राजपथ - जनपथ
एक अफसर कई खूबियां
छत्तीसगढ़ वन महकमे में 2008 बैच के आईएफएस अफसर दिलराज प्रभाकर अपनी काबिलियत के बूते महज दो जिलों में ही डीएफओ के रूप में 8 साल की सेवा करते अब भी मैदानी पोस्टिंग में हैं। वन अफसरों में ऐसा याद नहीं पड़ता कि किसी अफसर ने दो जिलों में इतना लंबा समय बिताया हो। दिलराज की खासियत में एक बात यह भी है कि सत्ता के भरोसे को जीतने का हुनर भी जानते हैं। जिसका फायदा हुआ कि उन्होंने राजनांदगांव और कवर्धा में 8 साल का दौर पूरा किया। अगले साल जनवरी में दिलराज का प्रमोशन भी ड्यू है। यानी वह डीएफओ से एसीसीएफ के रूप में पदोन्नत होंगे। बताते हंै कि मैदानी पोस्टिंग में रहते दिलराज ने सत्ता की सोच को समझकर उस मुताबिक़ काम तो किया, लेकिन नियमों के तहत भी किया। अब उनकी यह खूबी महकमे में चर्चा का विषय बन गई कि दो जिलों में ही उन्होंने अगले प्रमोशन तक खुद को बनाए रखा। दिलराज छत्तीसगढ़ में 2008 के बैच में इकलौते आईएफएस अफसर भी हैं। दिलराज की एक बड़ी सामाजिक सोच में आर्थिक रूप से पिछड़े प्रतिभावान विद्यार्थियों को सही मार्गदर्शन देकर नौकरी पेशे के लिए काबिल बनाना भी है। कई गैर वन अफसरों के साथ मिलकर वह ऐसे विद्यार्थियों को आगे बढ़ाने की मुहिम भी चला रहे हैं। वे खुद नवोदय स्कूल से निकले हुए हैं, और देश भर में नवोदय के भूतपूर्व छात्रों के एक नेटवर्क से वे जुड़े हुए हैं, और जरूरतमंद छात्र-छात्राओं को कॉलेज दाखिले और नौकरी के मुकाबलों के लिए तैयार करते हैं।
बोतल नई, शराब वही ?
राज्य भाजपा की कोर कमेटी, और चुनाव कमेटी के सदस्यों की सूची जारी होने के बाद असंतुष्ट नेताओं को सांप सूंघ गया है। कमेटी में उन नेताओं को भी जगह मिल गई, जिनके खिलाफ पार्टी हाईकमान को शिकायतों का पुलिंदा सौंपा गया था। सौदान सिंह के हटने के बाद प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी, और राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश तो असंतुष्ट नेताओं को काफी तवज्जो देते दिख रहे थे। ऐसे में असंतुष्ट नेताओं ने संगठन में बड़े बदलाव की उम्मीद पाल रखी थी। लेकिन महत्वपूर्ण कमेटियों के सदस्यों की सूची जारी हुई, तो वो हक्का-बक्का रह गए।
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय तो समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें नजरअंदाज क्यों किया गया। राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य, और विधानसभा में सबसे मुखर रहने वाले अजय चंद्राकर को भी किसी कमेटी में जगह नहीं दी गई। सबसे सीनियर विधायक ननकीराम कंवर, चंद्रशेखर साहू जैसे पुराने नेताओं को भी किसी कमेटी के लायक नहीं समझा गया। सुनते हैं कि पूर्व सीएम रमन सिंह, विष्णुदेव साय, पवन साय, और धरमलाल कौशिक ने आपस में चर्चा कर कोर कमेटी और चुनाव समिति के नामों को फाइनल किया था।
इसके बाद पवन साय सूची लेकर हाईकमान से मंजूरी के लिए दिल्ली गए थे। चर्चा है कि बृजमोहन अग्रवाल का नाम पहले कोर कमेटी में नहीं था। उन्हें सिर्फ चुनाव समिति में रखा गया था, लेकिन हाईकमान की दखल के बाद उन्हें कोर कमेटी में भी रखा गया। बाकी नामों को यथावत रहने दिया गया। सूची से पार्टी का एक बड़ा खेमा नाराज है। कुछ लोग सूची को बोतल नई, शराब वही की संज्ञा दे रहे हैं। और इससे नगरीय निकाय, और खैरागढ़ चुनाव में पार्टी को नुकसान की आशंका जता रहे हैं। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
प्रवासी पक्षियों पर शिकारियों की नजर..
ठंड आते ही प्रदेश के सरोवर, जलाशयों में प्रवासी पक्षी हजारों किलोमीटर दूर साइबेरिया, अर्कांटिका आदि देशों से आकर जम गये हैं और आने का सिलसिला जारी है। जांजगीर के मंडावा राखड़ डेम, बिलासपुर के कोपरा, खूंटाघाट, बेमेतरा के गिधवा जलाशय आदि इनके पहचाने हुए ठिकाने हैं, जहां पक्षियों और प्रकृति के प्रेमी उनका कलरव सुनने के लिये तथा हजारों की तादात में उड़ान भरते हुए देखने के लिये पहुंचते हैं।
प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला बीते कुछ सालों में कम होता जा रहा है। कोलाहल, प्रदूषित जल, वाहनों की आवाजाही से ध्वनि प्रदूषण, वनों, पेड़ों और घास की लगातार कमी होता जाना इसके कुछ कारण हैं। पर इन्हें सबसे बड़ा खतरा शिकारियों से है। जांजगीर के प्रवासी पक्षियों के ठिकाने पर चार शिकारी, गन के साथ इसी सप्ताह देखे गये। सोशल मीडिया पर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने लिखा है कि वन विभाग छत्तीसगढ़ में हर साल पक्षी उत्सव तो मनाता है, पर इनकी सुरक्षा के लिये मैदान में कभी मुस्तैद नहीं दिखा।
चिंता जायज है पर हकीकत यही है कि जब बाघ और हाथी जैसे विशालकाय वन्यजीवों को बचाने में वन विभाग फेल हो रहा हो तो इन नन्हें पक्षियों की सुरक्षा वह कर पायेगी, इसका तो भरोसा क्यों हो?
टोकन की भगदड़ का कौन जिम्मेदार..
बालोद जिले के पीपरछेड़ी गांव में किसानों को धान खरीदी के लिये टोकन वितरण के दौरान भगदड़ मची। तुरत-फुरत वहां के समिति प्रबंधक को निलंबित किया गया। दरअसल, आदेश के मुताबिक मुनादी करानी थी, उसने करा दी। पिछले सालों में धान बिक्री के लिये किसानों को कई-कई दिन इंतजार करना पड़ा। खरीदी शुरू होने की वे काफी दिनों से प्रतीक्षा कर रहे थे। बहुत से जरूरतमंद किसानों ने कम कीमत पर बाजार में धान बेचा भी है। अफसरों को इस स्थिति का अंदाजा होना चाहिये था कि जगह-जगह टोकन के लिये लंबी कतार लगेगी और इस दौरान व्यवस्था बिगड़ सकती है। बालोद में किसानों को टोकन के लिये जो परेशानी हुई है वह अकेले नहीं है। प्रदेश में जगह-जगह से खबरें आ रही हैं। लोग सुबह से, घंटों कतार में लगने के बाद भी टोकन नहीं ले पा रहे हैं। अधिकारियों ने समिति के छोटे कर्मचारी को तो निलंबित कर दिया पर अपनी गलती अब इस घटना के बाद सुधारी है। नया आदेश निकाला है कि टोकन 15 दिन पहले दे दिया जायेगा।
नि:शक्तों के लिये संबोधन
शारीरिक-मानसिक रूप से किसी कमी को झेल रहे लोगों को समाज उपेक्षित और दीन-हीन न समझें, इसलिये उनके प्रति सम्मानजनक बर्ताव के लिये मापदंड तय किये गये हैं। इन्हें विशेष प्रतिभा के बच्चे, नि:शक्त पहले से कहा जाता रहा है। अब भी इसे कोई गलत नहीं बताता। बाद में केंद्र सरकार ने इन्हें दिव्यांग नाम दिया। सभी सरकारी विभागों में इसे लागू भी करने कहा गया है। सार्वजनिक मंचों में भी अब दिव्यांग ही कहा जाता है।
इनकी बेहतरी के लिये बनाई गई योजनाओं को संचालित करने की जिम्मेदारी समाज कल्याण विभाग की है। उम्मीद तो करनी चाहिये कि वह उन्हें प्रतिकूल टिप्पणियों, व्यवहार से बचाये। पर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में खुद इसी विभाग के अधिकारियों ने इन्हें ‘विकलांग’ बता दिया। यहां तीनों ब्लॉक के नि:शक्तों की क्रिकेट प्रतियोगिता कराई जा रही है। उन्हें जो टी-शर्ट खेल के दौरान पहनने के लिये दिये गये, उनमें लिखा गया- ‘विकलांग।’ जब ये खिलाड़ी मैदान में उतर गये तब लोगों का इस ओर ध्यान गया। विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने अब अपनी गलती पर माफी तो मांगी है और टी-शर्ट बदल दिया है पर वे ऐसे ही नहीं छूटने वाले हैं। उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई होने जा रही है।