएम हाउस को घेरने का फैसला लिया, तो विजय बघेल थोड़े विलंब से पहुंचे, और वो सीधे सीएम हाउस पहुंच गए। उन्हें किसी ने रोका नहीं। वहां सीएम के परिवार के लोग और अन्य भी थे। जिन्होंने विजय बघेल का पूरा सम्मान किया, लेकिन विजय तो अपनी पार्टी के सांसद और विधायकों को ढूंढ रहे थे। उन्हें बताया गया कि विधायक-सांसदों को सर्किट हाउस के पास ही रोक दिया गया है। फिर विजय बघेल वहां से निकले, और अपने दल के नेताओं के साथ हुए। दूसरी तरफ, रमन सिंह, बार-बार विजय बघेल को पूछ रहे थे। उनसे जुड़े लोगों का सोचना था कि विजय बघेल की वजह से शायद कुछ अप्रिय न हो। चाहे कुछ भी हो, धरना-प्रदर्शन के दौरान विजय बघेल की काफी पूछ-परख होती रही।
सरोज समर्थकों का दबदबा
दुर्ग जिले के तीन नगर निगमों भिलाई, भिलाई-चरौदा, और रिसाली के अलावा नगर पालिका जामुल व नगर पंचायत मारो में चुनाव हो रहे हैं। मगर यहां भाजपा की बड़ी नेता सरोज पांडेय चुनावी परिदृश्य से गायब है। उन्हें पार्टी ने यूपी में प्रचार का जिम्मा दिया गया है। वो पीएम के निर्वाचन क्षेत्र बनारस में बकायदा मकान लेकर पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुटी हैं। निकाय चुनाव से दूर रहने के बावजूद सरोज यहां प्रत्याशी चयन में रूचि ले रही हैं। चर्चा है कि तीनों नगर निगम और पालिका में अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने की कोशिश कर रही हैं। उनके करीबी लोगों ने तो बकायदा सूची बनानी शुरू कर दी है। इससे परे सरोज विरोधी, जो कि उनकी गैर मौजूदगी से खुश थे, वो भी अब पर्यवेक्षक और प्रभारियों की सूची जारी होने के बाद से मायूस हैं। संकेत साफ है कि प्रचार से दूर रहने के बाद भी टिकट वितरण में सरोज समर्थकों का दबदबा कायम रहेगा।
ऐसा कौन सा काम है?
मोबाइल फोन पर लोगों को लगातार ऐसे संदेश मिलते हैं कि उन्हें किसी काम के लिए छांटा गया है और घर बैठे उन्हें पार्ट टाइम या फुल टाइम काम करके हर दिन 6000 से 9000 रुपये रोज तक की कमाई का वायदा किया जा रहा है। अब अगर कोई कंपनी इस तरह की तनख्वाह या मेहनताना दे रही है तो इनकम टैक्स को भी उस पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि इतनी तनख्वाह, इतनी कमाई तो बड़ी-बड़ी कंपनियों के बड़े-बड़े लोगों को भी नहीं होती। इस तरह के ढेरों संदेश रोज मिलते हैं और लोगों को तो सावधान रहना ही चाहिए, केंद्र और राज्य सरकार की साइबर ठगी पर नजर रखने वाली एजेंसियों को भी ऐसे संदेशों से होकर इन्हें भेजने वालों तक पहुंचना चाहिए और देखना चाहिए कि दुनिया में ऐसा कौन सा काम है जो घर बैठे इतनी कमाई करवाता है। रोजाना ऐसे कई-कई मैसेज आते हैं एसएमएस पर भी आते हैं और व्हाट्सएप पर भी। इसके पहले कि लोग ठग लिए जाएं, सरकारी एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए।
इस साल इतने पीएम आवास बनने थे?
सन् 2021-22 के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना के जो लक्ष्य केंद्र ने दिये, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का हवाला देते हुए चली खबरों के मुताबिक उनकी संख्या 7 लाख 82 हजार हैं। यही सब तरफ नेशनल न्यूज चला।
गौरतलब है कि सन् 2018 में भाजपा सरकार के दौरान, योजना के नये नामकरण के बाद के तीन वर्षों के दौरान 3 लाख 52 हजार 106 मकान ही बन पाये थे, जबकि इसी तीन साल की अवधि का लक्ष्य 6 लाख 88 हजार 235 मकानों का था। इसी वर्ष सन् 2018 की मई माह में इस आंकड़े को जारी कर केंद्र ने बताया था कि छत्तीसगढ़ प्रधानमंत्री आवास निर्माण में पूरे देश में अव्वल है। यानि अपना राज्य तब अव्वल आया जब औसत 1 लाख 20 हजार से कम आवास हर साल बनाये गये। अब 2021-22 के लिये 7.81 लाख 999 मकान का लक्ष्य सुनकर हैरानी हो सकती है। वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष के लिये लक्ष्य केवल 1.57 लाख मकानों का रखा गया था, जिसे केंद्र ने रद्द किया है। उल्लेखनीय है कि मैदानी इलाकों में 1.20 लाख और पहाड़ी इलाकों में 1.30 लाख रुपये एक आवास पर खर्च किया जाता है जिसकी 40 प्रतिशत राशि राज्य को अपने फंड से करनी है। राज्य सरकार ने कई कारणों से इस अंशदान को देने में असमर्थता जताई है।
बीपीएल परिवारों के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना एक बड़ा सहारा है। लाखों की संख्या में लोग अपने पक्के मकान इसीलिये बना पाये। योजना इंदिराजी के नाम पर थी तो राशि कुछ कम थी। पीएम आवास योजना से लोगों ने कुछ खुद के जोड़े हुए पैसे इसमें और लगाकर टाइल्स वाले कमरे और शॉवर वाले बाथरूम तक बनाये। ग्रामीण क्षेत्रों में कारीगरों और छोटी-छोटी बिल्डिंग मटेरियल की दुकान चलाने वालों को भी फायदा मिलता रहा।
पर, अब राज्य में यह योजना ठप पड़ी है। पिछले दो साल से योजना की गति धीमी होने की चर्चा थी लेकिन अब इस पर विवाद इसलिये बढ़ा क्योंकि इस साल का आवंटन केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि नये-नये नियम लादकर योजना को जटिल बना दिया गया। आपत्ति सीएम की ओर से आई है कि जब योजना का नाम बदला गया है तो पूरी राशि केंद्र ही दे। सेंट्रल एक्साइज और कोयले की पेनाल्टी की राशि केंद्र ने रोक रखी है। कांग्रेस का कहना है कि गरीबों को उनकी पुरानी जगह से हटाना होगा, साथ ही रेरा का पंजीयन भी जरूरी किया गया है, जबकि मध्यप्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में इन शर्तों के बिना भी राशि जारी हो रही है।
डॉ. रमन सिंह और दूसरे भाजपा नेताओं ने इसे राज्य सरकार की विफलता बताया है। योजना को चाहे जिस कारण से भी स्थगित करना पड़ा हो, आवासहीनों और कच्चे मकानों में रहने वालों को निराशा हो रही है। इसका असर चुनावों पर भी पड़ सकता है। राज्य में सरकार कांग्रेस की है, योजना केंद्र के नाम से चल रही है। किस पर असर होगा, टटोलना पड़ेगा।
धान खरीदी के लिये जन सुनवाई!
उद्योग स्थापित करने के लिये किस तरह से अधिकारी किस तरह साठगांठ कर ग्रामीणों को अंधेरे में रखकर पैतरेबाजी करते हैं, यह मुलमुला (जांजगीर) में डोलोमाइट खदान के लिये रखी गई पर्यावरणीय जन सुनवाई से सामने आया। जन सुनवाई जिस जगह पर रखी गई वहीं पर धान खऱीदी केंद्र है। मुनादी की शर्त पूरी करनी थी, सो वहां अफसरों ने कोटवारों से कहा कि धान खरीदी एक दिसंबर से शुरू हो रही है, किसी को आपत्ति है तो आकर बता दे। किसानों को भला धान खरीदी शुरू होने में क्या दिक्कत हो सकती है। वे तो इसका इंतजार ही कर रहे हैं। इसलिये लोग किसी तरह की आपत्ति करने पहुंचे नहीं। अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि खदान के नाम पर जनसुनवाई होने वाली है। भीड़ नहीं पहुंची। अधिकारियों ने जनसुनवाई के लिये निर्धारित समय तक वहां बैठने की औपचारिकता पूरी की और लौट गये। दो चार लोगों को बैनर लगा देखकर पता चला कि सुनवाई किस बात की हो रही है तो उन्होंने अपनी आपत्ति जरूर दर्ज कराई। अधिकारियों ने सफाई दी कि अखबारों में तो विज्ञापन छपवाया गया था, लोग नहीं आये तो क्या करें।
शत-प्रतिशत कोविड का दूसरा डोज
प्रदेश में कोरोना से बचाव के लिये हर दिन लगभग एक लाख टीके लगाये जा रहे हैं। रायगढ़, महासमुंद जैसे जिलों में पहला डोज शत-प्रतिशत लगाया जा चुका है, पर दूसरे डोज की धीमी गति को लेकर चिंता है। ऐसे में खबर है कि सरायपाली ब्लॉक में शत-प्रतिशत दूसरी डोज लगाई जा चुकी है। यह लक्ष्य 26 नवंबर को हासिल किया गया। ठीक एक माह पहले 26 अक्टूबर को सरायपाली कस्बे में दूसरे डोज का शत-प्रतिशत लक्ष्य पूरा किया गया। सरायपाली ओडिशा से नजदीक है। वहां कल ही एक साथ 25 स्कूली बच्चों को कोरोना से संक्रमित पाया गया। देश के कई राज्यों में एक बार फिर संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। तब दूसरी डोज में गति लाने की जरूरत सभी महसूस कर रहे हैं।