राजपथ - जनपथ
भाजपा का परिवारवाद
वैसे तो भाजपा परिवारवाद के खिलाफ खूब बोलती है। मगर कई मौके पर तो इसके पक्ष में खड़ी दिखती है। बात निकाय चुनाव की हो रही है। भाजपा ने संभागीय चुनाव समिति घोषित की है। इसमें दुर्ग की समिति में राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय के साथ-साथ उनके सगे भाई राकेश पाण्डेय को भी रखा है। यही नहीं, राकेश, और उनकी पत्नी यानी सरोज की भाभी पार्षद चुनाव लडऩा चाहती हैं। ऐसे में अब सूची पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कुछ नेताओं ने इसकी शिकायत पार्टी हाईकमान से भी की है। प्रत्याशी की घोषणा से पहले ही पार्टी में घमासान शुरू हो गया है।
नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया
बीते 14 नवंबर को स्टैडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी का छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में होने वाला शो रद्द कर दिया गया था। अब बेंगलूरु से खबर है कि वहां पुलिस ने सांप्रदायिक सद्भाव के उल्लंघन की आशंका बताकर आयोजकों को रविवार के दिन तय शो करने की इजाजत नहीं दी। फारूकी ने खुद इस बारे में ट्वीट किया और लिखा - नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया। गुड बाय. नाइंसाफी।
फारूकी ने जिक्र किया है कि दो माह के भीतर आयोजन स्थल और दर्शकों के खतरे की आशंका के चलते उसके 12 शो रद्द हो चुके हैं। जो मजाक मैंने आज तक नहीं किया, उसके लिये मुझे जेल भेजा गया। उस शो को रद्द किया गया जिसमें सेंसर सर्टिफिकेट भी था।
यह हाल है कि कोई भी धमकी देकर किसी भी कलाकार का वजूद खत्म करने पर तुल जाये और कानून-व्वयस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी लेने वाला तंत्र अपने हाथ खड़े कर दें। फारूकी शायद अब कोई नया काम करेंगे, क्योंकि उन्होंने यह भी लिखा है कि- ‘आई थिंक, दिस इज द इंड।’
ट्रैक्टर में रजिस्ट्रेशन नंबर
एक दिसंबर से शुरू हो रही धान खरीदी को लेकर सरहदी जिलों के प्रशासन में अलग तरह की टेंशन है। फरमान है कि हर हालत में दूसरे राज्यों से आने वाला धान रोका जाये। इसके लिये तरह-तरह के उपाय सोचे जा रहे हैं। जैसे मध्यप्रदेश से लगे गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में ऐसी हर ट्रैक्टर रोकी जा रही है जिनमें रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं लिखा है या मिट गया है। इन ट्रैक्टरों में रजिस्ट्रेशन नंबर पुलिस खुद अपने सामने खड़े होकर लिखा रही है। ट्रैक्टरों की सूची डीलरों और आरटीओ से ले ली गई है। मालिक, संचालकों को फोन करके यह चेतावनी दी जा रही है कि बिना नंबर प्लेट वाली ट्रैक्टर को धान खरीदी केंद्र में घुसने नहीं दिया जायेगा। पुलिस सोच रही है कि अब दूसरे राज्यों से ट्रैक्टर ने प्रवेश किया, तो इसका पता तुरंत चल जायेगा।
रेडी टू ईट से महिलाओं का बाहर होना
प्रदेश में रेडी टू ईट का काम अब स्व-सहायता महिला समूहों के हाथ छिन रहा है। यह काम राज्य बीच एवं कृषि विकास निगम को सौंपा गया है। निगम की इकाईयों में ही इसका निर्माण और वितरण का काम होगा। पर, दूसरी तरफ दावा किया जा रहा है कि इससे 15 हजार स्व सहायता समूह, जिनसे 4 लाख महिलायें जुड़ी है, उनके सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जायेगा। समूहों ने फूड बनाने के लिये 2 से 4 लाख की मशीनें भी खरीदी हैं जो बेकार हो जायेंगी।
खबर यह है कि निगम का नाम सिर्फ दिखावे के लिये है। निर्माण और वितरण का काम ठेके पर दिया जा रहा है जिसका लाभ किसी एक फर्म को ही मिलेगा। सवाल यही है कि जब महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करने, उन्हें सशक्त बनाने की बात हो रही है तब किसी ऐसे काम को एक संस्था या फर्म को क्यों सौंपा जा रहा है? ज्ञात हो कि रेडी टू ईट तैयार भोजन है जो बच्चों, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं को सुपोषण के लिये दिया जाता है।